कविता – 26 क्रंदन दूर होगा एक दिन …… निशा निराशा की आये उत्साह बनाए रखना तुम। लोग नकारा कहें भले उत्कर्ष पे नजरें रखना तुम।। भवसिंधु से तरने हेतु निज पूर्वजों से अनुभव लो। उल्टे प्रकृति के चलो नहीं मन में ये ही नियम धरो।। कुछ भी दुष्कर है नहीं, […]
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कविता — 25 हे परमेश्वर ! हे सच्चिदानंद !! अनंत स्वरूप !!! निराकार !ध्यान में आ नहीं सकता तेरा रूप।। तुम अज, निरंजन और कहे जाते निर्विकार। हे जगतपिता ! विद्वत जन कहते सर्वाधार।। सकल जगत के उत्पत्तिकर्ता ! हे अनादे ! विश्वंभर! सर्वव्यापी ! ऐसा कहकर गायत्री तेरा करे यजन।। हे करुणावरूणालय ! सर्वशक्तिमान […]
कविता – 24 मेरा देश है सबसे महान इसमें तनिक भी भूल नहीं है। सूरज बिखराता प्रकाश, चंद्रमा करता हास विलास गाता गीत सकल संसार इसमें संशय शूल नहीं है ।। ….. हिमालय जिसका चौकीदार, बनकर खड़ा है पहरेदार, वंदन करता हूँ बारंबार, जग में इसका मूल्य नहीं है ….. करते ऋषि लोग उपचार, करते […]
कविता – 23 लाडी रानी उनमें एक है, हमारे देश भारतवर्ष में, जिनका नाम है इतिहास में, लाडी रानी उनमें एक है, वीरता में बेमिसाल थी …. संकट में मातृभूमि थी, चहुँ ओर त्राहिमाम थी, तब देश की नायक बनी, हाथ में देश की लगाम थी … वह रानी नहीं तूफान थी, हिंद की वह […]
कविता – 22 धर्म पुजारी है प्रेम का …… मजहब कारण विनाश का बात बांध लो गांठ। धर्म प्रतीक विकास का दे मानवता का पाठ।।1।। धर्म की दृष्टि दिव्य है दिव्य धर्म का तेज। मनुष्यता बिना धर्म के हो जाती निस्तेज।।2।। मजहबी अपराध से भरा पड़ा इतिहास। दानवता बनकर किया मानवता का नाश।।3।। मजहबी चिंतन […]
कविता – 21 अमन को हैं बेचते … जो राज पद को प्राप्त कर प्रजा का हित चिंतन करे। योग्य राजा है वही जो परकल्याण हित जीवन धरे ।। जो राग व अनुराग से सर्वथा और पूर्णतया मुक्त हो । राजा उसी को मानिये जो न्याय विवेक युक्त हो ।। राजा वही है जो कभी […]
कविता – 20 रखना ईश्वर पर विश्वास, अंधेरा सदा नहीं रह पाता जीवन है आशा की डोर , आनंद है इसका छोर, हो जा उसी में भावविभोर, मनवा कभी नहीं कह पाता ….. जगत में बांटो खुशियां खूब, तुमसे पाए न कोई ऊब, जीवन का हो ये दस्तूर, हर कोई निभा नहीं पाता …….. आते […]
कविता — 19 आर्यों को पवित्र भूमि मिली दान में भगवान से। प्रचार करो वेद का – और रहो विधि विधान से।। योग साधना सीखकर जीवन को उन्नत भी करो। प्राणियों का ध्यानकर उनको समुन्नत भी करो।। यह धरती मिली है आर्यों को जितनी चाहो भोगिये। साधना मन की करो , विषय भोग से भी […]
कविता — 18 लालकिले की दीवारो ! क्या तुम मेरे उत्तर दोगी? अपने निर्माता का नाम बताने का क्या जोखिम लोगी ? कहां गए वे लोग सयाने और कहां गए निर्माता भूप ? किसने तेरी नींव रखी थी किसने दिया भव्य स्वरूप ? किस-किस पापी ने तेरी अस्मत को अपने पैरों से रौंदा है ? […]
कविता – 17 रात गई सो बात गई अब भोर सुनहरी आई है। नई उमंगें और नई तरंगें साथ में अपने लाई है ।। आलस्य त्याग बिस्तर छोड़ो करो स्वागत प्रातः का। चीं चीं कर चिड़िया जगा रही जो दूर कहीं से आई है।। छोड़ो कल रात की बातें मत नष्ट करो शक्ति मन की। […]