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आज का चिंतन

सत्य घटना : कर्मफल सिद्धांत के प्रमाण

वैदक धर्म का मुख्य आधार कर्मफल का नियम है इसका तात्पर्य है की मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कर्म करता है एक न एक दिन उसका परिणाम अवश्य मिलता है , हरेक कर्म की तीन गतियां होती हैं क्रियमाण यानि जब हम कार्य करते हैं उनमे कुछ का तुरंत परिणाम मिल जाता लेकिन कुछ […]

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खरमास के बारे में कुछ जरूरी तथ्य

डा. राधे श्याम द्विवेदी वैदिक पंचांग के अनुसार एक साल में 12 संक्रांति होती हैं। सूर्य जब भी एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो वह क्षण संक्रांति के नाम से जाना जाता है। वहीं सूर्यदेव जिस भी राशि में प्रवेश करते हैं, उसी राशि का नाम संक्रांति के साथ जुड़ […]

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आर्ष किसे कहते हैं ?

आर्य शब्द ऋ (गतौ) धातु से तथा अर्य शब्द से तद्धित में बनता है। गति से क्रियाशील अर्थ आर्य का सिद्ध होता है। यह क्रियाशीलता और कर्म शीलता का प्रतीक है। इसमें नैरंतर्य है, सतत साधना है, प्रगति और उन्नति की ऊंचाई की ओर बढ़ने का शिव संकल्प है। इसीलिए कहा जाता है कि गतेस्त्रयोऽर्थाः […]

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दिव्यांगता शारीरिक और मानसिक होने से ज्यादा हमारी सोच में है

हरीश कुमार पुंछ, जम्मू हर वर्ष 3 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांग व्यक्तियों का दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। इसकी शुरुआत 1992 मे संयुक्त राष्ट्रीय संघ द्वारा की गई थी। यह दिवस दिव्यांगों के प्रति करुणा, आत्मसम्मान और उनके जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इसका एक और उद्देश्य […]

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पौराणिक मान्यताएं और महिषासुर का सच

गंगा आख्यान : डॉ डी के गर्ग : पौराणिक मान्यताये: गंगा का उदगम और इसके आध्यात्मिक और भौतिक स्वरूप का वर्णन ऋषियों ने,कवियों ने और कथाकारों ने अलग अलग रूप से किया है,इस विषय में एक नहीं अनेको कहानिया प्रचलित है , गंगा शब्द का प्रयोग वेदों में भी किया गया है। जिनको वास्तविक रूप […]

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*🌷ईश्वर का आश्रय ही सबसे बड़ा आश्रय🌷*

ओ३म् 🌷 ईश्वर कहता है― *अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनं न मृत्यवेऽव तस्थे कदा चन । सोममिन्मा सुन्वतो याचता वसु न मे पूरवः सख्ये रिषाथन ।। ―(ऋ० १०/४८/५) भावार्थ―मैं परमैश्वर्यवान् सूर्य के सदृश सब जगत् का प्रकाश हूँ। कभी पराजय को प्राप्त नहीं होता और न कभी मृत्यु को प्राप्त होता हूँ।मैं ही जगद्रूप धन […]

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श्री सम्प्रदाय के श्रीयामुनाचार्यजी राजा भी और सन्त भी

आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी अल्पायु में पिता की छत्रछाया छिनी :- संवत् 965 में आचार्य नाथमुनि अवतरित हुए हैं। उनके पुत्र का नाम ईश्वरमुनि तथा पौत्र थे यामुनाचार्य। ये सभी वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हुए थे। बालक यामुनाचार्य विक्रमी संवत् 1010 को दक्षिणात्य आषाढ़ माह के उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में काट्टुमन्नार् कोविल, वीर नरायणपुराम , […]

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क्या हम मनुष्य हैं?

मनमोहन कुमार आर्य ​हम मनुष्य कहलाते हैं परन्तु क्या हम वात्सव में मनुष्य हैं? हम मनुष्य क्यों कहलाते हैं? इस प्रश्न का उत्तर है कि हमारे पास मन व बुद्धि है जिससे हम विचार कर किसी वस्तु या पदार्थ आदि के सत्य व असत्य होने का निर्णय करते हैं। यदि मनुष्य किसी बात को मानता […]

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जीवों पर दया

जीवों पर दया श्री टी.एन. शेषन जब मुख्य चुनाव आयुक्त थे, तो परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के लिए मसूरी जा रहे थे। परिवार के साथ उत्तर प्रदेश से निकलते हुऐ रास्ते में उन्होंने देखा कि पेड़ों पर गौरैया के कई सुन्दर घोंसले बने हुए हैं। यह देखते ही उनकी पत्नी ने अपने घर की […]

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ईश्वर सभी सांस्कारिक संबंधों से भिन्न और विशिष्ट है

!!ओ३म् !! ईश्वर सभी सांस्कारिक संबंधों से भिन्न और विशिष्ट है । ईश्वर को समझने-समझाने के लिए उसकी तुलना माता से किया जाता है क्योंकि जैसे गर्भ में माता के प्राणमय कोश से शिशु के प्राणमय कोश का पालन होता , माता के अन्नमय कोश से शरीर बढ़ता वैसे ही जगदीश्वर पालन करने हारे प्राण […]

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