=========== हमारा यह संसार किससे बना और कौन इसे संचालित कर रहा है, इसका उत्तर खोजते हुए हम इसके कर्ता व पालक ईश्वर तक पहुंचते हैं। सौभाग्य से हमें सृष्टि के आदि में उत्पन्न व प्रचारित चार वेद आज भी अपने मूल स्वरूप तथा शुद्ध अर्थों सहित प्राप्त व विदित हैं। इन वेदों का अध्ययन […]
लेखक: मनमोहन कुमार आर्य
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वैदिक धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म व मत है। वैदिक धर्म का प्रचलन वेदों से हुआ है। वेद सृष्टि के आरम्भ में अन्य सांसारिक पदार्थों की ही तरह ईश्वर से उत्पन्न हुए। परमात्मा सत्य, चित्त व आनन्द स्वरूप है। ईश्वर के इस स्वरूप को सच्चिदानन्दस्वरूप कहा जाता है। चेतन पदार्थ […]
========== ईश्वर, जीव और प्रकृति तीन अनादि तत्व हैं। ईश्वर अजन्मा, कभी जन्म व मरण को प्राप्त न होने वाला, और जीव जन्म-मरण के बन्धनों में बंधा हुआ है। जीवात्मा के जन्म व मरण का कारण कर्मों का बन्धन है। जीव में इच्छा, राग, द्वेष, सुख व दुःख, इन्द्रियो व अन्तःकरण के अनेक प्रकार के […]
========== ईश्वर, जीव और प्रकृति तीन अनादि तत्व हैं। ईश्वर अजन्मा, कभी जन्म व मरण को प्राप्त न होने वाला, और जीव जन्म-मरण के बन्धनों में बंधा हुआ है। जीवात्मा के जन्म व मरण का कारण कर्मों का बन्धन है। जीव में इच्छा, राग, द्वेष, सुख व दुःख, इन्द्रियो व अन्तःकरण के अनेक प्रकार के […]
========== ईश्वर, जीव और प्रकृति तीन अनादि तत्व हैं। ईश्वर अजन्मा, कभी जन्म व मरण को प्राप्त न होने वाला, और जीव जन्म-मरण के बन्धनों में बंधा हुआ है। जीवात्मा के जन्म व मरण का कारण कर्मों का बन्धन है। जीव में इच्छा, राग, द्वेष, सुख व दुःख, इन्द्रियो व अन्तःकरण के अनेक प्रकार के […]
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। हमारा यह संसार किससे बना और कौन इसे संचालित कर रहा है, इसका उत्तर खोजते हुए हम इसके कर्ता व पालक ईश्वर तक पहुंचते हैं। सौभाग्य से हमें सृष्टि के आदि में उत्पन्न व प्रचारित चार वेद आज भी अपने मूल स्वरूप तथा शुद्ध अर्थों सहित प्राप्त व विदित हैं। इन […]
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वेद चार हैं। चार वेदों का ज्ञान अनादि व नित्य ज्ञान है जो सदैव व सर्वदा परमात्मा के ज्ञान में विद्यमान रहता है। यह चार वेद ईश्वर प्रदत्त बीज-रूप में सब सत्य विद्याओं का ज्ञान है जो सृष्टि के आरम्भ में सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान तथा सर्वज्ञ परमात्मा से परमात्मा द्वारा उत्पन्न आदि […]
========== हम जन्म लेने के बाद संसार में अस्तित्वमान विशाल ब्रह्माण्ड व इसके प्रमुख घटकों सूर्य, चन्द्र तथा पृथिवी सहित असंख्य तारों को झिलमिलाते हुए देखते हैं। पृथिवी कितनी विशाल है इसका अनुमान करना भी सबके बस की बात नहीं है। इस सृष्टि में मनुष्य व सभी प्राणियों के उपभोग की सभी वस्तुयें उपलब्ध हैं। […]
========== मनुष्य अल्पज्ञ प्राणी होता है। इसका कारण जीवात्मा का एकदेशी, ससीम, अणु परिमाण, इच्छा व द्वेष आदि से युक्त होना होता है। मनुष्य सर्वज्ञ वा सर्वज्ञान युक्त कभी नहीं बन सकता। सर्वज्ञता से युक्त संसार में एक ही सत्ता है और वह है सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा। परमात्मा ही सृष्टि में विद्यमान अनन्त संख्या […]
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। यज्ञ वेदों से प्राप्त हुआ एक शब्द है। इसका अर्थ होता है श्रेष्ठ व उत्तम कर्म। श्रेष्ठ कर्म वह होता है जिससे किसी को किसी प्रकार की हानि न हो अपितु दूसरों व स्वयं को भी अनेक लाभ हों। यज्ञ से जैसा लाभ होता है वैसा अन्य किसी कार्य से नहीं […]