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संपादकीय

निजी जीवन को बनाओ सार्वजनिक जीवन की नींव

भारत में प्राचीन काल में राजा अपने राजतिलक के पश्चात जो शपथ लेता था उसे ऐतरेय ब्राह्मण (8/15) में यूं बताया गया है-”मैं जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त का सारा समय तुम्हें समर्पित करता हूं। यदि कभी भी मैं प्रजा के साथ कोई असत्य व्यवहार करूंगा या उसके साथ कोई छल कपट करूं तो मेरा […]

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संपादकीय

बी.बी.सी. चुप ही रहे तो अच्छा है

भारत प्राचीन काल से ही पन्थनिरपेक्ष देश रहा है। क्योंकि इसकी राज्य व्यवस्था का मूल आधार समग्र समाज की मंगल कामना रही है। राज्योत्पत्ति के लिए अथर्ववेद (19-41-1) में आया है :-भद्रमिच्छन्त ऋषय: स्वर्विदस्तपा दीक्षां उपनिषेदुरग्रे।ततो राष्ट्रं बलमोजश्च जातं तदस्मै देवा उपसंनमस्तु।।अर्थात समग्र समाज के कल्याण की कामना करते हुए क्रांति दर्शी (ऐसे राष्ट्र चिंतक […]

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‘हाथ’ के टूटने का समय आ गया है

15 अगस्त 1947 को देश ने सदियों के स्वातंत्रय समर की अपनी लंबी साधना के पश्चात स्वतंत्रता प्राप्त की। अब देश के सामने फिर से खड़ा होने का पहाड़ सा भारी संकल्प था। भारत के कण-कण में और अणु-अणु में उस समय उत्साह था, रोमांच था, अपने नेतृत्व पर विश्वास था और ‘शिवसंकल्प’ धारण कर […]

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प्रगति और दुर्गति से जूझता लोकतंत्र

भारत की जनसंख्या चीन के पश्चात विश्व में सर्वाधिक है। यह देश विभिन्न संप्रदायों, जातियों वर्गों और समुदायों में बंटा हुआ है। इसलिए बहुत सारी सामाजिक विसंगतियां भी हमारे यहां बनी हुई हैं। इन सामाजिक विसंगतियों की देश में इतनी भरमार है कि कभी कभी तो इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि ये देश चल […]

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‘महाभारत’ के युद्घ का आंखों देखा हाल

राकेश कुमार आर्य नई दिल्ली। भारत में लोकसभा चुनावों का ‘महाभारत’ अपने चरमोत्कर्ष पर है। धृतराष्ट्र बने डा. मनमोहन सिंह अपने राजभवन में आराम फरमा रहे हैं। उनके पास वक्त तो खूब है, पर उनकी अपनी ‘वक्त’ समाप्त हो चुकी है। फुरसत में बैठे मनमोहन चुनावी समर की सूचना लेने का प्रयास कर रहे हैं। […]

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‘वायसराय’ नही जननेता चुनने का समय है

भारत के एक अधिकार विहीन लेकिन अपनी सादगी के भीतर छिपे अधिकार संपन्न प्रधानमंत्री के अवसान का समय आ गया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जा रहे हैं, लेकिन शिकन उनके चेहरे पर न होकर सोनिया गांधी के चेहरे पर हैं। डा. मनमोहन सिंह को राजनीतिक अधिकार विहीन करके बैठाया गया और ‘सोनिया कीर्तन मंडली’ ने […]

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अकबर था-फतेहपुर सीकरी का संस्थापक?

राकेश कुमार आर्य(पिछले दिनों 26 मार्च को अपनी बार एसोसिएशन के अधिवक्ता साथियों के साथ फतेहपुर सीकरी जाने का मुझे सौभाग्य मिला। हमारे 46 सदस्यीय यात्री दल का नेतृत्व बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री महीपाल सिंह भाटी कर रहे थे। जिसमें मुझसे अलग अधिवक्ता साथियों में प्रमुख नाम थे-श्री जयपाल सिंह नागर, श्री ऋषिपाल भाटी, […]

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सांस्कृतिक मूल्यों को समझने की आवश्यकता है

जब किसी विद्वान ने हिंदी साहित्य के लिए तन, मन और धन के शब्द के समुच्चय को दिया होगा तो सचमुच उसने हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की थी। ये तीन शब्द भारत की ही नही अपितु विश्व की भी समग्र व्यवस्था को अपने आप में निहित करने वाले सार्थक शब्द हैं। परिवार से […]

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आर्य-द्राविड़ की धारणा का झूठ

भारत में आर्यों को विदेशी बताने वालों ने ही यहां गोरे-काले अथवा आर्य-द्राविड़ का भेद उत्पन्न किया। जिससे यह बात सिद्घ हो सके कि भारत में तो प्राचीन काल से ही गोरे-काले का भेद रहा है और यहां जातीय संघर्ष भी  प्राचीन काल से ही रहा है। इसके लिए देवासुर संग्राम को या आर्य दस्यु […]

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सावरकर ने हमें बताया था नेहरू के कारण हम चीन से हारे

आस्टे्रलियाई पत्रकार मेक्सवेल से भी पहले सावरकर ने हमें बताया थानेहरू के कारण हम चीन से हारे राकेश कुमार आर्य जितना यह सत्य है कि अहिंसा की रक्षा हिंसा से होती है, उतना ही यह भी सत्य है कि सत्य की रक्षा शस्त्र से होती है। आजादी के बाद उभरे हमारे नेतृत्व ने भारत के […]

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