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बिखरे मोती

कर्माशय से ही मिलें, आयु योनि भोग

बिखरे मोती-भाग 94 गतांक से आगे….बंूद एक ही इत्र की,फोहे को महकाय।दिव्य गुण की प्रधानता,मनुज से देव बनाय ।। 917 ।। व्याख्या :दिव्य गुण अर्थात ईश्वरीय गुण। ये आत्मिक ऐश्वर्य के मूलतत्व भी कहलाते हैं। इन्हीं के कारण व्यक्ति के तेज और यश में वृद्घि होती है। ये ईश्वरीय गुण अग्रलिखित हैं जैसे-ज्ञान (विवेक अथवा […]

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बिखरे मोती

रसना से लगा घाव तो, जीवन भर रहे याद

बिखरे मोती-भाग 93   गतांक से आगे…. वह ऐसे निष्प्राण हो जाता है जैसे पानी के बिना पौधा सूख जाता है। याद रखो, संबंधों का ताना-बाना सदभाव के जल पर चलता है। ठीक उसी प्रकार जैसे नदी के जल पर नाव चलती है। यदि नदी का जल सूख जाए तो नाव नही चल सकती है। […]

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बिखरे मोती

शान्ति के नाम पै भ्रान्ति, अधिक नही टिक पाय

बिखरे मोती-भाग 92 गतांक से आगे….प्रेम से शक्ति खींचना,प्रार्थना कहलाय।प्रेमी पावै प्रेम से,द्वेषी शोक मनाय ।। 907 ।। व्याख्या : प्रार्थना का अर्थ है अपने आराध्य देव से शक्ति प्राप्त करना, किंतु शक्ति वे ही प्राप्त कर पाते हैं जो अपने आराध्य देव के प्रेम से स्निग्ध होते हैं, भावविह्वल होते हैं। जिनके हृदय में […]

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बिखरे मोती

वो कवि ही क्या जिसने कोमल भावों को नही जगाया

बिखरे मोती-भाग 91 गतांक से आगे….वो रवि ही क्या जिसने अंधकार को नही भगाया।वो कवि ही क्या जिसने कोमल भावों को नही जगाया।।वो नबी ही क्या जिसने इंसानियत को नही बचाया।वो छवि ही क्या जिसने यश को नही महकाया।। नबी-फरिश्ता, पैगम्बर, देवता, मसीहाप्रभुता मिले तो समझ लें,प्रभु का आशीर्वाद।नम्रता करूणा उदारता,रखना प्रभु को याद ।। […]

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बिखरे मोती

एक से कैसे हो गया, वो शिव तत्व अनेक

बिखरे मोती-भाग 85 गतांक से आगे….होनी हो अनहोनी जब,सो जाता है विवेक।ऐसे समय में जागता,कोई बिरला एक ।। 869।। व्याख्या :-कैसी विडंबना है मानवीय जीवन में जब कोई दुखद घटना होती है, तो उससे पूर्व मनुष्य की बुद्घि भ्रष्ट होती है। इसीलिए कहा गया है ‘विनाशकाले विपरीत बुद्घि’ विपत्ति के समय ऐसे व्यक्ति बहुत कम […]

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बिखरे मोती

जैसी जिसकी वृत्तियां, वैसे ही मिलते मीत

बिखरे मोती-भाग 84 गतांक से आगे….रजत रेखा बर्दाश्त है,सुख दुख के दरम्यान।मनरंजन भंजन बनै,अज्ञानता से नादान ।। 865 ।। इस संसार का यह शाश्वत नियम है कि कोई भी वस्तु अथवा विचार तभी तक अच्छा लगता है जब तक अपनी सीमा का उल्लंघन नही करता है। यह एक रजत रेखा (स्द्बद्य1द्गह्म् रुद्बठ्ठद्ग) है इसे लांघते […]

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बिखरे मोती

ज्ञान बिना मुक्ति नही, और ज्ञान सा नही पुनीत

बिखरे मोती-भाग 82 गतांक से आगे….राग रहित को होत है,ब्रह्मवित का अहसास।जैसे मिटते ही तिमिर के,प्रकट होय प्रकाश ।। 856 ।। ब्रह्मवित-ब्रह्म को जानने वाला उसमें अभिन्न भाव से स्थित होने वाला किंतु इस अवस्था को प्राप्त होकर भी अभिमान न करने वाला, सदा सौम्य बना रहने वाला।व्याख्या : संसार से राग मिटते ही ब्रह्म […]

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प्रमुख समाचार/संपादकीय बिखरे मोती

आसक्ति यदि ईश में,तो कहलावै योग

बिखरे मोती-भाग 81 पदार्थ मिले हैं कर्म से,मिलते नही भगवान।अहंभाव उर से मिटैतो प्रकटें भगवान ।। 850।।व्याख्या : जैसे सांसारिक पदार्थ कर्मों से मिलते हैं, ऐसे परमात्मा की प्राप्ति कर्मों से नही होती, क्योंकि परमात्म -प्राप्ति कर्म का फल नही है। याद रखो, प्रत्येक कर्म की उत्पत्ति अहंभाव से होती है,जबकि परमात्म प्राप्ति अहंभाव के […]

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बिखरे मोती

प्रभु पालक है सृष्टि का, पर देता नही जताव

बिखरे मोती भाग-78 गतांक से आगे….जिस प्रकार अग्नि ईंधन से तृप्त नही होती, जिना ईंधन डालते जाओगे उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक इसी प्रकार स्त्रियों की तृष्णा मांग, कामनाएं पुरूष जितनी पूरी करता जाता है, उतनी ही वे बढ़ती जाती हैं।सागर में नदियां पड़ैं,फिर भी बाढ़ न आय।मृत्यु तृप्त होती नही,सबै मारकै खाय ।। […]

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बिखरे मोती

स्वयं का कर उद्घार तू, त्याग सभी अवसाद

बिखरे मोती-77 गतांक से आगे….स्वयं का कर उद्घार तू,त्याग सभी अवसाद।मत कोसै नित स्वयं को,गीता को रख याद ।। 828।। भगवान कृष्ण गीता में अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं-हे पार्थ! जो स्वयं (आत्मा) की शक्ति को पहचान जाते हैं वे स्वयं का उद्घार स्वयं करते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का अवसाद अथवा आत्महीनता […]

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