ओ३म् =========== मनुष्य का आत्मा चेतन सत्तस वा पदार्थ है। उसका कर्तव्य ज्ञान प्राप्ति व सद्कर्मों को करना है। ज्ञान ईश्वर व आत्मा संबंधी तथा संसार विषयक दो प्रकार का होता है। ईश्वर भी आत्मा की ही तरह से चेतन पदार्थ है जो सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वव्यापक एवं सर्वान्तर्यामी सत्ता है। ईश्वर व आत्मा दोनों […]
लेखक: मनमोहन कुमार आर्य
ओ३म् =========== वैदिक साहित्य में वेद से इतर ऋषियों व विद्वानों के अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं जिनमें जीवन को अपने लक्ष्य आनन्द व मोक्ष तक पहुंचाने के लिये उत्तम विचार व शिक्षायें दी गई हैं। ऐसी ही एक शिक्षा है कि मनुष्य को दुष्ट व्यक्तियों की संगति नहीं करनी चाहिये। इसका परिणाम यह होता है […]
ओ३म् =========== मनुष्य समाज में शिक्षित, अशिक्षित, संस्कारित-संस्कारहीन तथा धनी व निर्धन कई प्रकार के लाग देखने को मिलते हैं। सभी सोचते हैं कि धनवान वह होता है जिसके पास प्रचुर मात्रा में चल व अचल धन-सम्पत्ति होती है। निर्धन उसे माना जाता है जो आर्थिक दृष्टि से कमजोर होता है। यह बात पूरी तरह […]
ओ३म् =========== हमने कल वयोवृद्ध आर्यविद्वान पं. इन्द्रजित् देव, यमुनानगर से बातचीत की। उनसे महात्मा चैतन्य स्वामी जी के विषय में बातें हुईं। पंडित जी सन् 1965 से सन् 1969 तक चार वर्ष अपने सरकारी सेवाकाल में हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले के सुन्दरनगर स्थान पर रहे। इन्हीं दिनों लगभग 18 वर्ष के किशोर भगवान […]
ओ३म् =========== हमारा यह संसार स्वतः नहीं बना अपितु एक पूर्ण ज्ञानवान सर्वज्ञ सत्ता ईश्वर के द्वारा बना है। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, सर्वव्यापक, सर्वातिसूक्ष्म, एकरस, अखण्ड, सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता, पालनकर्ता तथा प्रलयकर्ता है। जो काम परमात्मा ने किये हैं व करता है, वह काम किसी मनुष्य के वश की बात नहीं है। संसार में […]
ओ३म् =========== ईश्वर है या नहीं? इस प्रश्न का उत्तर ‘ईश्वर है’ शब्दों से मिलता है। ईश्वर होने के अनेक प्रमाण हैं। वेद सहित हमारे सभी ऋषि आप्त पुरुष अर्थात् सत्य ज्ञान से युक्त थे। सबने वेदाध्ययन एवं अपनी ऊहापोह शक्ति से ईश्वर को जाना तथा उसका साक्षात्कार किया था। यजुर्वेद 31.18 मन्त्र ‘वेदाहमेतं पुरुषं […]
ओ३म् ========== संसार में अनश्वर एवं नश्वर अनेक पदार्थ हैं जिनकी सिद्धि उनके निज-गुणों से होती है। वह गुण सदा उन पदार्थों में रहते हैं, उनसे कभी पृथक नहीं होते। अग्नि में जलाने का गुण है। वायु में स्पर्श का गुण है, जल में रस है जिसे हमारी रसना व जिह्वा अनुभव करती है। इसी […]
ओ३म् ============ सामान्य मनुष्य आज तक अपनी आत्मा के अन्तःकरण में विद्यमान एवं कार्यरत मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार उपकरणों को यथावत् रूप में नहीं जान पाया है। मनुष्य को मनुष्य उसमें मन नाम का एक करण होने के कारण कहते हैं जो संकल्प विकल्प व चिन्तन-मनन करता है। मनुष्य का मन आत्मा का करण […]
ओ३म्============= मनुष्य के जीवन में पिता का महत्व निर्विवाद है। माता व पिता ही सब मनुष्यों के जन्मदाता होते हैं। पूर्वजन्म में मृतक आत्मा को मनुष्य योनि में जन्म युवा माता-पिताओं के द्वारा ही मिलता है। यह नियम परमात्मा ने बनाया है। यदि यह नियम न हो तो सृष्टिक्रम चल नहीं सकता। मनुष्य एक शिशु […]
ओ३म् ============ आर्यसमाज वेद वर्णित ईश्वर, जीव, प्रकृति व सृष्टि के नियमों में विश्वास रखता है। वह ऋषि प्रणीत विस्तृत वैदिक साहित्य जो वेदानुकूल है, उसे स्वीकार कर उसका भी प्रचार प्रसार करता है। वैदिक साहित्य में प्रमुख ग्रन्थों में 6 दर्शन, उपनिषद तथा विशुद्ध-मुनस्मृति ग्रन्थ आदि अनेक प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त ऋषि दयानन्द के […]