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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-2

भारत की इस प्रवाहमानता के कारण भारत के चिंतन में कहीं कोई संकीर्णता नहीं है, कही कोई कुण्ठा नहीं है, कहीं किसी के अधिकार को छीनने की तुच्छ भावना नहीं है, और कहीं किसी प्रकार का कोई अंतर्विरोध नहीं है। सब कुछ सरल है, सहज है और निर्मल है। उसमें वाद है, संवाद है-विवाद नहीं […]

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राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

हामिद अंसारी के अंतिम बोल

हामिद अंसारी के अंतिम बोलदेश के लगातार दो बार उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी दस अगस्त को विदा हो गये। श्री अंसारी ने जाते-जाते भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर सवाल उठाये हैं। उन्हें दस वर्ष देश का उपराष्ट्रपति रहते हुए नहीं लगा कि देश में अल्पसंख्यकों के लिए कोई संकट है, पर अब जब उन्हें यह […]

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विशेष संपादकीय विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-1

यदि कोई मुझसे ये पूछे कि भारत के पास ऐसा क्या है-जो उसे संसार के समस्त देशों से अलग करता है?-तो मेरा उत्तर होगा-उसका गौरवपूर्ण अतीत का वह कालखण्ड जब वह संसार के शेष देशों का सिरमौर था अर्थात ‘विश्वगुरू’ था। जब मेरे से कोई ये पूछे कि भारत के पास ऐसा क्या है-जिससे वह […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

हिन्दू महासभा से…

आज राष्ट्र के समक्ष विभिन्न ज्वलंत समस्याएं हैं। देश में सर्वत्र अराजकता की सी स्थिति है। राजनीतिज्ञ धर्महीन, धर्मनिरपेक्ष होकर पथभ्रष्ट हो गये हैं। लोगों का राजनीति और राजनीतिज्ञों से विश्वास भंग हो चुका है, क्योंकि राजनीति और राजनीतिज्ञ आज व्यक्ति का शोषण कर रहे हैं और अधिकारों का दोहन कर रहे हैं। जबकि उनसे […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

राष्ट्र भाषा हिन्दी की दुर्गति, भाग-4

भारत के राजनैतिक नेतृत्व से ऐसी अपेक्षा की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसे तो वोटों की राजनीति करनी है। मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च में जाकर उन्हीं की पोशाक पहनना और उन्हीं की बोली बोलना आज हमारे इन राजनीतिज्ञों का शगुन हो गया है। इन धर्महीनों से राष्ट्रधर्म पालन करने की अपेक्षा करना बेमानी है। […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र राजनीति संपादकीय

राष्ट्र भाषा हिन्दी की दुर्गति, भाग-3

राष्ट्र भाषा हिन्दी की दुर्गति, भाग-3 भारत में संविधान के अंदर एक दर्जन से भी अधिक भारतीय भाषाओं को मान्यता प्रदान कर दी गयी है। यदि राजभाषा हिंदी अपने सही ढंग से उन्नति करती और उसकी उन्नति पर हमारी सरकारें (केन्द्रीय और प्रांतीय दोनों) ध्यान देतीं तो आज जो क्षेत्रीय भाषाई लोग अपनी-अपनी भाषाओं को […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

पूर्णत: सजग भारत की सजग विदेश नीति

पूर्णत: सजग भारत की सजग विदेश नीति : भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में भारत की विदेशनीति पर उठाये गये विपक्ष के प्रश्नों का जिस प्रकार उत्तर दिया-उससे विपक्ष की बोलती बंद हो गयी। उसके पास कोई प्रति प्रश्न नहीं था। विदेशमंत्री के स्पष्टीकरण से लगा कि भारत की वर्तमान विदेशनीति […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र राजनीति संपादकीय

उठो! स्वाभिमानी भारत के निर्माण के लिए

उठो! स्वाभिमानी भारत के निर्माण के लिए. पाकिस्तान ने अपने जन्म के पहले दिन से ही भारत के लिए समस्याएं खड़ी करने का रास्ता अपनाया। पराजित मानसिकता के इतिहास बोध से ग्रसित भारत के शासक वर्ग ने पाकिस्तान द्वारा देश में और देश के बाहर बोयी गयी समस्याओं के काटने पर तो ध्यान दिया, पर […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

मेरी वाणी के अग्रभाग में मधु रह्वहे

संसार में अधिकांश झगड़े, वाद-विवाद और कलह क्लेश हमारी जिह्वा पर हमारा नियंत्रण न होने के कारण होते हैं। रसना और वासना व्यक्ति की सबसे बड़ी शत्रु हैं। जिह्वा का नियंत्रण समाप्त हुआ नहीं कि कुछ भी घटना घटित हो सकती है। जिह्वा के विषय में यह भी सत्य है कि-  रहिमन जिह्वा बावरी कह […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र राजनीति संपादकीय

राष्ट्र भाषा हिन्दी की दुर्गति, भाग-2

 जिस देश की अपनी कोई भाषा नहीं होती- वह बैसाखियों पर चलता है। ऐसे देश की स्वाधीनता उधार होती है, उसकी आस्थायें उधार होती हैं, उसकी मान्यतायें और परम्परायें भी उधार होती हैं। जब ऐसी परिस्थितियां किसी देश के समाज में बन जाया करती हैं तब इस देश का सांस्कृतिक पतन होने लगता है। आज […]

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