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विशेष संपादकीय

लोकतंत्र तेरी जय हो

विशेष सम्पादकीय :  महाभारत में आया है कि ऐसा राजा जो प्रजा की रक्षा करने में असमर्थ है और केवल जनता के धन को लूटना ही जिसका लक्ष्य होता है और जिसके पास कोई नेतृत्व करने वाला मंत्री नहीं होता वह राजा नहीं कलियुग है। समस्त प्रजा को चाहिए कि ऐसे निर्दयी राजा को बांध कर […]

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अन्य राजनीति संपादकीय

शशिकला: लोकतंत्र का एक अभिशाप

महात्मा विदुर का मानना है कि राजा को चाहिए कि वह राजा कहलाने और राजछत्र धारण करने मात्र से ही संतुष्ट रहे, अर्थात राजा का ऐश्वर्य उसका राजा कहलवाना और राजछत्र धारण करना ही है। उसे चाहिए कि राज्य के ऐश्वर्यों को राज्यकर्मचारियों और प्रजा के लिए छोड़ दे, उनमें बांट दे, सब कुछ अकेला […]

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संपादकीय

….अन्यथा लोकतंत्र मर जाएगा

लोकतंत्र में विपक्ष का होना अनिवार्य है। इसका कारण ये है कि लोकतंत्र लोकहित के लिए तभी स्वस्थ कार्य कर सकता है जब शासक वर्ग की नीतियों में कमी निकालने वाला भी उसी के साथ बैठा हो। राजतंत्र में कभी चाटुकार राजदरबारी हुआ करते थे, जो अपने राजा की हां में हां मिलाने वाले होते […]

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राजनीति

लोकतंत्र के लिए खुद को बचाए कांग्रेस

प्रो. एनके सिंह कांग्रेस अब तक जिस अंदाज में काम करती आई है, उसे छोडक़र अब आगे बढऩे के लिए नई दिशाएं चुननी होंगी। गांधीजी के कार्य के तौर-तरीके मौलिक थे और इसी वजह से आज उनकी गिनती ऐसे राजनेताओं में होती है, जिन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी एक खास छाप छोड़ी है। हालांकि इससे पहले […]

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राजनीति

लोकतंत्र को सशक्त बनाएगा ‘राइट टू रिकॉल’

निधि शर्मा जनता को आवाज बुलंद करने के लिए प्रतिनिधि के रूप में हथियार तो दिए गए हैं, लेकिन इन हथियारों के उद्देश्यों की पूर्ति न होने पर इन्हें बदलने का अधिकार नहीं दिया गया है। आज इस असहाय परिस्थिति को बदलना काफी जरूरी हो गया है। इसमें बदलाव देश के सभी राज्यों में ग्रामीण […]

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राजनीति

लोकतंत्र के लिए सबसे शर्मनाक सत्र

मृत्युंजय दीक्षित संसद का वर्तमान मानसून सत्र संभवत: 68 वर्षो में सबसे शर्मनाक सत्र के रूप में याद किया जायेगा। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश के जनमानस मे आशा व उम्मीदों का एक नया दीप जला था लेकिन कांग्रेस पार्टी के केवल दो बड़े नेताओं श्रीमती सोनिया गांधी व राहुल गांधी की […]

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संपादकीय

केजरीवाल लोकतंत्र और पारदर्शिता

राजनीति में नैतिकता और शुचिता लाकर पूर्ण पारदर्शिता से कार्य करने की बात कहकर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली पर अधिकार किया था। उन्होंने दिल्ली के विधानसभ चुनावों में अप्रत्याशित जीत प्राप्त की। जनता ने देश मोदी को दे दिया और दिल्ली केजरीवाल को। राजनीति अपने मूल स्वभाव में अनैतिक और अशुचितापूर्ण कार्यों का […]

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संपादकीय

यह लोकतंत्र नही, यह तो ‘शोकतंत्र’ है

लोकतंत्र को सभी शासन प्रणालियों में सर्वोत्तम शासन प्रणाली के रूप में दर्शित किया जाता है। वैसे लोकतंत्र का अर्थ लोक की लोक के द्वारा लोक के लिए अपनायी गयी शासन व्यवस्था है। जिसमें हमें अपने सर्वांगीण विकास के सभी अवसर उपलब्ध होते हैं। वेद ने ऐसी व्यवस्था को ‘स्वराज्यम्’ कहा है। अत: विश्व में […]

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संपादकीय

नेहरू काल में ही लग गया था लोकतंत्र पर दाग

बात पहले आमचुनावों की है। तब उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद पार्टी के प्रत्याशी थे। मौलाना आजाद नेहरू के निकटतम मित्रों में से थे। नेहरू अपने मित्र को हृदय से चाहते थे। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पं. गोविन्द वल्लभ पंत थे। पंत एकसुलझे […]

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