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संपादकीय

जय समाजवाद-जय शिक्षामित्र

उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्र सडक़ों पर है। उनका कहना है कि सरकार के द्वारा उन्हें सहायक अध्यापक बनाकर अब उन्हें  हाईकोर्ट के द्वारा जिस प्रकार बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है वह गलत है और उनकी सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति पूर्ववत रहनी चाहिए। अपनी मांगों को लेकर अपने आंदोलन को उग्र करते हुए शिक्षामित्र आंदोलनकारियों में से हजारों ने ‘इच्छा मृत्यु’ की मांग की है। उधर कुछ शिक्षा मित्र केन्द्रीय मानव संसाधन विकासमंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी से मिलीं, तो फफक -फफक कर रो पड़ीं।

वास्तव में भूख ऐसी ही चीज है जो व्यक्ति को याचक भी बनाती है और जलील भी करती है। भूख लगती है तो व्यक्ति याचक की मुद्रा में आ ही जाता है, जब रोज-रोज रोटी का जुगाड़ न बनने की समस्या पैदा हो जाती है तो व्यक्ति का स्वाभिमान स्वयं ही भूख की गरमी से वैसे ही पिघल जाता है जैसे सूर्य की गरमी से बर्फ का ढेर पिघल जाता है।

‘‘तन की हविश मन को गुनाहगार बना देती है,
ओ देशभक्ति सिखाने वालों,
भूख इंसान को गद्दार बना देती है।’’

शिक्षक गद्दार नही है पर खुद्दार अवश्य है, और खुद्दार (आत्म स्वाभिमानी) होना भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। राज्य व्यवस्था व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षक होती है, शिक्षित और शिक्षक लोगों के आत्मस्वाभिमान को यदि व्यवस्था खाने लगेगी तो समाज और राष्ट्र को बहुत सी आपदाओं का सामना करना ही पड़ेगा। शिक्षामित्र शिक्षा के लिए समर्पित है ंउनके लिए कोई कष्ट नही होना चाहिए। उनकी आजीविका के साधन को छीनकर आप क्या उन्हें छुरी चाकू पकड़ाना चाहेंगे? यह बात विचारणीय है।

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों उच्च न्यायालय ने एक आदेश के द्वारा सरकार को यह निर्देश दिये थे कि प्रदेश में ‘सुदामा और कृष्ण’ को एक साथ पढ़ाने की व्यवस्था करो। इस महत्वपूर्ण आदेश की चारों ओर प्रशंसा हुई थी आज भी लोग उस आदेश पर चर्चा करते हैं और विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में उसके समर्थन में लेख लिखे जा रहे हैं। क्या ही अच्छा होता कि शिक्षामित्रों के संबंध में माननीय न्यायालय सरकार को निर्देशित करता कि प्रदेश में पब्लिक स्कूलों को बंद करके सरकारी स्कूल खोले जाएं, और उसमें शिक्षामित्रों को यथास्थान ‘समायोजित’ किया जाए।

वैसे प्रदेश में जितने भर भी सरकारी कार्य होते हैं (जैसे जनगणना, पशुगणना, मतदाता सूची तैयार करना, चुनावी तैयारियां करना-कराना इत्यादि) वे सब तहसील स्तर पर कार्यरत कर्मचारियों और प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों के माध्यम से ही पूर्ण कराये जाते हैं। जिससे वहां स्टाफ की काफी कमी अनुभव की जाती है, फलस्वरूप तहसील स्तर पर काश्तकारों के दाखिल खारिज तक भी समय से पूर्ण नही हो पाते हैं। उधर विद्यालयों में से अध्यापकों के निरंतर अनुपस्थित रहने से विद्यार्थियों का विद्याध्ययन का कार्य भी प्रभावित होता है। कहने का अभिप्राय यह कि यदि प्रदेश में आज की तिथि में चल रहे सभी पब्लिक स्कूलों को बंद करा दिया जाए तो जितने स्कूल इस समय प्रदेश में है उनके चार-पांच गुणा विद्यालय खोलने पड़ेंगे। जिससे लाखों युवक युवतियों को रोजगार मिलेगा। यह  काम किया जाना चाहिए।

प्रारंभ में निजी विद्यालयों का सरकारीकरण करने से भी राहत मिल सकती है। जिन निजी विद्यालयों को चलाया जा रहा है, वे अपना भवन दें और प्रबंधन अपना रखें, सरकार उन्हें भवन का और प्रबंधन का उचित किराया व खर्चा दे, जिससे वह बेरोजगार न होने पायें, और उनका शिक्षा के प्रति लगाव भी बाधित ना हो। क्योंकि जो लोग शिक्षा के लिए निजी विद्यालय चला रहे हैं, उनके से कईयों का शिक्षा एक मिशन है और समाज सेवा एवं राष्ट्रनिर्माण उनका जीवनोद्देश्य है। इसलिए हमारा मानना है कि निजी विद्यालयों को बंद करने के लिए सरकारी आदेश मिलने से शिक्षा को एक व्यवसाय के रूप में अपनाने वाले ‘व्यावसायिक सोच’ लोग तो तुरंत मैदान छोड़ देंगे, पर समाज सेवी लोग सरकार का साथ दे सकते हैं। इसलिए उनके पुनर्वास की व्यवस्था करना भी सरकार का दायित्व है। जिन लोगों को माननीय न्यायालय के आदेश से राहत मिली है, उनके लिए भी हमारे मन में सम्मान है। रोजगार प्राप्त करना उनका भी अधिकार है और माननीय न्यायालय ने विधिक प्राविधानों के अंतर्गत इन लोगों को सरकारी सेवाएं प्रदान करने के लिए ही अपना शिक्षामित्रों संबंधी निर्णय भी दिया है। हमें उस निर्णय की समीक्षा नही करनी है। पर हम विवेक पूर्ण ढंग से कोई ऐसा रास्ता अपनायें जिससे ‘शिक्षामित्र’ भी ‘शिक्षाशत्रु’  न बनने पायें।

यह सौ प्रतिशत सत्य है कि प्रदेश की लाखों नौकरियों को बिना नियम प्रक्रिया का पालन करे ही प्रदेश के निजी विद्यालय हड़पे बैठे हैं। प्रदेश के लाखों युवाओं को 2-3 हजार की नौकरी पर रखकर उनके परिश्रम का फल प्रदेश के कुछ हजार निजी विद्यालय वाले लोग खा रहे हैं। यह पूंजीवाद है। पर प्रदेश तो समाजवादियों का है, इसलिए आशा की जाती है कि प्रदेश के युवा समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शिक्षामित्रों को शीघ्र कोई ऐसा ठोस निर्णय देंगे जिससे पौने दो लाख शिक्षामित्रों और उनके लाखों परिवार वालों के आंखों के आंसू सूखेंगे। प्रदेश में पूंजीवाद के प्रतीकों को खोजा जाए और उन्हें चिह्नीकरण करके मिटाने का प्रयास किया जाए। जय समाजवाद-जय शिक्षामित्र।

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