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कविता

कुंडलियां … 27 साधु की संगत भली……

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साधु की संगत भली, करती भव से पार।
जो कुसंगत में फंसे, पाता कष्ट अपार।।
पाता कष्ट अपार ,कभी ना चैन से सोता।
हर क्षण रहता व्याकुल मन ही मन रोता।।
कर्तव्यपथ दिखावे साधु, नई चढ़ाता रंगत।
जन्म सफल हो जाए,मिले साधु की संगत।।

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साधु की संगत मिले, मन पावै संतोष।
धीर,वीर, गंभीर, बन – पाता सारे कोष।।
पाता सारे कोष, मन आनंदित रहता।
थोड़े में संतोष मना, मन प्रफुल्लित रहता।।
सहज – सरल गुणों की, लग जाती पंगत।
आवे दिव्यानंद, मिले जब साधु की संगत।।

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साधु करता साधना, करता व्रत कठोर।
रसना पर संयम रखे, पकड़ भक्ति की डोर।।
पकड़ भक्ति की डोर, स्वभाव बनाता निर्मल।
शब्दों में अमृत रस टपके वाणी होती शीतल।।
वाचिक तप उत्तम हो, कल्याण हमारा करता।
ध्यान देय सुनें बात को,जिसको साधु करता।।

दिनांक : 9 जुलाई 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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