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कविता

गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या …11, कर्म की अनिवार्यता

गीता हमारे लिए एक ऐसा पवित्र ग्रंथ है, जिसमें वेदों और उपनिषदों का रस या सार निकाल कर रख दिया गया है। जीवन की ज्योति बुझने ना पाए और किसी भी ‘अर्जुन’ का ‘युद्ध’ को देखकर उत्साह ठंडा न पड़ने पाए, इसके लिए ‘गीता’ युगों-युगों तक मानव जाति का मार्गदर्शन करने की क्षमता रखती है।
बस, इसी में गीता की सार्थकता, महानता, पवित्रता छिपी हुई है।गीता जीवन का सुमधुर संगीत है, उत्साह भरने वाला एक गीत है, आशा की एक डोर है, कभी ना बुझने वाली लौ है।
वेदों की ओर लौटकर वेदों की संस्कृति को स्थापित करने वाली एक महान क्रांति का नाम है – गीता।
उपनिषदों के ऊंचे ज्ञान की उड़ान का नाम है – गीता।
जीवन से पलायनवाद, अनुत्साह और अकर्मण्यता को दूर भगाकर उठ खड़े होकर लक्ष्य को साधने की एक बहुत ऊंची साधना का नाम है – गीता।
गांडीव की टॅकार का नाम है गीता।
देश के धर्म संस्कृति और वैदिक परंपराओं के शत्रुओं के विरुद्ध बिगुल फूंकने का नाम है – गीता।
इस प्रकार गीता हमारे राष्ट्रीय जीवन को ढालने, सँवारने, संभालने और सुधारने वाला एक क्रांतिकारी ग्रंथ है।

गीता मेरे गीतों में

11

कर्म की अनिवार्यता

युद्ध से मुंह फेर चुके अर्जुन को कृष्ण लगे झकझोरने,
अर्जुन ! दिव्य धर्म का निर्वाह कर,आगे लगे यूँ बोलने –
अर्जुन फँसा जिस द्वन्द्व में – उसकी परत लगे खोलने,
जिसे सुन – भूलोक , सुरलोक, विधिलोक लगे डोलने।

कर्म योग को तू जान अर्जुन और मेरी तरफ ध्यान कर,
कर्म योगी बन रणक्षेत्र में अब सम्यक -धर्म-निर्वाह कर,
तू कर्म में मत लिप्त हो और ‘कर्मफल’ की पहचान कर,
है अधिकार तेरा कर्म पर ,इसका भी प्रत्यभिज्ञान कर।

है कर्म तेरे हाथ में- तू कर्मठ, कर्मयोगी व कर्मशील बन,
कर्म की शुद्धता पर ध्यान दे, ह्रदय से आचरणशील बन,
दुष्कर्म से मन को हटा, विवेकशील और धर्मशील बन,
तू धर्मानुकूल सदा कर्म कर , न्यायशील बुद्धिशील बन।

ना कर्म का फल हाथ तेरे , मत व्यर्थ चिंतन कर कभी,
ना विधि की व्यवस्था भंग हो,कर मनन इस पर कभी,
विधाता देखता है कहीं मौन बैठा – तेरे किए कर्म सभी,
अनुकूल ऋतु आते ही उपजें, धरती में पड़े बीज सभी।

ऋतु आगमन से पूर्व जैसे नहीं उपजता बीज कोई,
वैसे ही फल मिलता सदा, अपवाद नहीं है चीज कोई,
अपने किए हुए कर्म का फ़ल भोगता हर जीव कोई,
फ़ल भी वैसे ही मिलें, जैसी खेत में कोई चीज बोई ।

मत जमा अधिकार फल पर -नहीं ऐसा उचित कभी,
है अनाधिकार यह चेष्टा मिटा देगी तेरे हित सभी,
कर्मफल पर अधिकार का तू भाव मिटा दे अभी,
‘तू कर्म करना छोड़ दे’ – इसका है नहीं यह अर्थ भी।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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