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धर्म-अध्यात्म

संकल्प के धनी व्यक्ति ही पाते हैं मंजिल

इस पर भर्तृहरिजी अपने एक श्लोक में प्रकाश डालते हैं :- क्वाचिद्भूमौ शय्याक्वचिदपि च पर्यंकशयनम् क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदन रूचि:। क्वचिन्तकन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बर धरो, मनस्वी कार्यार्थी न गणपति दुखं न च सुखम्।। (नीतिशतक 83) भर्तहरि जी स्पष्ट कर रहे हैं कि जो व्यक्ति संकल्प शक्ति के धनी होते हैं, विचारधील और उद्यमी होते हैं, […]

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अग्निहोत्र यज्ञ से रोग निवारण पर शोध एवं अनुसंधान की आवश्यकता

मनमोहन कुमार आर्य यज्ञ के अनेक प्रकार के भौतिक एवं आध्यात्तिमक लाभ होते हैं। यज्ञ से स्वस्थ जीवन सहित रोग निवारण भी होते हैं। यज्ञ से रोग निवारण के बारे में देश की जनता को ज्ञान नहीं है। ऋषि दयानन्द ने यज्ञ के लाभों का वर्णन करते हुए लिखा है कि देवयज्ञ न करने से […]

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ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है – प्रमाणों के आधार पर

मनमोहन कुमार आर्य प्रायः सभी मत–मतान्तरों में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है परन्तु उनमें से कोई ईश्वर के यथार्थ स्वरूप को जानने तथा उसका अनुसंधान कर उसे देश–देशान्तर सहित अपने लोगों में प्रचारित करने का प्रयास नहीं करते। ईश्वर यदि है तो वह दीखता क्यों नहीं है, इसका उत्तर भी मत–मतान्तरों के […]

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धर्म-अध्यात्म

ओ३म के उपासक महर्षि दयानंद एक देश और एक देव के समर्थक थे

(ओ३म )”ओंकार शब्द परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है , क्योंकि इसमें जो अ, उ और म तीन अक्षर मिलकर एक ‘ओ३म’ समुदाय हुआ है इस एक नाम से परमेश्वर के बहुत नाम आते हैं । जैसे अकार विराट , अग्नि , और विश्व आदि । उकार हिरण्यगर्भ , वायु और तैजस आदि ,मकार ईश्वर ,आदित्य […]

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धर्म-अध्यात्म

संकल्पशील व्यक्ति ही पाते हैं मंजिल

इस पर भर्तृहरिजी अपने एक श्लोक में प्रकाश डालते हैं :- क्वाचिद्भूमौ शय्याक्वचिदपि च पर्यंकशयनम् क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदन रूचि:। क्वचिन्तकन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बर धरो, मनस्वी कार्यार्थी न गणपति दुखं न च सुखम्।। (नीतिशतक 83) भर्तहरि जी स्पष्ट कर रहे हैं कि जो व्यक्ति संकल्प शक्ति के धनी होते हैं, विचारधील और उद्यमी होते हैं, […]

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जब प्रोफेसर मोनियर विलियम्स ने महर्षि दयानंद जी से ‘धर्म’ शब्द की परिभाषा पूछी

——————— – भावेश मेरजा आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने धर्म शब्द को अनूठे ढंग से व्याख्यायित किया है। उन्होंने धर्म शब्द की ऐसी व्याख्या की है कि जिसमें ज्ञान के साथ साथ आचरण को भी अर्थात् सत्य के अनुसंधान एवं सत्याचरण दोनों को समुचित स्थान दिया है। सर मोनियर विलियम्स प्राच्य […]

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धर्म-अध्यात्म

क्या है ओ३म और भूर्भुव: स्व: की व्याख्या

अब इस पर विचार करते हैं कि जीवात्मा जो हमारे शरीर के अंदर रहती है उसका कर्तत्व क्या है? इस बिंदु पर विचार करने के लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि ईश्वर , जीव और प्रकृति तीनों की स्वतंत्र सत्ता होती है। यह हमारे लिए प्रसन्नता का विषय है कि हमारे ऋषियों , […]

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इदं न मम का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो

इदन्नमम् की सार्थक जीवन शैली ही विश्वशांति और विश्व कल्याण की एकमात्र कसौटी है। अभी तक हमने इसी विषय पर पूर्व में भी कई बार अपने विचार स्पष्ट किये हैं। अब इस अध्याय में पुन: कुछ थोड़ा विस्तार से अपने विचार इस विषय पर रखे जा रहे हैं। भर्तृहरि जी संसार में तीन प्रकार के […]

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धर्म-अध्यात्म

क्या है दान का महत्व ?

तैत्तिरीयोपनिषद में महर्षि ने स्नातकों के दीक्षांत समारोह के अवसर पर बतायी जाने वाली कुछ ऐसी बातों का उल्लेख किया है जिनसे हमारा जीवन व्यवहार सुधर सकता है और साथ-साथ ही संसार में प्रेमपथ का विस्तार हो सकता है। वह स्नातक से कहते हैं :- श्रद्घया देयम्। अश्रद्वया देयम्। श्रियादेयम। हिृया देयम्। भियादेयम्। संविदा देयम्। […]

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धर्म-अध्यात्म

ईश्वर , वेद , जीवात्मा, सृष्टि , जन्म मरण , पुनर्जन्म का सत्य स्वरूप क्या है ?

ओ३म्============मनुष्य अल्पज्ञ प्राणी है। सभी लोग प्रायः सरकारी व निजी स्कूलों-कालेजों में पढ़ते हैं। भारत एक सेकुलर देश है। यहां मनुष्यों के शाश्वत व सनातन धर्म विषयक सत्य बातों की भी उपेक्षा की जाती है। उसे स्कूलों में पढ़ाया व बताया नहीं जाता जिसका परिणाम यह हुआ है कि अधिकांश हिन्दू बन्धु धर्म विषयक ज्ञान […]

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