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संपादकीय

अनन्त अंतरिक्ष की संभावनाएं और वेद

अंतरिक्ष अनंत है, और जितना अंतरिक्ष अनंत है-उतना ही वेद ज्ञान अनंत है। अनंत ही अनंत का मित्र हो सकता है। जो सीमाओं से युक्त है, सीमाओं में बंधा है, ससीम है, वही सांत है, उसके ज्ञान की अपनी सीमाएं हैं, परंतु ईश्वर ने हमें ‘मन’ नाम का एक ऐसा कंप्यूटर दिया है, जिसकी शक्तियां […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

जर, जोरू और जमीन, भाग-4

यह धारणा भी इण्डो अरब संस्कृति के कथित उपासकों की इस काल्पनिक संस्कृति की परिचायक है। यदि वास्तव में यह मान लिया जाए कि संसार में जितने भी युद्घ हुए हैं वे सभी अपने-अपने वर्चस्व की स्थापना के लिए हुए हैं और ऐसा तो होता ही आया है और होता भी रहेगा, तो परिणाम क्या […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

जर, जोरू और जमीन, भाग-3

इस्लाम की व्यवस्था देखिये इस्लाम में स्पष्ट व्यवस्था है-”ऐसी औरतें जिनका खाविन्द (पति) जिंदा है, उनको लेना हराम है, मगर जो कैद होकर तुम्हारे साथ लगी हों उनके लिए तुम्हें खुदा का हुक्म है और उनके सिवाय भी अन्य दूसरी सब औरतें हलाल हैं, जिनको तुम माल अस्वाब देकर कैद से लाना चाहो, न कि […]

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संपादकीय

मुस्लिम मतों का साम्प्रदायिकीकरण

भारत की राजनीति में मुसलमानों को केवल ‘वोट बैंक’ के रूप में प्रयोग करते रहने की परंपरा कांग्रेस ने डाली थी। 1947 में जो मुसलमान भारत में रह गये थे-उनमें से अधिकांश के भीतर एक भय व्याप्त था कि पाकिस्तान की मांग मजहब के आधार पर की गयी थी-जिसे 1945-46 में हुए नेशनल असेम्बली के […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

जर, जोरू और जमीन, भाग-दो

यह काल नि:संदेह भारत में मुस्लिम शासन में ही आया था। अन्यथा हमारी तो मान्यता थी कि- ‘यंत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है। हमने माता को निर्माता माना। व्यष्टि से समष्टि तक में उसकी प्रधानता को और उसकी महत्ता को स्वीकार किया। […]

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विधि-कानून संपादकीय

तीन तलाक और संविधान पीठ

तीन तलाक के मुद्दे पर एक ठोस और सकारात्मक पहल करते हुए केन्द्र सरकार ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से चार प्रश्न पूछे हैं। जिनमें पहला है कि क्या ‘तलाक-एक-बिद्दत’ (एक बार में तीन तलाक देना) निकाह, हलाला और बहुविवाह को संविधान के अनुच्छेद 25 (1) (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) में संरक्षण प्राप्त है? […]

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अन्य राजनीति संपादकीय

शशिकला: लोकतंत्र का एक अभिशाप

महात्मा विदुर का मानना है कि राजा को चाहिए कि वह राजा कहलाने और राजछत्र धारण करने मात्र से ही संतुष्ट रहे, अर्थात राजा का ऐश्वर्य उसका राजा कहलवाना और राजछत्र धारण करना ही है। उसे चाहिए कि राज्य के ऐश्वर्यों को राज्यकर्मचारियों और प्रजा के लिए छोड़ दे, उनमें बांट दे, सब कुछ अकेला […]

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संपादकीय स्वर्णिम इतिहास

पासबां जब चोर हो तो..

13 अप्रैल 1919 भारतीय इतिहास का वह ‘काला दिवस’ है जिसे ‘जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड’ के लिए जाना जाता है। उस समय देश के स्वातंत्रय समर का क्रांतिकारी आंदोलन अपने यौवन पर था। कांग्रेस के नेता अक्सर यह कहते मिलते हैं कि देश की स्वतंत्रता के लिए हमने ही बलिदान दिये हैं-भाजपा जैसे दलों का स्वतंत्रता […]

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संपादकीय

देवासुर संग्राम का सत्य

हमें स्मरण रखना होगा कि संसार में मानव की मानवी और दानवी प्रवृत्तियों में एक शाश्वत संघर्ष चलता रहा है। इसे ‘देवासुर संग्राम’ की संज्ञा भी दी जाती है। मानव के भीतर का मानव उसे सृजनशील बनने के लिए प्रेरित करता है। उसे संसार के लिए उपयोगी और सकारात्मक बनाये रखने के लिए प्रोत्साहित करता […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

जर, जोरू और जमीन

भारतीय समाज में सामान्यतया जनसाधारण को यह कहते हुए सुना जाता है कि जर, जोरू और जमीन पर तो विश्व हमेशा से लड़ता आया है। हम विचार करें कि यह कथन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के संदर्भ में कितना प्रासंगिक और सार्थक है? गहराई से पड़ताल की जाए तो ज्ञात होता है कि इस जर, जोरू […]

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