पश्चिमी देशों ने भोग के रोग से मुक्ति पाने हेतु भारत के योग को अपनाना आरंभ कर दिया है-इस संकेत से हमें उत्साहित होना चाहिए। हमें मानना चाहिए कि हमारी ग्राहयता यदि कहीं बढ़ रही है, तो निश्चित रूप से कुछ ऐसा हमारे पास है जो उनकी दृष्टि में अनमोल है। हमारी दृष्टि में यह […]
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पांच प्रतिशत बनाम पिचानवें प्रतिशत का अनुपात हुआ करता है। किंतु इसके उपरांत भी पिचानवें प्रतिशत लोगों को रास्ता दिखाने और बताने का कार्य ये पांच प्रतिशत लोग ही किया करते हैं। कहने का अभिप्राय है कि जमाना पिचानवें प्रतिशत लोगों से बनता है, किंतु जमाने को सही दिशा या रास्ता सिर्फ पांच प्रतिशत लोग […]
अकर्मण्यता हमारा लक्ष्य न हो प्रकृति अपना कार्य कर रही है, इतिहास अपना कार्य कर रहा है। कालचक्र अपनी गति से घूम रहा है। तीनों बातें भारत के पक्ष में हैं। किंतु इसका अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाएं या अकर्मण्यता को गले लगाकर अपने दुर्भाग्य की पटकथा […]
पर्यावरण नियंत्रक सांस्कृतिक प्रकोष्ठ’ में कार्यरत व्यक्तियों के लिए आवश्यक हो कि वे संस्कृत के जानने वाले तो हों ही, साथ यज्ञ विज्ञान की गहराइयों को भी सूक्ष्मता से जानते हों। कौन सी सामग्री किस मौसम में और किस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने में हमें सहायता दे सकती है-इस बात को ये लोग […]
महर्षि दयानंद ने कहा था- ”यदि अब भी यज्ञों का प्रचार-प्रसार हो जाए तो राष्ट्र और विश्व पुन: समृद्घिशाली व ऐश्वर्यों से पूरित हो जाएगा।” इस बात से लगता है कि भारत सरकार से पहले इसे विश्व ने समझ लिया है। देखिये-फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रो. टिलवट ने कहा है- ”जलती हुई खाण्ड के धुएं में पर्यावरण […]
ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अपनायें अब विचार करें कि उसे हम क्या दे रहे हैं? कदाचित ‘कुछ भी नहीं’ उसके प्रति कोई कृतज्ञता नहंी, कोई धन्यवाद नहीं। यही तो है नास्तिकता। यदि हम ईश्वर के प्रति भी कृतज्ञ होकर धन्यवाद करना और कहना सीख लें तो हमारे और शेष संसार के संबंध मानवीय ही नहीं, […]