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बिखरे मोती

रिश्ते सम्भाल कै राखिये, मत रखना दुर्भाव

बिखरे मोती भाग-76 गतांक से आगे……व्याख्या :-जो विद्यार्थी आलसी है अर्थात-आज का काम कल पर टालता है, मादक पदार्थों (नशीले पदार्थों का सेवन करता है तथा अश्लील बातों में रूचि रखता है, लालची है तथा जो कभी एकाग्रचित नही होता है, मूर्खता की बातों में रत रहता है यानि मूर्ख है। इसके अतिरिक्त अप्रसांगिक बातें […]

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बिखरे मोती

बुरा कहै संसार ये, जिसको हो अभिमान

बिखरे मोती-74 गतांक से आगे….दक्ष कृतज्ञ मतिमान हो,ऋजुता से भरपूर।भृत्य-मित्र को प्राप्त हो,बेशक धन से दूर ।। 806 ।। अर्थात जो व्यक्ति चतुर है, उपकार को मानने वाला है, बुद्घिमान है और उसका कुटिलता रहित उत्तम स्वभाव है। ऐसा व्यक्ति धन रहित होने पर भी भृत्यों (सेवकों) और मित्रों के समूह को प्राप्त होता है।बुरा […]

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बिखरे मोती

धृति विवेक के कारनै, सज्जन कीर्ति पाय

बिखरे मोती भाग-73गतांक से आगे….वध के योग्य शत्रु को,अगर न मारा जाए।बदला लेवै एक दिन,फिर पीछे पछताय ।। 796 ।। बच्चे बूढ़े श्रेष्ठजन,इन पर क्रोध को रोक।दखल जरूरी हो अगर,तो बड़े प्यार से टोक।। 797।।मूरख से उलझै नही,सत्पुरूष वक्त टलाय।धृति विवेक के कारनै,सज्जन कीर्ति पाय ।। 798।। सुख समृद्घि दरिद्रता,यह कर्मों का खेल।कहीं मूरख भी […]

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हृदय में यदि प्रेम हो, तो नेत्र प्रकट कर देय

बिखरे मोती भाग-71गतांक से आगे….संसार में हमारे मनीषियों ने बलों को निम्न पांच श्रेणियों में रखा है:-1. कुल-बल अर्थात पिता, पितामह संबंधी स्वाभाविक बल2. अमात्य-बल अर्थात हितकारी मंत्री अथवा मित्र का होना।3. धन बल अर्थात धन दौलत की प्रचुरता4. शारीरिक बल अर्थात बाहुबल5. बुद्घि बल अर्थात प्रज्ञाबलउपरोक्त पांचों प्रकार के बलों में सर्वश्रेष्ठ बल-बुद्घि का […]

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गैरों के दुर्गुण जानकर, दुर्जन खुशी मनाय

बिखरे मोती भाग-70गतांक से आगे….रोगी को कड़वी दवा,लगता बुरन परहेज।विपदा कुण्ठित मति करै,और घट जावै तेज ।। 766 ।। कुण्ठित मति-बुद्घि का भ्रष्ट होना, आया है संसार में,कर पुण्यों का योग।कर्माशय से ही मिलें,आयु योनि भोग ।। 767 ।। कर्माशय-प्रारब्ध पूर्णायु बल सुख मिलै,सेहत की सौगात।परिमित भोजन जो करे,लाख टके की बात ।। 768 ।। […]

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क्रोध नष्ट करे संपदा, अभिमान गुणों को खाय

बिखरे मोती भाग-68 गतांक से आगे….क्रोध और संताप का,पड़े सेहत पर प्रभाव।इन दोनों का शमन कर,अक्षुण्ण रहेगा चाव ।। 755।। संताप-तनावशमन-शांत करना, पीना, निगलना ‘अक्षुण्ण रहेगा चाव’ से अभिप्राय-जीवन जीने का उत्साह बना रहेगा। क्रूर के आश्रित लक्ष्मी,करती कुल का नाश।सत्पुरूष की लक्ष्मी,करै पीढ़ी का विकास ।। 756।। श्रद्घाहीन को सीख दे,और सबल से राखै […]

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सच्चे मित्र की पहचान

बिखरे मोती भाग-67 गतांक से आगे….भय शंका से रहित हो,पिता तुल्य विश्वास।ये लक्षण जिसमें मिले,मित्र समझना खास ।। 750 ।। भाव यह है कि मित्र वह नही है, जिससे तुम्हें डर लगता हो अथवा जिस पर तुम्हें संदेह रहता हो अपितु सच्चा मित्र तो वह है जिससे तुम्हें शक्ति मिलती है जिसका आचरण संदेह से […]

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बिखरे मोती

जब भी बोलें सोच समझकर बोलें

बिखरे मोती भाग-66 गतांक से आगे…. परमात्मा ऐसे सत्पुरूषों के भण्डारी की स्वयं रक्षा करते हैं। इसीलिए वेद कहता है- ‘‘शतहस्त समाहर: सहस्रहस्तं सं किर:’’ अथर्ववेद 3/24/5 श्रद्घा देयम् अश्रद्घया देयम् , मिया देयम् , हिृया देयम् संविदा देयम् (तैत्तिरीय उपनिषद) अर्थात श्रद्घा से दे, अश्रद्घा से दे, भय से दे, लज्जा से दे, वचन […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती भाग-65

ब्रह्मभाव को प्राप्त हो, जो रहता द्वन्द्वातीतगतांक से आगे….यदि इस सीढ़ी पर संभलकर चला जाए अर्थात इसका परिष्कार कर लिया जाए तो हमारी वृत्तियां तथा बुद्घि स्वत: ही शुद्घ हो जाएंगी। जिसके फलस्वरूप हमारी गति हो सकती है अर्थात हम मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मन का निर्मल होना परमआवश्यक है। जो साधक […]

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बिखरे मोती भाग-64

धर्मानुरागी को चाहिए, तज दे वचन कठोरगतांक से आगे….शठ-धूर्त, दुष्टनिष्ठुर-कठोर हृदय वाला, दया रहित दन्द शूक-मर्म स्थान पर चोट करने वाला। स्वार्थ जिद अहंकार से,टूटते हैं परिवार।क्षमा समन्वय प्रेम से,खुशहाल रहें परिवार ।। 729 ।। पुण्य प्रार्थना रोज कर,इनको कल पै न छोड़।डाली पै लटका आम तू,कब ले माली तोड़ ।। 730 ।। असूया कभी […]

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