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कविता

हिंदू सदा कहते उसे ……

कविता  — 19 आर्यों को पवित्र भूमि मिली दान में भगवान से। प्रचार करो वेद का – और रहो विधि विधान से।। योग साधना सीखकर जीवन को उन्नत भी करो। प्राणियों का ध्यानकर उनको समुन्नत भी करो।। यह धरती मिली है आर्यों को जितनी चाहो भोगिये। साधना मन की करो , विषय भोग से भी […]

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लालकिले की दीवारों से ……

कविता  —   18 लालकिले की दीवारो ! क्या  तुम  मेरे  उत्तर  दोगी? अपने निर्माता का नाम बताने का क्या जोखिम लोगी ? कहां गए वे लोग सयाने और कहां गए निर्माता भूप ? किसने तेरी नींव रखी थी किसने दिया भव्य स्वरूप ? किस-किस पापी ने तेरी अस्मत को अपने पैरों से रौंदा है ? […]

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ऊर्जा का नवस्रोत बहे…..

कविता – 17 रात गई सो बात गई अब भोर सुनहरी आई है। नई उमंगें और नई तरंगें साथ में अपने लाई है ।। आलस्य त्याग बिस्तर छोड़ो करो स्वागत प्रातः का। चीं चीं कर चिड़िया जगा रही जो दूर कहीं से आई है।। छोड़ो कल रात की बातें मत नष्ट करो शक्ति मन की। […]

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जलियांवाला बाग यह बोला …  

कविता – 16 जल मैंने पूछा जलियांवाले बाग ! व्यथा तू कह दे मन की। कोयल है क्यों मौन यहां की कागा पीर बढ़ाते मन की।। जलियांवाला बाग यह बोला – व्यथा नहीं मेरे मन में। सौभाग्य समझता हूं अपना, छाया जनगण के मन में।। फूलों की कलियों से पूछा क्यों नहीं खिलना चाहती हो […]

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बेटी विदा होती है उसकी यादें नहीं

उगता भारत ब्यूरो बेटियाँ लावा (चावल) उछाल बिना पलटे, महावर लगे कदमों से विदा हो जाती है । छोड़ जाती है बुक शेल्फ में, कव्हर पर अपना नाम लिखी किताबें । दिवार पर टंगी खूबसूरत आइल पेंटिंग के एक कोने पर लिखा उनका नाम । खामोशी से नर्म एहसासों की निशानियां, छोड़ जाती है …… […]

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… हो जाते सब मौन

कविता –   15 … हो जाते सब मौन   मरण जीवन का अंत है क्यों करता है शोक। संयोग सदा रहता नहीं, वियोग बनावै योग ।। 1।। जो फल पकता डार पर पतन से है भयभीत । मानव डरता मौत से भूल प्रभु की प्रीत ।। 2 ।। मजबूत खम्भे गाड़कर भवन किया तैयार। धराधूसरित […]

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विश्व को अनुपम हमारी देन है,

कविता — 14 चर्चा हमारे उत्थान की संसार में सब ओर थी, हमारे ज्ञान और विज्ञान की धाक चहुंओर थी। हमारे सद्गुणों की कीर्ति पर संसार सारा मुग्ध था, विधाता के हाथ में हमारी नियति की डोर थी।। ऋषिगण हमारे उपनिषद में करते थे चर्चा ब्रह्म की, जीवन जगत के गंभीर प्रश्न और मानव धर्म […]

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रस प्रीत जब आ बसे …

कविता — 13 प्रीत की रीत ये है नहीं स्वारथ के हित होय। प्रीत हृदय की प्यास है वेद बता रहे   मोय ।। 1 ।। प्रीत हृदय में राखिए, धर्म का  ये  आधार। जीवन में रस घोलती मधुर करे व्यवहार।।2।। प्रीत बिना निस्सार है जीवन जगत व्यापार। रस प्रीत जब आ बसे हो भव से […]

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वे देश भक्त नहीं हो सकते …..

कविता – 12 वे देश भक्त नहीं हो सकते ….. वही देश  धर्म  के  रक्षक  हैं  जो  सीमा  के  प्रहरी  होते। जिनके कारण हम देश के भीतर  नींद नित्य गहरी सोते।। मैं उनको कैसे रक्षक मानूं ?- जो देश के भक्षक बन बैठे। नहीं उनको शीश झुका सकता डसने को तक्षक बन बैठे।। मैं हूँ […]

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‘राष्ट्रनीति’ का उद्देश्य यही है ……

कविता —  11 ‘राष्ट्रनीति’ का उद्देश्य यही है …… स्वाधीन हुए भारत को अब सात  दशक हैं  बीत  गए। भय, भूख ,भ्रष्टाचार मिटे ना कितने ही नेता चले गए।। राजनीति अपना धर्म देश में निश्चित करने से  चूक  गई। संप्रदायवाद और उग्रवाद ने अस्मत जनता की लूट लई।। बढ़े कटुता- कलह देश में और क्लेश […]

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