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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-61

तालाबों को प्राचीन काल में हमारे पूर्वज लोग बड़ा स्वच्छ रखा करते थे। पर आजकल तो इनमें कूड़ा कचरा और गंदी नालियों का गंदा पानी भरा जाता है। यही स्थिति नदियों की है। जो वस्तु हमारे जीवन का उद्घार करने में सहायक थी उन्हें ही हमने अपने लिए विनाश का कारण बना लिया है। हमें […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-60

वेदमंत्र जो कुछ कहता है उसकी व्याख्या वेदश्रमीजी इस प्रकार करते हैं-”हे अग्नि! तुम वृष्टि से हमारी रक्षा करो। अर्थात वृष्टि करके हमारा पालन करो और अति वृष्टि को रोककर भी वृष्टि से हमारी रक्षा करो। इस प्रकार दोनों प्रकार की प्रक्रियाओं के प्रति इसकी संगति होती है। किस प्रकार रक्षा या पालन करें इसके […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-59

इस मंत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जैसे हमारा मुख सिर के अग्र भाग में होता है, वैसे ही यान का संचालन यंत्र अग्रभाग में ही रखना चाहिए। इसे तीन आवरण वाला अर्थात सुरक्षा, गति व संचालन की दृष्टि से त्रिवृत्त कहा गया है। संचालन कक्ष में संचालकों के बैठने व बाह्य […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत-58

वहां कहा गया है-”ओ३म् अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्।।” (ऋ. 1/1/1) यहां पर अग्नि को सर्वत: हित करने में अग्रणी मानते हुए उसकी स्तुति करने की बात कही गयी है। इसका अभिप्राय है कि वेद का ऋषि अग्नि के गुणों से परिचित था। तभी तो उसने उसकी स्तुति का उपदेश दिया है। अग्नि तत्व […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत-57

ऋग्वेद (10/85/47) ने पति-पत्नी को जल के समान मिलने की बात तो कही ही है, साथ ही इनके मिलन को और भी अधिक सुंदर और उपयोगी बनाते हुए एक उपदेश और दिया है। जिसमें ‘सं मातरिश्वा’ की बात कही गयी है। इसका अभिप्राय है कि तुम दोनों परस्पर मिलकर ऐसे रहो जैसे दो वायु परस्पर […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-56

वेद (अथर्व 03/30/2) में आया है :-अनुव्रत: पितु पुत्रो मात्रा भवतु संमना:। जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्।। वेद का आदेश है कि पुत्र अपने पिता का अनुव्रती हो, पिता के अनुकूल आचरण करने वाला हो। पिता के दिये गये निर्देशों का वह श्रद्घापूर्वक पालन करे। ध्यान रहे कि पिता का हृदय अपनी संतान के […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-55

कलकत्ता की टकसाल के अध्यक्ष रहे प्रो. विल्सन ने कहा था-”मैंने पाया कि ये लोग सदा प्रसन्न रहने वाले और अथक परिश्रमी हैं। उनमें चापलूसी का अभाव है और चरमसीमा की स्पष्टवादिता है। मैं यह कहना चाहूंगा कि जहां भी भयरहित विश्वास है वहीं स्पष्टवादिता भारतीयों के चरित्र की एक विशिष्ट विशेषता है। पढ़े-लिखे लोगों […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-54

विश्वगुरू के रूप में भारत-54  (5) सर्वकल्याण था भारत का धर्म अन्त्योदयवाद और सर्वोदयवाद भारत के आदर्श रहे हैं। ऐसी उत्कृष्ट सांस्कृतिक भावना की रक्षा करना भी भारत का धर्म था। विदेशी लुटेरे शासक डाकू समूह के रूप में उठे और विश्व के कोने-कोने में फैल गये। उनका कार्य उस समय लूटमार और हिंसा हो […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत-53

विश्वगुरू के रूप में भारत-53  दासता से मुक्ति का दिया भारत ने विश्व को संदेश भारत ने अपना स्वाधीनता संग्राम उसी दिन से आरंभ कर दिया था जिस दिन से उसकी स्वतंत्रता का अपहत्र्ता पहला विदेशी आक्रांता यहां आया था। इस विषय पर हम अपनी सुप्रसिद्घ पुस्तक श्रंखला ‘भारत के 1235 वर्षीय स्वाधीनता संग्राम का […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-52

विश्वगुरू के रूप में भारत-52  दूध को जब तक आप बिना पानी मिलाये बेच रहे हैं, तब तक वह व्यवहार है, पर जब उसमें पानी की मिलावट की जाने लगे और अधिकतम लाभ कमाकर लोगों का जीवन नष्ट करने के लिए बनावटी दूध भी मिलावटी करके बेचा जाने लगे तब वह शुद्घ व्यापार हो जाता […]

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