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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-53

लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए जब हम कहते हैं कि ‘लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए’ तो उस समय हवन के वैज्ञानिक और औषधीय स्वरूप को समझने की आवश्यकता होती है। हवन की एक-एक क्रिया का बड़ा ही पवित्र अर्थ है। इस अध्याय में हम थोड़ा-थोड़ा प्रकाश याज्ञिक क्रियाओं की वैज्ञानिकता पर […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-1

दादरी रेलवे स्टेशन पर मैं अपने आदरणीय और श्रद्घेय भ्राता श्री देवेन्द्र सिंह आर्य (वरिष्ठ अधिवक्ता) के साथ फाटक बंद होने के कारण उनकी गाड़ी में बैठा रेलगाड़ी गुजरने की प्रतीक्षा कर रहा था। रेलगाड़ी पर्याप्त विलम्ब करने पर भी नहीं आयी। मैंने ज्येष्ठ भ्राता श्री से इतने पहले फाटक बंद कर देने का कारण […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

अमरसिंह राठौड़ का शौर्य है आज भी प्रेरणा का स्रोत

पी.एन.ओक कहते हैं…. अपनी पुस्तक ”क्या भारत का इतिहास भारत के शत्रुओं द्वारा लिखा गया है?” में लिखी गयी भूमिका में पी.एन. ओक महोदय लिखते हैं :- ”भारतीय इतिहास में जिन विशाल सीमाओं तथा अयथार्थ और मनगढ़ंत विवरण गहराई तक पैठ चुके हैं, वह राष्ट्रीय घोर संकट के समान है। जो अधिक दुखदायी बात है […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-52

कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नरनार की क्रोध, मद, मोह, लोभ इत्यादि के विषय में भी ऐसा ही मानना चाहिए। अर्थात एक सीमा तक क्रोध (मन्यु) ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत उचित है, परंतु सीमोल्लंघन होते ही क्रोध भी ईश्वरीय व्यवस्था में बाधक हो जाता है। यदि पापी, दुष्ट, अत्याचारी, अनाचारी और किसी भी असामाजिक व्यक्ति […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-10

गांधीजी का कहना था कि- ”अगर पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा” परंतु यह उनके जीते जी ही बन गया। हां! ये अलग बात है कि वह उनकी लाश पर न बनकर देश के असंख्य लोगों की लाशों पर बना। क्या ही अच्छा होता कि यदि वह केवल उनकी ही लाश पर बनता तो […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-9

महात्मा की अपेक्षाएं महात्मा तो वह होता है जिसकी आत्मा संसार के महत्व को समझकर विषमताओं, प्रतिकूलताओं और आवेश के क्षणों में भी जनसाधारण के प्रति असमानता का व्यवहार न करते हुए समभाव का ही प्रदर्शन करती है, किंतु जिसका व्यवहार हठीला हो, दुराग्रही हो, सच को सच न कह सकता हो, इसलिए एक पक्ष […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-8

गांधीजी के नैतिक मूल्यों ने इन समस्याओं को और उलझा दिया। आज परिणाम हम देख रहे हैं कि मानव-मानव से जुड़ा नहीं है, अपितु पृथक हुआ है। आज मानव दानव बन गया है। संप्रदाय आदि के झगड़े राष्ट्र में शैतान की आंत की भांति बढ़े हैं। क्योंकि हमने मजहब संप्रदाय, वर्ग, पंथ, भाषा, जाति आदि […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-7

गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता को गांधीवाद का एक महान लक्षण बताकर महिमामंडित किया गया है। हिंदू उत्पीडऩ, हिंदू दमन, हिन्दू का शोषण और विपरीत मजहब वालों का तुष्टिकरण गांधीवाद में धर्मनिरपेक्षता की यही परिभाषा है। इस पर हम पूर्व लेखों में पर्याप्त प्रकाश डाल चुके हैं। अपनी इसी धर्मनिरपेक्षता के कारण गांधीजी ने […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-6

(पाठकवृन्द! इससे पूर्व इस लेखमाला के आप 5 खण्ड पढ़ चुके हैं, त्रुटिवश उन लेखमालाओं पर क्रम संख्या नहीं डाली गयी थी। इस 6वीं लेखमाला का अंक आपके कर कमलों में सादर समर्पित है।) गांधीजी की सिद्घांत के प्रति यह मतान्धता थी, जिद थी, और उदारता की अति थी। लोकतंत्र उदारता का समर्थक तो है […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना- 5

इस घटना से जो उत्तेजना फैली उससे  एक दिन मालेर कोटला के महल को कूकों के द्वारा घेर लिया गया और जमकर संघर्ष हुआ। परिणाम स्वरूप 68 व्यक्ति मालेर कोटला के डिप्टी कमिश्नर ‘मिस्टर कॉवन’ ने पकड़ लिये  और अगले दिन उनमें से 49 लोग तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिये गये तथा पचासवां […]

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