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धर्म-अध्यात्म

मृत्यु : लोग कहेंगे कि हमारा हवाई जहाज ‘गुजर गया’

सुबुद्धपाठक वृंद ! मैंने अपने पिछले लेख में लिखा था कि मनुष्य ब्रह्म और काया को देख नहीं पाता। आज इससे आगे की चर्चा करता हूँ कि क्यों नहीं विमोचन या देख पाता ? हमें ध्यान रखना चाहिए कि शरीर में छिपे हुए चेतन एवं विभु दिखाई नहीं देते। लेकिन चेतन चेतना करता रहता है […]

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धर्म-अध्यात्म

खल संग कलह भल नहीं प्रीति

डा. विक्रम साराभाई के जीवन की घटना है। सन 1948 में अहमदाबाद के महात्मा गांधी विज्ञान संस्थान में दो विद्यार्थी प्रयोगशाला में प्रयोग कर रहे थे। तभी प्रयोग करते समय अधिक विद्युत प्रवाह हो जाने से यंत्र जल गया। दोनों विद्यार्थी यह देखकर डर गये। उन्हें लगा कि अब गुरू जी की डांट पड़ेगी। थोड़ी […]

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धर्म-अध्यात्म

संयत भाषा और संयत व्यवहार कैसे आए ?

संयत भाषा और संयत व्यवहार कैसे आये ? इसके लिए वेद ने कहा है :- स्वस्ति पन्थामनुचरेम् सूय्र्याचन्द्रमसाविव। पुनर्ददताअघ्नता जानता संगमेमहि।। (ऋ. 5/51/15) इस मंत्र में वेद कह रहा है कि जैसे सूर्य और चंद्रमा अपनी मर्यादा में रहते और मर्यादा पथ में ही भ्रमण करते हैं, कभी अपने मर्यादा पथ का उल्लंघन नही करते […]

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महर्षि दयानंद के जीवन का एक अनुकरणीय प्रसंग

बात सोरों की है। महर्षि दयानंद जी महाराज एक सभा में भाषण कर रहे थे। बहुत से लोग उनकी बात को दत्तचित्त होकर सुन रहे थे। बातें बड़ी सारगर्भित थीं, जो लोगों को अच्छी लगती जा रही थीं। तभी उस सभा में एक हट्टा-कट्टा पहलवान सा जाट आ धमका। वह जाट अपने कंधे पर एक […]

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करना होगा जीवन की सार्थकता का बोध

अभी हमारे परिवार में एक दुखद घटना घटित हुई । मेरे ज्येष्ठ भ्राताश्री की पुत्रवधू को 7 माह के गर्भ काल में एक बच्चा ऑपरेशन से पैदा हुआ । वह बच्चा केवल 30 घंटे के बाद ही इस संसार को छोड़कर चला गया। उसका संपर्क , संबंध और संस्कार हमसे मात्र 30 घंटे का रहा […]

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स्वार्थ भाव मिटे हमारा प्रेम पथ विस्तार हो

प्रेम में सृजन है, और प्रेम में परमार्थभाव भी है। कैसे ? अब यह प्रश्न है। इसके लिए महात्मा बुद्घ के जीवन के इन दो प्रसंगों पर तनिक विचार कीजिए। महात्मा बुद्घ एक घर में ठहरे हुए थे। एक व्यक्ति जो उनसे घृणा करता था, उनके पास आया और उसने आते ही उन पर थूक […]

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धर्म-अध्यात्म

जीवन में कर्म की प्रधानता

-पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समा:। एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।। (यजुर्वेद अध्याय ४०, मन्त्र २) अन्वय :- इह कर्माणि कुर्वन् एव शतं समा: जिजीविषेत्। एवं त्वयिनरे न कर्म लिप्यते। इत: अन्यथा न अस्ति। अर्थ- (इह) इस संसार में (कर्माणि) कर्मो को (कुर्वन् एव) करते हुए ही मनुष्य (शतं समा:) सौ वर्ष […]

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धर्म-अध्यात्म

महर्षि चरक का दृष्टांत और पर्यावरण प्रदूषण

महर्षि चरक एक दिन अपने शिष्यों के साथ रात्रि में चांदनी के प्रकाश में भ्रमण कर रहे थे । महर्षि अचानक रुक गए । शिष्यों ने गुरुजी के इस प्रकार अचानक रुक जाने का कारण पूछा तो कहने लगे कि मुझे वायु और जल का प्रदूषण बढ़ता दिखाई दे रहा है। मैं रुक इसलिए गया […]

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धर्म-अध्यात्म

ईश्वर के स्वरूप का दार्शनिक और वैज्ञानिक विवेचन वेद की नित्य ता पर प्रकाश , भाग 2

(सत्यार्थ प्रकाश के सप्तम समुल्लास के आधार पर) लेखक- पं० क्षितिश कुमार वेदालंकार ईश्वर सर्वशक्तिमान् है- वाह, जब ईश्वर को सर्वशक्तिमान् कहते हो, अर्थात् वह सब कुछ कर सकता है, तो फिर अवतार ग्रहण क्यों नहीं कर सकता? यह भी एक बड़ा विचित्र भ्रम लोगों में फैला हुआ है। जिस प्रकार पौराणिक बन्धु परमात्मा को […]

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धर्म-अध्यात्म

हम वस्तुतः कौन हैं क्या शरीर हैं अथवा आत्मा हैं ?

ओ३म् ========= हम अपने नाम, माता-पिता तथा आचार्य आदि के नामों व सम्बन्धों से जाने पहचाने जाते हैं। हमें स्कूलों में यह नहीं बताया जाता है कि वस्तुतः व तत्वतः हम कौन हैं? हमारे पास देखने के लिए आंखें, सुनने के लिये कान, चलने के लिए पैर, सूंघने के नासिका तथा पदार्थों का स्वाद जानने […]

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