#डॉविवेकआर्य सत्यानुरागी, धर्मपरायण, अनथक परिश्रमी, निःस्वार्थ सेवी, विद्वान-व्याख्याता, प्रवक्ता, उपदेशक, अधिष्ठाता, भारतीय स्वराज्य आन्दोलन के सहयोगी, त्याग एव तपस्या की प्रतिमूर्त्ति आचार्य रामदेव जी आर्यसमाज एवं गुरुकुल शिक्षा पद्धति के अनन्य प्रचारक थे। स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज ने अगर गुरुकुल रूपी पौधे को लगाया था तो आचार्य रामदेव ने उसे अपने लहू से सींचकर वट […]
श्रेणी: हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष
लेखक- स्व० श्री पं० चमूपति जी, एम०ए० ऋषि दयानन्द की जन्मभूमि होने का गौरव गुजरात प्रान्त को है। पिता जन्म के ब्राह्मण थे, और भूमिहारी तथा जमीदारी का कार्य करते थे। शिव के बड़े भक्त थे। शिवरात्रि के दिन बालक को मन्दिर में ले गए और उसे उपवास करा जागरण का आदेश दिया। जब […]
सन् १६५९ में शिवाजी महाराज ने अपने एक साथी नेतोजी पालकर को सरनौबत (मराठी घुड़सवार सेना के नायक) के रूप में नियुक्त किया। तब तक शिवाजी महाराज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करते हुए नेतोजी के कर्तृत्व व पराक्रम की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी और न केवल भारतीय बल्कि यूरोपीय लेखकों […]
============= माना जाता है कि देश 15 अगस्त, 1947 को अंग्र्रेजों की दासता से मुक्त हुआ था। तथ्य यह है कि सृष्टि के आरम्भ से पूरे विश्व पर आर्यों का चक्रवर्ती राज्य रहा। आर्यों वा उनके पूर्वजों ने ही समस्त विश्व को बसाया है। सभी देशों के आदि पूर्वज आर्यावर्तीय आर्यों की ही सन्तानें व […]
पंडित आत्माराम अमृतसरी पंडित और विद्वान् शब्द का व्यावहारिक लक्षण यह है कि जो अपने बराबर के पंडित को मूर्ख और अपने से बढ़िया पंडित को उन्मत्त बतलाये। विद्वानों के हृदय फट जाते हैं और पंडितों की आंखें लाल हो जाती हैं जब वे अपने सामने किसी और पंडित के सम्बन्ध में प्रशंसा के शब्द […]
सामान्यतः यह धारणा है कि आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द के ग्रन्थों में शुष्क तर्क अधिक है; वहाँ भक्ति का अभाव है। पर वास्तविकता यह है कि भक्ति और ईश्वरोपासना से सम्बन्धित अनेक विशद विचार स्वामी जी के ऋग्वेदभाष्य, यजुर्वेदभाष्य, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, पँचमहायज्ञविधि, संस्कारविधि, सत्यार्थप्रकाश आदि सभी ग्रन्थों में यत्र-तत्र पाये जाते है। महर्षि दयानन्द ने […]
============= श्री शिवनाथ आर्य हमारी युवावस्था के दिनों के निकटस्थ मित्र थे। उनसे हमारा परिचय आर्यसमाज धामावाला देहरादून में सन् 1970 से 1975 के बीच हुआ था। दोनों की उम्र में अधिक अन्तर नहीं था। वह अद्भुत प्रकृति, स्वभाव व व्यवहार वाले आर्यसमाजी थे। उनके विलक्षण व्यक्तित्व के कारण मैं उनकी ओर खिंचा और हम […]
* (विष्णुदत्त शर्मा-विभूति फीचर्स) जम्मू- कश्मीर को भारतीय संविधान के दायरे में लाने और एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान (झंडा) के विरोध में सबसे पहले आवाज उठाने वाले भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का 23 जून को बलिदान दिवस है। कश्मीर से विरोधाभासी प्रावधानों की समाप्ति के […]
….और रणभेरी बज गयी महाराणा प्रताप अपने दृढ़ निश्चय पर अडिग थे कि वह अकबर के दरबार में जाकर शीश नही झुकाएंगे, वह अकबर को अपना शत्रु मानते थे। अकबर ने जब देखा कि महाराणा स्वतंत्रता के गीत गाने की अपनी प्रवृत्ति से बाज आने वाला नही है, तो उसने जून 1776 ई. में मेवाड़ […]
प्रवीण गुगनानी, सलाहकार, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार, (राजभाषा) 9425002270 guni.pra@gmail.com श्री गुरुजी, माधव सदाशिव राव गोलवलकर शक्तिशाली भारत की अवधारणा के अद्भुत, उद्भट व अनुपम संवाहक थे। श्री गुरुजी के संदर्भ में “थे” शब्द कहना सर्वथा अनुचित होगा, वे आज भी पराक्रमी भारत, ओजस्वी भारत, अजेय भारत, निर्भय भारत, संपन्न-समृद्ध-स्वस्थ भारत व राष्ट्रवाद भाव के […]