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बिखरे मोती

विषय की चेतना की अनुभूति ‘चित्त’ में होती है

बिखरे मोती-भाग 172 गतांक से आगे…. यह सुनकर सनत्कुमार ने देवर्षि नारद से पूछा-जो कुछ तुम जानते हो, पहले वह बताओ? नारद ने कहा, मैंने चारों वेद, उपवेद, इतिहास, पुराण, गणित, नीति शास्त्र, तर्कशास्त्र अथवा कानून , देवविद्या (निरूक्त) भौतिक रसायन व प्राणीशास्त्र नक्षत्र विद्या (ज्योतिष) निधि शास्त्र (अर्थशास्त्र) ब्रह्मविद्या इत्यादि को पढ़ा है। यह […]

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बिखरे मोती

मन के संग जब तन जुड़ै, तब होवै तल्लीन

बिखरे मोती-भाग 171 गतांक से आगे…. सूर्य तो निरंतर दीप्तिमान है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण जो भूभाग सूर्य के सामने होता है वहां दिन होता है और जिस भूभाग पर सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं वहां रात होती है। ठीक इसी प्रकार जीव (मैं अर्थात आत्मा) ब्रह्म, प्रकृति अनादि हैं। इनकी […]

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बिखरे मोती

चंद लम्हों की जिंदगी, बन जाए उसहार

बिखरे मोती-भाग 170 गतांक से आगे…. यह जीभ की  लड़ाई घनिष्ठतम रक्तसंबंधों को भी छिन्न-भिन्न कर देती है। जैसा कि रामायण में मंथरा ने चुगली करके केकैयी को भडक़ाया था, जिसका दुष्परिणाम आज सबके सामने है। इसके अतिरिक्त महाभारत के तीन पात्र शकुनि, दुर्योधन तथा द्रोपदी ऐसे हैं, जिनकी वाणी ने विनाश कराया था। जीभ […]

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बिखरे मोती

ज्ञान प्रेम संसार में, प्रभु की अनुपम देन

गतांक से आगे….आत्मा को परमात्मा,करे सदा आगाह।ज्ञानी आग्रह ना करै,सिर्फ बतावै राह।। 977।। व्याख्या :-मनुष्य जब भी कोई कुकर्म करता है तो तत्क्षण अंदर से आत्मा उसे रोकती है किंतु मनुष्य अज्ञान और अहंकार के कारण आत्मा की इस मूक आवाज को अनसुनी कर देता है। वास्तव में यह आवाज परमात्मा की प्रेरणा होती है, […]

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बिखरे मोती

ब्रह्म तो मायाधीश है, जीव है मायाधीन

गतांक से आगे…. ब्रह्म तो मायाधीश है, जीव है मायाधीन। माया बंध को तोडक़र, बिरला हो स्वाधीन ।। 970।।   व्याख्या :-इस संसार में जीव, ब्रह्म, प्रकृति अनादि हैं। तीनों की अपने-अपने क्षेत्र में सत्ता है किंतु सर्वोच्च सत्ता ब्रह्म की है। जीव और प्रकृति का अधिष्ठाता ब्रह्म है। जीवों के आवागमन के क्रम का […]

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बिखरे मोती

प्रभु चरणों में चित लगै, वो क्षण है अनमोल

गतांक से आगे….मत जी खाने के लिए,जीने के लिए खाय।मन को रखना मोद में,रोग निकट नही आय ।। 963।। व्याख्या : महर्षि पतंजलि ने कहा था-हित भुक, मितभुक, ऋतभुक अर्थात भोजन ऐसा करो जो तुम्हारे शरीर की प्रकृति और ऋतु के अनुकूल हो किंतु भूख से थोड़ा खाओ। अत: मनुष्य को खाने के लिए नही […]

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बिखरे मोती

ऐसा जीवन जी चलो, खुश होवें भगवन्त

बुद्घि से ही उपजताजीवन में सदा ज्ञान।गर बुद्घि में अहं हो,तो ज्ञान बनै अज्ञान ।। 948।। व्याख्या :-संसार में आज जितना भी बहुमुखी और बहुआयामी विकास दृष्टि गोचर हो रहा है, इसके मूल में मनुष्य की बुद्घि है। यह बुद्घि मनुष्य को परमपिता परमात्मा का अनुपम उपहार है। ज्ञान सर्वदा बुद्घि में ही उपजता है […]

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बिखरे मोती

आप्त पुरूष संसार में, हरें दुखियों का भार

गतांक से आगे….संत की वाणी का असर,सब काहू पै न होय।चुम्बक लोहे को खींच ले,कीचड़ देय बिछोय।। 952 ।। व्याख्या :-संत अथवा सत्पुरूष तो चमकते हुए सूर्य की तरह होते हैं। सूर्य की किरणें पृथ्वी के कण-कण को आलोकित करती हैं किंतु वे उन घरों को प्रकाशित नही कर पाती हैं जिनके दरवाजों के ताले […]

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बिखरे मोती

मन ही शरीर और आत्मा में सेतु का काम करता है

बिखरे मोती-भाग 9८ गतांक से आगे….कर्म करे जैसे मनुष्य,मन भुगतै परिणाम।प्रकृति-पुरूष निरपेक्ष हैं,मत कर उल्टे काम।। 929।। व्याख्या :-प्राय: लोग यह प्रश्न करते हैं कि कर्म देह का विषय है अथवा आत्मा का? इस प्रश्न का सीधा सा उत्तर हमारे ऋषियों ने वेद, उपनिषद और गीता में इस प्रकार दिया है-कर्म न तो देह का […]

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बिखरे मोती

समय शक्ति संपत्ति का, नाश करे है विवाद

बिखरे मोती-भाग 97 गतांक से आगे….दुर्भाव से सद्भाव के,मिटते जायें संबंध।जैसे बदबू की हवा,खाती जाय सुगंध ।। 929 ।। व्याख्या :-हृदय की शुद्घि सद्भाव से होती है। हृदय में प्रसन्नता भी सद्भाव से ही रहती है। यदि किसी कारणवश हृदय में दुर्भाव पैदा हो जाए तो वह गोखरू के कांटे की तरह बढ़ता जाता है, […]

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