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आज का चिंतन

ओ३म् “वेदों में आये अयोध्या पद का प्रयोग मानव व देवों के शरीरों के लिए हुआ है, किसी स्थानवाचक नाम के लिए नहीं”

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वेद चार हैं। चार वेदों का ज्ञान अनादि व नित्य ज्ञान है जो सदैव व सर्वदा परमात्मा के ज्ञान में विद्यमान रहता है। यह चार वेद ईश्वर प्रदत्त बीज-रूप में सब सत्य विद्याओं का ज्ञान है जो सृष्टि के आरम्भ में सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान तथा सर्वज्ञ परमात्मा से परमात्मा द्वारा उत्पन्न आदि […]

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आज का चिंतन

ओ३म् ‘हमारी सृष्टि परमात्मा ने जीवात्माओं के सुख के लिये बनाई है’

========== हम जन्म लेने के बाद संसार में अस्तित्वमान विशाल ब्रह्माण्ड व इसके प्रमुख घटकों सूर्य, चन्द्र तथा पृथिवी सहित असंख्य तारों को झिलमिलाते हुए देखते हैं। पृथिवी कितनी विशाल है इसका अनुमान करना भी सबके बस की बात नहीं है। इस सृष्टि में मनुष्य व सभी प्राणियों के उपभोग की सभी वस्तुयें उपलब्ध हैं। […]

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आज का चिंतन

ओ३म् “सत्गुणों तथा ईश्वर भक्ति से युक्त मानव का निर्माण वेदज्ञान से ही सम्भव”

========== मनुष्य अल्पज्ञ प्राणी होता है। इसका कारण जीवात्मा का एकदेशी, ससीम, अणु परिमाण, इच्छा व द्वेष आदि से युक्त होना होता है। मनुष्य सर्वज्ञ वा सर्वज्ञान युक्त कभी नहीं बन सकता। सर्वज्ञता से युक्त संसार में एक ही सत्ता है और वह है सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा। परमात्मा ही सृष्टि में विद्यमान अनन्त संख्या […]

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आज का चिंतन

ओ३म् “यज्ञ करने से मनुष्य को सुख प्राप्ति सहित कामनाओं की पूर्ति होती है”

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। यज्ञ वेदों से प्राप्त हुआ एक शब्द है। इसका अर्थ होता है श्रेष्ठ व उत्तम कर्म। श्रेष्ठ कर्म वह होता है जिससे किसी को किसी प्रकार की हानि न हो अपितु दूसरों व स्वयं को भी अनेक लाभ हों। यज्ञ से जैसा लाभ होता है वैसा अन्य किसी कार्य से नहीं […]

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इतिहास के पन्नों से

ओ३म् “कल्याण मार्ग के पथिक वीर विप्र योद्धा ऋषिभक्त स्वामी श्रद्धानन्द”

========== स्वामी श्रद्धानन्द ऋषि दयानन्द के शिष्यों में एक प्रमुख शिष्य हैं जिनका जीवन एवं कार्य सभी आर्यजनों व देशवासियों के लिये अभिनन्दनीय एवं अनुकरणीय हैं। स्वामी श्रद्धानन्द जी का निजी जीवन ऋषि दयानन्द एवं आर्यसमाज के सम्पर्क में आने से पूर्व अनेक प्रकार के दुव्र्यसनों से ग्रस्त था। इन दुव्यर्सनों के त्याग में ऋषि […]

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आज का चिंतन

ओ३म् “सत्गुणों तथा ईश्वर भक्ति से युक्त मानव का निर्माण वेदज्ञान से ही सम्भव”

========== मनुष्य अल्पज्ञ प्राणी होता है। इसका कारण जीवात्मा का एकदेशी, ससीम, अणु परिमाण, इच्छा व द्वेष आदि से युक्त होना होता है। मनुष्य सर्वज्ञ वा सर्वज्ञान युक्त कभी नहीं बन सकता। सर्वज्ञता से युक्त संसार में एक ही सत्ता है और वह है सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा। परमात्मा ही सृष्टि में विद्यमान अनन्त संख्या […]

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आज का चिंतन हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

ओ३म् -आज ऋषि दयानन्द के 140 वें बलिदान दिवस पर- “भारत भाग्य विधाता ऋषि दयानन्द”

========== ऋषि दयानन्द जी का बलिदान 140 वर्ष पूर्व हुआ था। इस अवधि में उनके अनुयायियों एवं आर्यसमाज ने जो कार्य किये हैं उसमें अनेक सफलतायें हैं। ऋषि दयानन्द को हम इसलिये भी स्मरण करते हैं कि उन्होंने हमें असत्य का परिचय कराकर सत्य ज्ञान, सत्य सिद्धान्त व मान्यताओं सहित जीवन को श्रेष्ठ व सफल […]

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भारतीय संस्कृति

ओ३म् “हमारी सृष्टि परमात्मा ने जीवात्माओं के सुख के लिये बनाई है”

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। हम जन्म लेने के बाद संसार में अस्तित्वमान विशाल ब्रह्माण्ड व इसके प्रमुख घटकों सूर्य, चन्द्र तथा पृथिवी सहित असंख्य तारों को झिलमिलाते हुए देखते हैं। पृथिवी कितनी विशाल है इसका अनुमान करना भी सबके बस की बात नहीं है। इस सृष्टि में मनुष्य व सभी प्राणियों के उपभोग की सभी […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

कल्याण मार्ग के पथिक वीर विप्र योद्धा ऋषिभक्त स्वामी श्रद्धानन्द” ( ख )

सन् 1890 में महात्मा मुंशीराम जी ने लाला देवराज जी के साथ मिलकर जालन्धर में एक ‘आर्य कन्या महाविद्यालय’ स्कूल व कालेज की स्थापना की थी। यह वह समय था जब माता-पिता अपनी कन्यायों को स्कूल भेजकर पढ़ाते नहीं थे। ऐसे समय में कन्यायों का विद्यालय खोलना एक क्रान्तिकारी कार्य था। वर्तमान में यह जालन्धर […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

ओ३म्  “कल्याण मार्ग के पथिक वीर विप्र योद्धा ऋषिभक्त स्वामी श्रद्धानन्द” ( क )

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।   स्वामी श्रद्धानन्द ऋषि दयानन्द के शिष्यों में एक प्रमुख शिष्य हैं जिनका जीवन एवं कार्य सभी आर्यजनों व देशवासियों के लिये अभिनन्दनीय एवं अनुकरणीय हैं। स्वामी श्रद्धानन्द जी का निजी जीवन ऋषि दयानन्द एवं आर्यसमाज के सम्पर्क में आने से पूर्व अनेक प्रकार के दुव्र्यसनों से ग्रस्त था। इन दुव्यर्सनों […]

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