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राजनीति

बंगाल: रामपंथ या वामपंथ या खेला होबे

प्रवीण गुगनानी बंगाली में एक कहावत है – डूबे डूबे झोल खाबा इसी भावार्थ की एक हिंदी कहावत है – ऊँट की चोरी नेवड़े नेवड़े नहीं हो सकती। दोनों ही कहावतो का एक सा अर्थ है कि बड़ी चोरी आज नहीं तो कल पकड़ी ही जायेगी। पश्चिम बंगाल में हिंदू हितों की चोरी भी ममता […]

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राजनीति

जय श्री राम बोलना ‘पाप’हो गया था दीदी के शासन मे !

प्रवीण गुगनानी दीदी राम विरोधी निकलीं और चलती गाड़ी से स्वयं निकल कर जय श्रीराम के नारे लगाते बच्चों को बड़ी ही निर्लज्जता से डांटने लगी थीं। बच्चों को श्रीराम का नारा लगाने पर डांटना एक छोटी किंतु प्रतीकात्मक बड़ी घटना है जिसके बड़े ही विशाल अर्थ निकलते हैं। बंगाली में एक कहावत है- डूबे […]

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इतिहास के पन्नों से

भीम और मीम की राजनीति : बाबासाहेब और जोगेंद्र मंडल की दृष्टि में

भारतीय दलित राजनीति वर्तमान समय में सर्वाधिक दिग्भ्रमित दौर में है। दुर्भाग्य से वर्तमान समय ही इतिहास का वह संधिकाल या संक्रमणकाल है जबकि दलित राजनीति को एक दिशा की सर्वाधिक आवश्यकता है। भीम मीम के नाम का सामाजिक जहर बाबासाहेब अम्बेडकर के समूचे चिंतन को लील रहा है।भीम मीम के इतिहास को देखना, पढ़ना […]

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इतिहास के पन्नों से

भारत के स्पार्टाकस तिलक मांझी

  प्रवीण गुगनानी वैसे तो विधर्मी आक्रांताओं के विरुद्ध भारत भूमि ने हजारों-लाखों लाल जन्मे हैं किंतु औपनिवेशिक आक्रांताओं के विरुद्ध जो आदि विद्रोही हुये  या प्रथम लड़ाके हुये उस वीर को  तिलका मांझी के नाम से जाना जाता है। तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया नाम से भी जाना जाता है। ऐसा निस्संकोच कहा जा […]

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व्यक्तित्व

भारत के स्पार्टाकस तिलका मांझी

वैसे तो विधर्मी आक्रांताओं के विरुद्ध भारत भूमि ने हजारों-लाखों लाल जन्मे हैं किंतु औपनिवेशिक आक्रांताओं के विरुद्ध जो आदि विद्रोही हुये या प्रथम लड़ाके हुये उस वीर को तिलका मांझी के नाम से जाना जाता है। तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया नाम से भी जाना जाता है। ऐसा निस्संकोच कहा जा सकता है कि […]

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भाषा

पुस्तक समीक्षा : अखिल भारतीय साहित्य परिषद का इतिहास

             यदि कुछ धार्मिक, पूजनीय, एतिहासिक ग्रंथों को छोड़ दिया जाये तो बहुत कम पुस्तकों के विषय मे यह कहा जा सकता है की यहपुस्तक व इसके लेखक एक दूजे के पर्याय है। या, यह कहा जा सकता है की यदि पुस्तक को इस लेखक ने नहीं लिखा होता तो कोई अन्य लेखक इस पुस्तक […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

स्वामी विवेकानंद : भारत के विश्व पुरुष

स्वामी विवेकानंद जी ने भारत को व भारतत्व को कितना आत्मसात कर लिया था यह कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर के इस कथन से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि –‘यदि आप भारत को समझना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को संपूर्णतः पढ़ लीजिये’। नोबेल से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक रोमां रोलां ने स्वामी जी […]

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इतिहास के पन्नों से

संघ प्रवाह के समग्र साक्ष्य

प्रवीण गुगनानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रथम सरसंघचालक से लेकर अब तक के सभी यानि छहों संघ प्रमुखों के साथ जिन्होंने न केवल कार्य किया हो अपितु जीवंत संपर्क व तादात्म्य भी रखा हो ऐसे स्वयंसेवक संभवतः दो-पाँच भी नहीं होंगे। आदरणीय माधव गोविंद वैद्य ऐसे ही सौभाग्यशाली स्वयंसेवक थे। उनके देहांत पर अपने […]

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इतिहास के पन्नों से व्यक्तित्व समाज

बिरसा मुंडा जयन्ती आर्य -अनार्य विमर्श के अवसान का अवसर

  बिरसा मुंडा महान क्रांतिकारी थे, जनजातीय समाज को साथ लेकर उलगुलान किया था उन्होने। उलगुलान अर्थात हल्ला बोल, क्रांति का ही एक देशज नाम। वे एक महान संस्कृतिनिष्ठ समाज सुधारक भी थे, वे संगीतज्ञ भी थे जिन्होंने सूखे कद्दू से एक वाद्ध्ययंत्र का भी अविष्कार किया था जो अब भी बड़ा लोकप्रिय है। इसी वाद्ध्ययंत्र को बजाकर वे आत्मिक […]

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मुद्दा राजनीति

संदर्भ: सोनिया जी का प्रकाशित लेख : शाहबानो से शाहीन बाग तक मातृशक्ति की गलत व्याख्या

  सोनिया गांधी ने पिछले दिनों एक राष्ट्रीय समाचार पत्र मे एक लेख लिखा है। इस लेख मे वैसे तो कई कई विडंबनापूर्ण बाते हैं किंतु मैं मुख्यतः दो विषयों पर केंद्रित कर पाया हूं। एक देश मे लोकतंत्र की हत्या व दूजा विषय है देश की समूची मातृशक्ति की अस्मिता, कार्यक्षमता व आगे बढ़ने को […]

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