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चमचे चुगलखोर-भाग-पांच

सीधे सच्चे अधिकारी को, मारग से भटकाता है।चमचागिरी करके प्यारे, बैस्ट अवार्ड को पाता है। गली गांव शहरों में, हो रहा तेरी कला का शोर।जय हो चमचे चुगलखोर। संविधान निर्माता भूल गये, कोटा नियत करना।फिर भी छूट तू ले गया प्यारे, बिन कोटा माल को चरना। बनते रहें कानून चाहे जितने, तुझको क्या परवाह?तेरी निकासी […]

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चमचे चुगलखोर-भाग-चार

तेरी काली करतूतों से तो, भरा पड़ा इतिहास।मंथरा दासी बनके राम को, दिलवाया बनवास। तू ही तो घाती जयचंद था, गोरी को दिया विश्वास।डच, यूनानी, गोरे आये, जिनका रहा तू खास। तुझको तो हत्या से काम, बूढा हो चाहे किशोर।जय हो चमचे चुगलखोर। घर दफ्तर विद्यालय, चाहे बैठा हो मंदिर में।किंतु कतरनी चलती रहती, तेरे […]

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चमचे चुगलखोर-भाग-तीन

सूरज चढ़ता देख किसी का, मन ही मन तू जलता है।हृदय हंसता है तब तेरा जब किसी का सूरज ढलता है। अतुलित शक्ति तुझ में इतनी, दे शासन तक का पलट तख्ता।तेरी कारगर चोटों से, मीनारें गिरीं बेहद पुख्ता। मतलब इतने प्रशंसक तू, निकले मतलब आलोचक तू।उल्लू सीधा करने के लिए, कोई कथा सुनाये रोचक […]

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चमचे चुगलखोर-भाग-दो

बिना हंसी हंसता रहता, और हां में हां कहता रहता।जिस हांडी में खाता है। तू उसी में छेद करता रहता। बनता है तू बाल नाक का, है छुपा हुआ आस्तीन सांप।डसता जिसको, बचता नही वो, दुर्दशा देख जाए रूह कांप। तू ऐसा तीर चलाता है, दिल छलनी सा हो जाता है।जहां प्रेम की गंगा बहती […]

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चमचे चुगलखोर

जय हो चमचे चुगलखोर, तेरे जादू में बड़ा जोर।जय हो चमचे चुगलखोर, भूतल पर जितने प्राणी हैं, तू उन सबमें है कुछ विशिष्ट।चुगली और चापलूसी करके, बनता है कत्र्तव्यनिष्ठ। जितने जहां में उद्यमी हैं, उपेक्षा उनकी कराता है।बात बनाकर चिकनी चुपड़़ी, हर श्रेय को पाता है। पर प्रतिष्ठा समाप्त कर, अपनी की नींव जगाता है।स्वार्थसिद्घि […]

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स्वामी विवेकानंद

आज भी परिभाषित हैउसकी ओज भरी वाणी सेनिकले हुए वचन ;जिसका नाम था विवेकानंद ! उठो ,जागो , सिंहो ;यही कहा था कई सदियाँ पहलेउस महान साधू ने ,जिसका नाम था विवेकानंद ! तब तक न रुको ,जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न होकहा था उस विद्वान ने ;जिसका नाम था विवेकानंद ! सोचो तो […]

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आधुनिक विज्ञान से-भाग-आठ

सबसे सस्ता आज जहां में, बिकता है ईमान।तू सर्वेसर्वा मानता नेचर, कहता क्या होता भगवान?अरे ओ आधुनिक विज्ञान! अरे ओ मतवाले विज्ञान, किये तूने कितने आविष्कार?किंतु आज भी वंचित क्यों है, सुख शांति से संसार? अंतिम दम तक आइनस्टाईन, करता रहा पुकार।श्रेष्ठ पुरूषों के बिन नही होगा, सुख शांति का संसार। अत: समय रहते तू […]

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आधुनिक विज्ञान से-भाग-सात

हिरोशिमा नागासाकी में, कोप की देखी थी दृष्टि।तुझे यौवन में मदहोश देख, आज कांप रही सारी सृष्टि। मानता हूं कोप तेरे से, हर जर्रा मिट जाएगा।किंतु अपने हाथों तू, आप ही मिट जाएगा। क्या कभी किसी को मिल पाएंगे, जीवन के कहीं निशान?अरे ओ आधुनिक विज्ञान! तेरी चमक -दमक में उड़ गये, जीवन के वे […]

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आजादी शर्मिन्दा है

झूँठा और फरेबी देखो, बड़ी शान से जिन्दा है। भारत माता बिलख रही है, आजादी शर्मिन्दा है।   नाच रहे हैं देखो नंगे, संसद के गलियारों में। शामिल कितने नेता मिलते, क़त्ल और हत्यारों में। झूँठे वादे यहाँ सभी के, सच से नाता तोड़ रहे। गैरों की क्या बात करें जब, अपने भ्राता छोड़ रहे। […]

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आधुनिक विज्ञान से-भाग-छह

रहने दे खूनी पंजों को, इस भू तक सीमित रहने दे।अन्यत्र यदि कहीं जीवन है, उसको तो सुख से रहने दे। दाग लगा तेरे दामन में, हिंसा और विनाश का।श्रेय नही, अब हेय हो रहा, तू साधन था विकास का। परमाणु युद्घ ही नही, आज स्टार वार की चर्चा है।तेरे इन खूनी पंजों पर, हो […]

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