दो बूंद गंगाजल अरुण तिवारी (वैश्विक तापमान में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप मौसमी परिवर्तन। निःसंदेह, वृद्धि और परिवर्तन के कारण स्थानीय भी हैं, किंतु राजसत्ता अभी भी ऐसे कारणों को राजनीति और अर्थशास्त्र के फौरी लाभ के तराजू पर तौलकर मुनाफे की बंदरबांट में मगन दिखाई दे रही है। जन-जागरण के सरकारी व स्वयंसेवी प्रयासों […]
श्रेणी: पर्यावरण
प्रह्लाद सबनानी शहरों को प्लास्टिक मुक्त करना भी पर्यावरण में सुधार का एक अच्छा तरीका है, और संघ जैसे स्वयंसेवी संगठन, समाज के विभिन्न वर्गों को अपने साथ लेकर, देश के पर्यावरण को शुद्ध करने हेतु प्रयास कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत द्वारा पर्यावरण में सुधार के उद्देश्य से “प्लास्टिक […]
लेखक:- डॉ. मोहन चंद तिवारी (12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आईआईटी’ रुड़की में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जलसंरक्षण और जलप्रबंधन’ से सम्बद्ध चर्चित और संशोधित लेख) प्राचीन काल के कुएं बावड़ियां,नौले आदि जो आज भी […]
मुकुल व्यास खगोल वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती के पर्यावरण की रक्षा के लिए बनाए जाने वाले नियम-कानून अंतरिक्ष पर भी लागू होने चाहिए। अंतरिक्ष के कचरे से पृथ्वी की निम्न कक्षा पर खतरा बढ़ रहा है। वहां मौजूद ऑब्जेक्ट प्रकाश प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, जिसकी वजह से पृथ्वी से अंतरिक्ष का प्रेक्षण करने […]
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत द्वारा पर्यावरण में सुधार के उद्देश्य से “प्लास्टिक मुक्त ग्वालियर” का आहवान करते हुए समाज के विभिन्न वर्गों, संस्थानों, स्कूलों, कालेजों एवं सरकारी विभागों को अपने साथ जोड़ते हुए ग्वालियर महानगर को प्लास्टिक मुक्त करने का संकल्प लिया गया है। इस अभियान के प्रथम चरण में ग्वालियर महानगर […]
लेखक:- डॉ. मोहन चन्द तिवारी धौलवीरा का जल प्रबन्धन सन् 1960 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने सिन्धु सभ्यता से सम्बद्ध एक प्राचीन आवासीय बस्ती धौलवीरा का उत्खनन किया तो पता चला कि यह सभ्यता 3000 ई.पू. की एक उन्नत नगर सभ्यता थी. खदिर द्वीप के उत्तर-पश्चिम की ओर वर्तमान गुजरात में स्थित इस प्राचीन […]
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा राजस्थान देश का सबसे बड़ा प्रदेश है तो यहां देश की 5.40 प्रतिशत आबादी और 19 प्रतिशत पशुधन है। एक समय कहा जाता था कि घी ढुल जाए तो गम नहीं पर पानी नहीं ढुलना चाहिए, यह कहावत पानी के महत्व को दर्शाती है। मौसम विभाग का इस बार भी देश […]
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष प्रकृति का अभिन्न अंग नदियाँ सदैव ही जीवनदायिनी रही हैं। नदियाँ अपने साथ बारिश का जल एकत्रित कर उसे भू- गर्भ में पहुंचाती हैं। एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, आमूर, लेना, कावेरी, नर्बदा, सिंघु,यांगत्सी नदियाँ, अफ्रीका में नील, कांगो, नाइजर, जम्बेजी नदियाँ, उत्तरी अमेरिका […]
राजेश कश्यप पर्यावरण प्रदूषण में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, नाभिकीय प्रदूषण आदि सब प्रदूषक शामिल हैं। वायु को प्रदूषित करने वाले मुख्यतः तीन कारक हैं, अचल दहन, चलायमान दहन और औद्योगिक अपशिष्ट। नगरों-महानगरों में पर्यावरण प्रदूषण के कारण सांस लेना दूभर होता चला जा रहा है। कोरोना काल में आक्सीजन का […]
अभी नहीं संभले तो हालात विकट होंगे डॉ. सौरभ मालवीय प्राचीन काल में जल संरक्षण पर विशेष बल दिया जाता था। तालाब बनाए जाते थे एवं कुएं खोदे जाते थे। वर्षा का जल तालाबों आदि में एकत्रित हो जाता था। इन तालाबों से मनुष्य ही नहीं, जीव-जंतु भी लाभान्वित होते थे। मनुष्य का शरीर पंचभूत […]