=========== *ताहवन दीदिवः प्रतिष्म रिषतो दह। अग्ने त्वं रक्षस्विनः*।। घी से प्रदीप्त यज्ञाग्नि, हमारे प्रतिकूल शत्रुओं और दोषों को सर्वथा भस्म करने में समर्थ है। *जिघम्र्यग्निं हविषा घृतेन प्रतिक्षियन्तं भुवनानि विश्वा*।। सम्पूर्ण लोकों का आधार, प्रत्येक पदार्थ में विद्यमान अग्नि को मैं होम के योग्य घी से प्रदीप्त करता हूँ। *यत्र सोमः सूयते यत्र यज्ञो […]
