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विधि-कानून

भारत की विधिक व्यवस्था में स्थानीय भाषा का औचित्य

पंकज जायसवाल अदालतें आम आदमी, विधायिका, न्यायिक प्रणाली और कार्यकारी शक्ति के बीच सामाजिक बंधन और विश्वास बढाती हैं। जब यह संतुलन बन जाता है, तो देश अपनेपन की भावना, विभिन्न हितधारकों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों और संविधान और इसकी प्रभावशीलता में विश्वास के साथ दृढ़ता से आगे बढ़ता है। “स्थानीय भाषा” सबसे शक्तिशाली स्तंभों […]

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विधि-कानून

कब तक इंतजार करना पड़ेगा समान नागरिक संहिता के लिए ?

अवधेश कुमार यह निश्चित मानिए कि देश में नए सिरे से समान नागरिक संहिता की वैधानिक शुरुआत हो जाएगी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की समान नागरिक संहिता के लिए समिति बनाने की घोषणा कर ही चुके हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि वह राज्य में समान नागरिक संहिता […]

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मुस्लिम वक्फ संपत्ति और सर्वोच्च न्यायालय

अरुण कुमार सिंह दिल्ली के महरौली स्थित वह गुम्बदनुमा मकान, जो मनमोहन मलिक को 1947-48 में आवंटित किया गया था। अब वक्फ बोर्ड कह रहा है कि यह उसकी संपत्ति है। इस कारण मकान बंद पड़ा है हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका का निपटारा करते हुए कहा है कि बिना प्रमाण किसी […]

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विधि-कानून

भारत की न्याय व्यवस्था और दलाल

कुछ महीने पहले एक टीवी चैनल पर कार्यक्रम था उस कार्यक्रम में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई जो उस वक्त राज्यसभा सांसद बन चुके थे साथ में तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा और कई लोग थे । एंकर ने जब पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई से भारत की न्याय व्यवस्था के बारे […]

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विधि-कानून

देश के लिए हितकारी नही अल्पसंख्यक वाद की अवधारणा

डॉ. वेदप्रताप वैदिक महाराष्ट्र और कर्नाटक ने संविधान के ढीले-ढाले प्रावधानों का सहारा लेकर मज़हबी और भाषाई आधार पर अपने नागरिकों को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्गों में बांट रखा है। हमारी केंद्र सरकार ने उक्त याचिका का समर्थन करते हुए संवैधानिक प्रावधान का हवाला भी दे दिया है। इधर सर्वोच्च न्यायालय में एक बड़ी मजेदार […]

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विधि-कानून

न्यायिक सक्रियता समय की आवश्यकता

अनूप भटनागर शीर्ष अदालत के कड़े रुख के बावजूद उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनावों के दौरान संदिग्ध छवि वाले ऐसे व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाने का सिलसिला जारी रहा, जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों के आरोप में मुकदमें लंबित हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को राजनीतिक दल का प्रत्याशी बनाने का एक […]

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विधि-कानून

*महामारी मुआवजाः राज्यों की खिंचाई*

*डॉ. वेदप्रताप वैदिक* सर्वोच्च न्यायालय ने उन प्रदेश-सरकारों को कड़ी झाड़ लगाई है, जिन्होंने कोरोना महामारी के शिकार लोगों के परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया है। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश था कि प्रत्येक मृतक के परिवार को 50 हजार रु. का मुआवजा दिया जाए। सभी राज्यों ने कार्रवाई शुरु कर दी लेकिन उसमें […]

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विधि-कानून

जरूरत है भारत की न्याय प्रणाली के भारतीयकरण की

अनूप भटनागर देश के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण का मत है कि न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली का भारतीयकरण समय की मांग है। लेकिन इसमें महत्वपूर्ण सवाल यह जुड़ा है कि विविधता से परिपूर्ण भारत में न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण कैसे हो। प्रधान न्यायाधीश की यह चिंता भी उचित है कि अदालतों की कार्यवाही अंग्रेजी […]

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विधि-कानून

पेगासस मामले की सुनवाई और मोदी सरकार

नित्या चक्रवर्ती पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग केवल गोपनीयता के उल्लंघन, या सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अवैध निगरानी या जासूसी का मामला नहीं है। यह उससे अधिक है। पेगासस मिलिट्री ग्रेड स्पाइवेयर है जो सर्विलांस और हैकिंग को एक नए स्तर पर ले जाता है। यदि इसका उपयोग केंद्रीय एजेंसियों द्वारा पत्रकारों के अलावा विपक्षी नेताओं और […]

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आओ कुछ जाने विधि-कानून

जनहित याचिकाएं ना बने निजी हित साधने का हथियार

अनूप भटनागर समाज के कमजोर और न्याय तक पहुंच से वंचित तबकों के हितों की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा अस्सी के दशक में शुरू की गयी जनहित याचिका, जो पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के नाम से ज्यादा चर्चित है, प्रणाली आज जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा और इनके प्रति उदासीन कार्यपालिका और भ्रष्ट […]

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