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संपादकीय

संविधान नहीं राजनीति बदलो

भारत अपना 68वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। अब से ठीक 68 वर्ष पूर्व भारत ने अपने गणतान्त्रिक स्वरूप की घोषणा की थी। 26 जनवरी 1950 से देश ने अपने राजपथ के गणतंत्रीय स्वरूप को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया। अब 68 वर्ष पश्चात देश के कई लोगों को चिन्ता होने लगी है कि भारत का […]

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राजनीति

गुणवत्ता के नाम पर राजनीति कितनी उचित कितनी अनुचित

ऋषभ कुमार मिश्र ‘असफल विद्यालय’ का तर्क देकर सरकार अपने दायित्व से पीछा नहीं छुड़ा सकती। विद्यालयों की स्वायत्तता निजी हाथों में सौंपने से पहले अपनी विरासत को याद करना जरूरी है। महात्मा गांधी एक आत्मनिर्भर और स्वायत्त विद्यालय की परिकल्पना में विश्वास करते थे। एक ऐसा विद्यालय जिसका प्रबंधन स्थानीय समुदाय के पास हो […]

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संपादकीय

अब क्रान्ति होनी चाहिए

देश के विषय में ना तो कुछ सोचो ना कुछ बोलो ना कुछ करो और जो कुछ हो रहा है उसे गूंगे बहरे बनकर चुपचाप देखते रहो-आजकल हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता की यही परिभाषा है। यदि तुमने इस परिभाषा के विपरीत जाकर देश के बारे में सोचना, बोलना, लिखना, या कुछ करना आरम्भ कर दिया […]

जेटली जी! यानि जेब लूट ली

देश की राजनीति में और देश के हर राजनीतिक दल में कुछ ऐसे लोग हुआ करते हैं जिन्हें लोकमान्यता तो प्राप्त नहीं होती-पर वे सत्ता सुख भोगने में सफल हो जाते हैं। हमारी संविधान प्रतिपादित लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे छिद्र हैं जिनमें से कुछ लोग देश के लोकतंत्र के पावन मंदिर संसद के ऊपरी सदन […]

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राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही ‘राहुल’ काफी है

अवधूत दत्तात्रेय हर क्षण किसी से ज्ञान प्राप्त करने के लिए तत्पर रहा करते थे। वह पशु-पक्षियों एवं कीट पतंगों की गतिविधियों को बड़े ध्यान से देखा करते और विवेचना कर उनसे शिक्षा प्राप्त किया करते थे। दत्तात्रेय अक्सर कहा करते थे कि ”जिनसे मैं कोई भी शिक्षा लेता हूं वे मेरे गुरू हैं।” एक […]

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राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

राजनीति में एक ‘नचकैंया भालू’

भारत लोकतंत्र की जन्मस्थली है। आज का ब्रिटेन और अमेरीका तो भारत के लोकतंत्र की परछाईं मात्र भी नहीं है। हमारे ‘शतपथ ब्राह्मणादि ग्रंथों’ में राजनीतिशास्त्रियों के लिए कई बातें अनुकरणीय रूप से उपलब्ध हैं। ‘शतपथ ब्राह्मण’ में राजकीय परिवार के लोगों के राजनीतिक अनुभवों से देश को लाभान्वित करने के उद्देश्य से इस परिवार […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र भारतीय संस्कृति राजनीति संपादकीय

भारतीय राजनीति का घटिया स्तर

भारत के विश्व स्तर पर बढ़ते सम्मान को देखकर भारत के दो प्रकार के शत्रुओं के पेट में दर्द हो रहा है। इनमें से एक बाहरी शत्रु हैं तो दूसरे भीतरी शत्रु हैं। बाहरी शत्रुओं में सर्वप्रमुख पाकिस्तान और चीन हैं, जबकि भीतरी शत्रुओं में भारत के भीतर बैठे पाक-चीन समर्थक तो हैं ही साथ […]

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राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

सरकारी नौकरी पेशा लोगों को भी मिले राजनीति करने की छूट

हमारे देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी एक बार अपनी सोवियत संघ की यात्रा पर थीं, जहां उन्होंने अपना भाषण अंग्रेजी में देना आरंभ कर दिया था। तब उन्हें वहां के राष्ट्रपति की उपस्थिति में इस बात के लिए टोक दिया गया था कि-‘आप अपना भाषण या तो हिंदी में दें या फिर रूसी […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

आग लगाने में ‘प्रवीण’ तोगडिय़ा

प्राचीन भारत के लगभग सभी राजशास्त्रियों ने राजा की सफलता के लिए षाड्गुण्य मत के साथ-साथ उपायों का भी वर्णन किया है। कामंदक का कथन है कि उपाय से मतवाले हाथियों के मस्तक पर भी चरण रख दिया जाता है। जल अग्नि को बुझाता है,  परंतु उपाय द्वारा इस अग्नि से ही वह जल सुखा […]

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राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

किसानों के मर्म को सहलाते प्रधानमंत्री

देश के किसानों की दशा इस समय सचमुच दयनीय है। सारी राजनीतिक पार्टियां इस पर राजनीति तो कर रही है पर किसानों की समस्याओं का समाधान क्या हो, और कैसे निकाला जाए इस पर कोई कार्य नहीं हो रहा है। समस्या को उलझाकर उसे और भी अधिक जटिल करने की कुचालें और षडय़ंत्र तो सबके […]

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