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संपादकीय

नेहरू, चीन और शांतिपूर्ण सह -अस्तित्व की अवधारणा-2

शीतयुद्घ का काल यूरोप उस समय विश्व राजनीति का केन्द्र बिन्दु था। इसके सारे राष्ट्रों की पारस्परिक ईष्र्या, द्वेष, डाह और घृणा की भावना ने विश्व को दो महायुद्घों में धकेल दिया था। द्वितीय विश्वयुद्घ के पश्चात भी इनकी ये बातें समाप्त नही हुईं, इसलिए संसार ‘शीतयुद्घ’ के दौर में प्रविष्ट हो गया। उसने आग […]

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संपादकीय

नेहरू, चीन और शांतिपूर्ण सह -अस्तित्व की अवधारणा

पंडित नेहरू अपने इस महान देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे। इनके शासनकाल में राष्ट्र ने नये युग में प्रवेश किया था। परतंत्रता की लंबी अवधि राष्ट्र के शोषण, आर्थिक संसाधनों के दोहन और पतन का कारण बन गयी थी। सन 1947 ई. में जब  राष्ट्र स्वतंत्र हुआ तो वह टूटा हुआ जर्जरित और थका हुआ […]

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मुद्दा

कश्मीर समस्या, प्रजातंत्र, जिहाद और नेहरू

‘जब हम हाथ में पत्थर या बंदूक उठाते हैं तो इसलिए नहीं कि हम कश्मीर के लिए ऐसा कर रहे हैं। हमारा एक ही मकसद होना चाहिए कि हम इस्लाम के लिए लड़ रहे हैं, ताकि हम शरीआ को बहाल कर सकें।’ तो दोस्तों कश्मीर घाटी में अमन-शांति खोजने से पहले इस कड़वे सच को […]

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संपादकीय

नेहरू और लोकतंत्र पर दाग

बात पहले आमचुनावों की है। तब उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद पार्टी के प्रत्याशी थे। मौलाना आजाद नेहरू के निकटतम मित्रों में से थे। नेहरू अपने मित्र को हृदय से चाहते थे। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पं. गोविन्द वल्लभ पंत थे। पंत एकसुलझे […]

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प्रमुख समाचार/संपादकीय

गौहत्या पर प्रतिबंध के खिलाफ गांधी – नेहरू परिवार

दयाशंकर वाजपेयी (मोहनदास कर्मचन्द गांधी जिन्हें देश बड़े सम्मान के साथ बापू या राष्ट्रपिता भी कहता है, वह यद्यपि हिंदू धर्म के अनुयायी थे और गीता का नियमित पाठ भी करते थे, उन्होंने गौ हत्या निषेध के लिए एकबार यह भी कहा था  कि वह आजाद भारत में सबसे पहला काम गौ हत्या निषेध का […]

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संपादकीय

नेहरू काल में ही लग गया था लोकतंत्र पर दाग

बात पहले आमचुनावों की है। तब उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद पार्टी के प्रत्याशी थे। मौलाना आजाद नेहरू के निकटतम मित्रों में से थे। नेहरू अपने मित्र को हृदय से चाहते थे। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पं. गोविन्द वल्लभ पंत थे। पंत एकसुलझे […]

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राजनीति

नेहरू जी गांधीवादी थे या छद्म माक्र्सवादी?

प्रो. देवेन्द्र स्वरूपअंग्रेजी साप्ताहिक मेनस्ट्रीम का ताजा अंक (18 जुलाई) पढऩे लायक है। इस अंक की पूरी सामग्री का संयोजन 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की अभूतपूर्व विजय और उसमें से निकली नरेन्द्र मोदी की केन्द्रीय सरकार को असफल बताने के लिए किया गया है। मैं मेनस्ट्रीम का बहुत लंबे समय से नियमित पाठक […]

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संपादकीय

नेहरू हार गये और सावरकर जीत गये

अभी हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है। इस हार से पहुंचे ‘सदमे’ से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता अभी उभर नही पाए हैं। देश के लिए कांग्रेस का हार जाना बुरी बात नही है, बुरी बात है देश में अब […]

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