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कविता

कुंडलियां … 20 जिसने मारा काम को…….

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काम कामना हैं बुरे, कह गए संत फकीर।
कामना मारे है हमें, काम के मारें तीर।।
काम के मारें तीर, करें घायल गहरा।
आंखों से कर देते अंधा, कानों से बहरा।।
जैसे ही दिखे मेनका, जागृत होता काम।
बड़े बड़ों को आसन से पटका करता काम ।।

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त्रिया की संगत करे, वही काम का दास।
जीते जी खुद ही मरे,खतम होय उल्लास।।
खतम होय उल्लास, जीवन नीरस लगता।
वासना विष में डूब मरे, मधु फीका लगता।।
जीवन रस को लुटा , करता उल्टी क्रिया।
जीवन के उद्देश्य से दूर हटा देती है त्रिया।।

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जिसने मारा काम को, पाया उसने धाम।
सफल साधना कर गया खूब कमाया नाम।।
खूब कमाया नाम, जगत भी वंदन करता।
हर बरस लगाकर मेले, पुष्प अर्पित करता।।
मानव का हितकारी हो,जीवन जिया जिसने।
मन मंदिर में बैठकर, झाड़ू चलाई जिसने।।

दिनांक : 8 जुलाई 2023

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