जवाहर लाल कौल भारत को कैसे समझें, यह प्रश्न प्रायः पूछा जाता है। लेकिन इस विषय पर अनंत बहस चलने के बावजूद कोई सार्थक उत्तर नहीं मिल पाता। वास्तव में इस प्रश्न की आवश्यकता ही नहीं होती यदि हम यह जानने का प्रयास करते कि हम अब तक किन मापदण्डों से स्वयं को और अपनी […]
Author: उगता भारत ब्यूरो
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सूर्यकान्त बाली महाभारत का काल भारत के लिए काफी वैभवपूर्ण और आर्थिक समृद्धि का काल रहा है। महाभारत के काल में तकनीकी विकास भी अपने चरम पर रहा है। आम तौर पर तकनीकी की बातों को महाभारत में काव्य होने के कारण आलंकारिक रूप से दिया गया है। प्रसिद्ध लेखक व पत्रकार श्री सूर्यकांत बाली […]
वह था दयानंद
◆ वह था दयानन्द… “तीस करोड नामर्दों में जो अकेला मर्द होकर जन्मा, बरसाती घास-फूस और मच्छरों की तरह फैले हुए मनुष्य जन्तु की मूर्खता की चरमसीमा के प्रमाण स्वरुप मत-मतान्तरों का जिसने मर्दानगी से विध्वंसिनी ज्वाला की तरह विध्वंस किया, मरे हुए हिन्दू धर्म को अपने जादू के चमत्कार से जीवित कर दिया और […]
सुद्युम्न आचार्य शब्दों में भी अनेक प्रकार के परिवर्तन होते रहते हैं। ये शब्द समाज की वाणी से मुखरित होकर कालक्रमानुसार अनेक प्रकार के रूप धारण करते रहते हैं। कभी तो इनकी ध्वनियों में बदलाव हो जाता है। यह बदलाव इतना अधिक होता है कि वह समूचा शब्द नया रूप धारण कर लेता है। कभी […]
सभ्यता के संस्कार और सिनेमा
जयप्रकाश सिंह उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मिशनरियों द्वारा सिनेमा के जरिए पश्चिमी आदर्शों को भारत पर थोपे जाने का विरोध करने के लिए दादा साहब ने भारतीय सिनेमा को स्थापित किया। यह एक स्थापित तथ्य है कि औपनिवेशिक शासनकाल में मतांतरण की प्रकिया को राज्याश्रय प्राप्त था। हिन्दू धर्मावलम्बियों […]
कृपाशंकर सिंह ऋग्वेद की ऋचाओं में कुछेक रोगों के नाम भी मिलते हैं। इनमें यक्ष्मा, राजयक्ष्मा, हृदय रोग, दनीमा (बवासीर) हरिमा पृष्ठयामगयी आदि रोगों का उल्लेख है। इसमें से यक्ष्मा रोग का वर्णन कई ऋताओं में मिलता है। यक्ष्मा से ऋषियों का वास्तविक आशय किस तरह के रोग का है, यह पूरी तौर पर स्पष्ट […]
डॉ. ओमप्रकाश पांडे सृष्टि विज्ञान के दो पहलू हैं। पहला पहलू है कि सृष्टि क्या है? आधुनिक विज्ञान यह मानता है कि आज से 13.7 अरब वर्ष पहले बिग बैंग यानी कि महाविस्फोट हुआ था। उसके बाद जब भौतिकी की रचना हुई, अर्थात्, पदार्थ में लंबाई, चौड़ाई और गोलाई आई, वहाँ से विज्ञान की शुरुआत […]
रवि शंकर बाप बड़ा न भैय्या, सबसे बड़ा रुपैय्या। यह कहावत जिसने भी बनाई होगी, उसने सोचा नहीं होगा कि कभी एक समय पूरा देश उसकी कहावत के पीछे ही चलेगा। रुपैय्या यानी कि धन औप धन अर्थात् अर्थतंत्र। अर्थतंत्र यानी धन कमाना, धन व्यय करना, धन संग्रह करना, धन का वितरण करना। भारतीय शास्त्रों […]
आलोक देवता आओ
* संजय पंकज सूर्य चंद्र की किरणें आओ! आओ गगन धरा पर आओ! आओ नवरस नवलय आओ! आओ दिग्दिगंत पर आओ! जगमग जग को कर जाओ! आलोक देवता आओ !! हर आंगन में मन प्रांगण में उजड़े उजड़े वन कानन में, बहुरंगे फूल खिलाओ! आलोक देवता आओ! तम गहरा है गम ठहरा है कदम-कदम निर्मम […]
दिया जलाए जलते रहना
* संजय पंकज रात अंधेरी दिया जलाए साथी तुम चलते रहना! दूर गगन में सूरज डूबा दिन का संबल टूट गया पनघट से घट लेकर लौटा जल में ही जल छूट गया दिल में अपने दर्द दबाए यादों में ढलते रहना! नहीं धरा से बढ़कर कोई जो थामे आधार बने लहर लहर से अपने चूमे […]