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वैदिक संपत्ति

वैदिक सम्पत्ति , गतांक से आगे …

इससे स्पष्ट हो जाता है कि वैदिक शिक्षा में बड़े बूढ़ों के मान और सेवा के लिए कितना जोर दिया गया है। इस कौटुम्बिक व्यवहार के आगे हम दिखलाना चाहते हैं कि वेदों में अपने कुटुम्ब से सम्बन्ध रखनेवाले अन्य जातिबन्धुयो के लिये किस प्रकार सुख की कामना करने का उपदेश है। ऋग्वेद में लिखा […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे…

इस प्रकार से गृहस्थ की दशा का वर्णन करके अब गृहस्य के नित्य करने योग्य पंचमहायज्ञों का वर्णन करते हैं। यजुर्वेद में लिखा है कि– यद् ग्रामे यदरण्ये यत्सभायां यदिन्द्रिये । यदेनश्चकृमा वयमिदं तदवयजामहे ।। (यजुर्वेद 3/45) अर्थात् ग्राम में, जंगल में और सभा में हमने इन्द्रियों से जो पाप किया है, उसे इस यज्ञ […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे…

गतांक से आगे… ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिस्त्रु तम् । स्वधा स्थ तर्पयत मे पितृन् (यजुर्वेद 2/34) अर्थात् बलकारक जल, घृत, दूध रसयुक्त अन्न और पके हुए तथा टपके हुए मीठे फलों की धारा बह रही है, अतः हे स्वधा में ठहरे हुए पितरो ! आप तृप्त हों। इन मन्त्रों के अनुसार वैदिक घरों […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे… ग्रहस्थाश्रम

ग्रहस्थाश्रम उपर्युक्त इच्छाएँ विना गृहस्थाश्रम के पूरी नहीं हो सकतीं, इसलिए वेदों में गृहस्थाश्रम का पर्याप्त वर्णन है। यहाँ हम नमूने के तौर पर गृहस्थाश्रम की खास खास बातें लिखते हैं। सबसे पहिले देखते हैं कि वेदमन्त्रों के अनुसार गृहस्थ की हालत कैसी होनी चाहिये । अथर्ववेद में लिखा है कि- इहैव स्तं मा वि […]

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वैदिक सम्पत्ति : चतुर्थ खण्ड: – वेदमन्त्रों के उपदेश

गतांक से आगे… नमूने के तौर पर हम यहां वेदों के कुछ सरलार्थं मन्त्रों को उद्धृत करके दिखलाते हैं कि वेद प्रत्येक आवश्यक विषय की शिक्षा किस प्रकार देते हैं। यहां हम एक एक विषय के दो – दो चार – चार मन्त्र ही देंगे। यह वेदविषयों की एक सूची मात्र ही है। इन विषयों […]

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वैदिक सम्पत्ति : चतुर्थ खण्ड:- वेद मंत्रों के उपदेश

गतांक से आगे….. वेदों का यह हाल नहीं है। वेद किन्हीं रिवाजों के बाद नहीं बने, प्रत्युत उन्होंने ही आवश्यक रिवाजों को जन्म दिया है। यज्ञोपवीत के लिए वेद इतना ही आवश्यक समझते हैं कि दूसरे कुल में जाने पर विद्या प्रारम्भ करने पर ओर मनुष्य पशरीर के अन्तिम धेय के प्राप्त करनेवाले व्रत को […]

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वैदिक सम्पत्ति : चतुर्थ खण्ड:- वेद मंत्रों के उपदेश

गतांक से आगे….. प्रायः लोग कहा करते हैं कि मनुष्यों को ज्ञान की जितनी आवश्यकता है, वह सभी ज्ञान वेदों में हितार्थी मैं – नहीं है, अर्थात् हमारे व्यवहार में आनेवाली ऐसी अनेक बातें हैं, जिनका वर्णन वेदों में नहीं है, इसलिए वेदों के साथ जबतक अन्य ग्रन्थों की शिक्षा भी सम्मिलित न की जाय, […]

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वैदिक सम्पत्ति : इतिहास, पशुहिंसा और अश्लीलता

गतांक से आगे… क्योंकि परमात्मा जानता है। कि मनुष्य कितनी जल्दी भ्रम में पड़ जाता है। इसलिए उसको भ्रम से बचाने के लिए वेदों में स्थान- स्थान पर चेतावनी दे दी है। इस गुप्तेन्द्रिय प्रकरण में भी वेद कहते हैं कि- मा शिश्रदेवा अपि गुॠ र्त नः (ऋग्वेद 7/21/5) अर्थात् है मनुष्यो !! शिक्ष को […]

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वैदिक सम्पत्ति: इतिहास, पशुहिंसा और अश्लीलता , गतांक से आगे…

गतांक से आगे… वेदों ने इस बीभत्स वर्णन के साथ – साथ संसार के एक बहुत बड़े पाप का खुलासा करते हुए उपदेश दिया है कि किसी मनुष्य को अपनी पुत्री के साथ इस प्रकार का घृणित व्यवहार कभी न करना चाहिए। अथर्ववेद में आज्ञा है कि- यस्त्वा स्वप्ने निपद्यते भ्राता भूत्वा पितेव च । […]

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वैदिक सम्पत्ति: इतिहास, पशुहिंसा और अश्लीलता

इतिहास, पशुहिंसा और अश्लीलता गतांक से आगे.. जिस प्रकार वेदों में इतिहास और पशुयज्ञ नहीं हैं, उसी तरह वेदों में अश्लीलता भी नहीं है। कुछ लोग कहा करते हैं कि वेदों में अश्लील बातों का वर्णन है, पर जिन स्थलों को लेकर वे ऐसा कहते हैं वे स्थल काव्य के उत्कृष्ट रसोद्रफ के द्वारा बहुत […]

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