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विशेष संपादकीय संपादकीय

आग लगाने में ‘प्रवीण’ तोगडिय़ा

प्राचीन भारत के लगभग सभी राजशास्त्रियों ने राजा की सफलता के लिए षाड्गुण्य मत के साथ-साथ उपायों का भी वर्णन किया है। कामंदक का कथन है कि उपाय से मतवाले हाथियों के मस्तक पर भी चरण रख दिया जाता है। जल अग्नि को बुझाता है,  परंतु उपाय द्वारा इस अग्नि से ही वह जल सुखा दिया जाता है। भारतीय राजनीति का और राजनीति शास्त्र का सिद्घांत भी यही है कि जल को अग्नि बुझाने के लिए और समय आने पर अग्नि को जल सुखाने के लिए प्रयोग करना चाहिए। जो राजनीतिज्ञ इस गुण को अपनाने में या इस उपाय को समझने में असफल रहता है वह कभी राजनेता नहीं बन सकता। 

भारत के सभी हिंदूवादी दलों और संगठनों के नेता अपने आपको हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीति का ‘चाणक्य’ समझने के मतिभ्रम में  जीते हैं। इनमें से अधिकांश लोग ऐसे हैं जो हिन्दुत्वनिष्ठ राजनीति का अभिप्राय तक नहीं समझते, ना ही भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को ये लोग समझ पाते हैं। लोगों को भडक़ाने के लिए और उनकी भावनाओं से खिलवाड़ करने के लिए ये लोग ऐसे शब्दों का चयन करते हैं। इससे अधिक इनके पास कुछ नहीं होता। विश्वहिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगडिय़ा को ही लें। वह कह रहे हैं कि भारत में इस समय किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं, अपितु किसानों का नरसंहार इस समय हो रहा है। तोगडिय़ा जी का मानना है कि कश्मीर में रबर की गोलियां चलाईं जाती हैं और मध्य प्रदेश में किसानों पर बुलेट चल रही है। देश भर में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। यह आत्महत्या नहीं नरसंहार है। अन्याय के खिलाफ देश के किसान सडक़ों पर उतरकर आंदोलन करेंगे। विहिप ‘फोर एक्शन प्लान’ पर काम कर रही है। 
विहिप नेता का वक्तव्य तात्कालिक आधार पर किसानों को भडक़ाने वाला है। किसानों की समस्याएं क्या हैं?- और क्या उनके समाधान हो सकते हैं? साथ ही भारत के किसानों के लिए भारत की वैदिक व्यवस्था क्या थी और आज क्या हो सकती है? – इस पर श्री तोगडिय़ा का कोई स्पष्ट चिंतन नहीं आया। इस समय भाजपा की सरकार है और नरेन्द्र मोदी प्रवीण तोगडिय़ा जैसे बड़बोले नेताओं को अधिक महत्व नहीं दे रहे हैं-इसलिए तोगडिय़ा जैसे लोगों के पेट में बार-बार दर्द होता है और वे अपने भीतर की कुंठा को कहीं न कहीं सरकार के विरूद्घ वातावरण बनाने में प्रयोग कर जाते हैं। वैसे प्रवीण तोगडिय़ा राम मंदिर निर्माण के आंदोलन से लेकर आज तक भावनात्मक रूप से एक अच्छा भाषण देने के लिए जाने जाते रहे हैं। वह एक अच्छे कथाकार हो सकते हैं-क्योंकि वह भाषण देते-देते रोने भी लगते हैं, और उपस्थित श्रोताओं को भावुक करने की कला भी जानते हैं। परंतु राजनीति भावनात्मक कला से अलग है। यहां यथार्थ के धरातल पर कार्य करना होता है। यह कार्य भी ऐसा होना चाहिए जो लोगों का सामूहिक भला कर सके, अर्थात लोककल्याण कर सके। भारत में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति तब तक ही अच्छी लगती है जब तक मुस्लिमों के तुष्टिकरण को कोसा जाए और उसे हटाकर भारत में समान नागरिक संहिता लागू कराने की बात की जाए। सावरकर ऐसी ही सोच की राजनीति को हिंदुत्वनिष्ठ राजनीति का नाम देते हैं। प्रवीण तोगडिय़ा जैसे नेताओं के पास ऐसा चिंतन होना चाहिए कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति पहले भारतीय बन जाए और भारतीय से भी पहले एक मानव बन जाए। अब यह कैसे संभव हो, और कैसे यह लागू किया जाए?-इस पर भारत की राजनीति को काम करना चाहिए। इसके लिए कामंदक का उपरोक्त सूत्र अपनाने के लिए हमें राजधर्म में प्रवीणता प्राप्त करनी होगी। जिसके अनुसार जल अग्नि को बुझाने वाला तो हो ही साथ ही समय आने पर अग्नि जल को सुखाने की सामथ्र्य रखने वाली भी हो। ‘हिन्दू-हिन्दू’ और ‘मुस्लिम-मुस्लिम’ का शोर मचाकर जो लोग भारत में अपनी राजनीति कर रहे हैं-वह हिंदुत्वनिष्ठ राजनीति का अपमान कर रहे हैं। इनके चिंतन में कहीं दोष है और इनकी साधना में कहीं कमी है। 
हिंदुत्वनिष्ठ राजनीति वर्गीय संघर्ष या साम्प्रदायिक सद्भाव को विकृत करने वाली किसी भी सोच की विरोधी है। राजनीति शास्त्र से संबंधित भारतीय वांग्मय में जितने भी सूत्र या श्लोक आते हैं उनमें कहीं पर भी मानव मानव के मध्य विभेद करने वाली नीतियों को अपनाने की वकालत नहीं की गयी है। इसके विपरीत सभी प्रकार के विभेदों को पाटकर मानव को मानव के निकट लाने की राजनीति पर बल दिया गया है। 
भारतीय राजनीति जिस समय राम मंदिर निर्माण पर मौन थी और मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते हिंदू विरोध की राजनीति को अपना मौलिक संस्कार माने बैठी थी -उस समय राम जन्मभूमि के मुददे को गर्माना और हिन्ंदू के भीतर आत्मस्वाभिमान पैदा करने के लिए उसे राजनीतिक रूप से चेतनित करना आवश्यक हो सकता है, परंतु हिन्दू को मुसलमान के विरूद्घ आक्रामक बनाकर वर्गीय संघर्ष को जन्म देना उचित नहीं हो सकता। 
प्रवीण तोगडिय़ा जी! कभी आग लगाना अच्छा होता है, तो कभी आग बुझानी भी होती है। आपके पास आग लगाने के अनेक यंत्र हो सकते हैं, अनेक मंत्र हो सकते हैं परंतु आग बुझाने का तंत्र आपके पास नहीं है। अच्छा हो पहले आप इस आग बुझाने के तंत्र को भी विकसित कर लें। राष्ट्र में शांति रखने के लिए इस तंत्र की आवश्यकता होती है। आप किसानों को भडक़ा सकते हैं, परंतु उन्हें शांत नहीं कर सकते। उनके कर्जे माफ करना भी समस्या का कोई समाधान नहीं है। किसान की समृद्घि के लिए आपकी योजना में और चाहे कुछ भी हो पर वैदिक चिंतन कहीं नहीं है। अच्छा हो थोड़ा उस पर आप चिंतन करें और फिर सरकार को यह बताने का प्रयास करें कि देश में किसान आत्महत्या नहीं कर रहा, अपितु किसानों का नरसंहार हो रहा है।

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