एक उस्ताद अपने कई शिष्यों को एक साथ पहलवानी के दांव-पेंच सिखाया करते थे। उन्होंने अपने एक प्रिय शिष्य को कुश्ती के सारे दांव-पेंच सिखा दिये। जिससे वह अच्छे-अच्छे पहलवानों को कुश्ती में पटकने लगा। उससे कुश्ती लडऩे का साहस अब हर किसी का नहीं होता था। अपने सामने से पहलवानों को इस प्रकार भागता […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
सकाम कर्म करने वाला सदैव अपने लिए शुभ फल की इच्छा किया करता है ,और यह फल इच्छा पूर्ण होने पर वासना पैदा करता है। अर्थात बार-बार किसी कार्य को करने को वासना कहते हैं। वासना से फिर वही फल इच्छा उत्पन्न होती है ।यह चक्र बराबर इसी प्रकार से जन्म जन्मांतर से चला […]
विनम्रता वैदिक धर्म का एक प्रमुख गुण है। सारी विषम परिस्थितियों को अनुकूल करने में कई बार विनम्रता ही काम आती है। इसीलिए विनम्र बनाने के लिए विद्या देने की व्यवस्था की जाती है। विद्या बिना विनम्रता के कोई लाभ नहीं दे सकती और विनम्रता बिना विद्या के उपयुक्त लाभ नहीं दे सकती। कहा गया […]
एक व्यक्ति किसी महात्मा के पास गया। महात्मा जी की साधना की दूर-दूर तक चर्चा थी। उनके चेहरे के तेज को देखकर ही पता चल जाता था कि उनकी साधना बहुत ऊंची है। वह व्यक्ति भी तो उनकी उच्च साधना से प्रभावित होकर ही उनके पास पहुंचा था। उसे कुछ पूछना था, कुछ जानना […]
इस प्रकार जब हम यह कहते हैं कि ‘कंकर-कंकर में शंकर हैं’-तो उसका अभिप्राय यही है कि हर कंकर शंकर का निर्माण करने में सहायक है। इसे आप यूं भी कह सकते हैं कि जब हर ‘कंकर’ की एक दूसरे के साथ जुडऩे की भावना होती है तो वह एक विशाल चित्र का रूप बन […]
मानव शरीर में कुल 8 चक्र होते हैं । जिनका प्राणायाम से भी बड़ा गहरा संबंध है । इस अध्याय में हम यही स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे कि प्राणायाम के करने से चक्रों को कैसे सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति प्राप्त होती है ?अथर्ववेद का यह मंत्र है :-अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या, तस्यां हिरण्यमय: कोश […]
देश से वेद-विद्या लुप्त की जा रही है, और देश का मूल संस्कार परमार्थ के स्थान पर स्वार्थ बनाया जा रहा है। देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली और बाजारीकरण पर केन्द्रित देश की अर्थव्यवस्था इस स्थिति के लिए उत्तरदायी हैं। सर्वत्र मारा-मारी और एक दूसरे के अधिकारों के हनन की भावना मनुष्य पर हावी […]
युधिष्ठिर धर्म के अनुसार आचरण करने वाले होने के कारण ‘धर्मराज’ कहलाए । जिनके मन, वचन और कर्म में सदा सत्य समाहित होता था । इसी प्रकार से रघुकुल में अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र ने धर्म की रक्षा के लिए वाराणसी अर्थात काशी में स्वयं अपने आप को और अपने पुत्र व पत्नी को भंगी […]
भारत में अत्यंत प्राचीन काल से ‘इदन्नमम्’ की सार्थक जीवन परंपरा रही है और हमारे पूर्वजों ने इसी सार्थक जीवन परंपरा के माध्यम से विश्व व्यवस्था का विकास किया है। इस परंपरा का प्रारंभ देखिये कहां से होता है? निश्चय ही उस पल से जब ईश्वर ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नाम के ऋषियों […]
हमारे शरीर में स्थित अंतःकरण में चित्त स्थित होकर अपना कार्य करता है। उसका बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। चित् से वृत्तियां उठा करती हैं। चित्त से उठने वाली ये वृत्तियां दो प्रकार की होती हैं – प्रथम बहुमुखी और द्वितीय अंतर्मुखी। मनुष्य को सफल जीवन जीने के लिए चित्त की वृत्तियों को एकाग्र करना […]