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बिखरे मोती

बिखरे मोती भाग-65

vijender-singh-aryaब्रह्मभाव को प्राप्त हो, जो रहता द्वन्द्वातीत
गतांक से आगे….
यदि इस सीढ़ी पर संभलकर चला जाए अर्थात इसका परिष्कार कर लिया जाए तो हमारी वृत्तियां तथा बुद्घि स्वत: ही शुद्घ हो जाएंगी। जिसके फलस्वरूप हमारी गति हो सकती है अर्थात हम मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मन का निर्मल होना परमआवश्यक है। जो साधक प्रभु की शरणागति को प्राप्त करना चाहते हैं, वे जितना शीघ्र हो सके मन का शोधन करें अर्थात मन को निर्मल करें।

सत्संकल्प से होत है,
मनुज का सदा विकास।
हीन विचारों के कारनै,
होता सदा हिरास।। 737।।

विषयों का जो स्वयं ही,
करता जावै त्याग।
पश्चाताप होता नही,
जब जागै वैराग ।। 738।।

स्तुति हो या निंदा हो,
हार होय या जीत।
ब्रह्मभाव को प्राप्त हो,
जो रहता द्वन्द्वातीत ।। 739।।

स्तुति-प्रशंसा
द्वंद्वातीत अर्थात सुख-दुख से ऊपर होना। यही स्थिति निर्वाणावस्था-मोक्ष कहाती है। इसे ही हमारे धर्मशास्त्रों में ब्रह्मभाव प्राप्ति भी कहा गया है।

भाग्य भरोसे बैठना,
कायर पुरूष का काम।
पुरूषार्थ से मंजिल मिलै,
प्रमादी करै आराम ।। 740।।

किये गये उपकार को,
कृतघ्न जावै भूल।
शास्त्र अधम कहता उसे,
है नर के रूप में शूल ।। 741 ।।

गुरूजन और सत्कर्म में,
रखे नही विश्वास।
मित्रों की करै उपेक्षा,
समझो अधम है खास ।। 742 ।।
अधम अर्थात नीच, सत्कर्म अर्थात पुण्य के कार्य।
कल्याण की है कामना,
कर सत्पुरूषों का संग।
अधम से सदा दूरी बना,
ये जीने का सही ढंग ।। 743।।

चोरी डाका डालकर,
धन संचित कर लेय।
साधन तो मिल जाएंगे,
पर यशवंचित कर देय।। 744।।

काम क्रोध न लोभवश,
गर हो असद व्यवहार।
इनका एक उपाय है,
कर आत्मा का परिष्कार ।। 745।।
आत्मा का परिष्कार करने से अभिप्राय है जो हो गया, उसका खेद व्यक्त करना , पश्चाताप करना तथा आगे के लिए ऐसा न करने का हृदय से व्रत लेना, सुधारना। इसे ही हमारे धर्म शास्त्रों में हृदय परिवर्तन कहा गया है।

धन धान्य संपन्न हों,
किंतु आचार विहीन।
ऐसे कुल नही श्रेष्ठ हों,
रहते कांतिहीन ।। 746।।

वित्त से श्रेष्ठ तो वृत्त है,
पालन करे कोई शूर।
वृत्तधारी को जगत में,
मंजिल मिलै जरूर ।। 747 ।।

सत्पुरूष के गेह में,
कभी होवै न इनका अभाव।
भोजन, आश्रय, मीठे वचन,
से लेवे आदर भाव ।। 748।।

भाव यह है कि जो अभ्यागतों, अतिथियों की सच्चे मन से सेवा करते हैं, ऐसे सत्पुरूषों के घरों में भोजन अन्न आश्रय शयनस्थान और मीठे वचनों की कभी न्यूनता नही होती है। क्रमश:

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