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आभासी सांप्रदायिकता के खतरे

संजय द्विवेदी जिस तरह का माहौल अचानक बना है, वह बताता है कि भारत अचानक अल्पसंख्यकों (खासकर मुसलमान) के लिए एक खतरनाक देश बन गया है और इसके चलते उनका यहां रहना मुश्किल है। उप्र सरकार के एक मंत्री यूएनओ जाने की बात कर रहे हैं तो कई साहित्यकार अपने साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने पर […]

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लोकतंत्र के लिए खुद को बचाए कांग्रेस

प्रो. एनके सिंह कांग्रेस अब तक जिस अंदाज में काम करती आई है, उसे छोडक़र अब आगे बढऩे के लिए नई दिशाएं चुननी होंगी। गांधीजी के कार्य के तौर-तरीके मौलिक थे और इसी वजह से आज उनकी गिनती ऐसे राजनेताओं में होती है, जिन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी एक खास छाप छोड़ी है। हालांकि इससे पहले […]

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ओवैसी ने किया आजम खां के बयान पर विरोध

हैदराबाद। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान के उस बयान पर विरोध दर्ज कराया है, जिसमें उन्होंने दादरी कांड को संयुक्त राष्ट्र ले जाने की बात कही है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के दादरी में एक मुस्लिम व्यक्ति की गाय का मांस खाने की अफवाह के […]

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तकनीक से परिवर्तन की कोशिश

प्रमोद भार्गव इसमें कोई दो राय नही कि दुनिया के साथ कदमताल मिलाने की हमारी कोशिशों में गति आई है। किंतु व्यवस्था की भ्रष्ट सोच, उद्यमियों को हतोत्साहित करने की मानसिकता और संसाधनों के अन्यायपूर्ण बंटवारे के चलते हम पिछड़ रहे हैं। इसे सुधारने के लिए व्यवस्था बनाम लालफीताशाही पर लगाम लगाने की कोशिश अब […]

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विश्व को आर्थिक वृद्धि बढ़ाने के लिए अतिरिक्त कंधों की जरूरत:जेटली

न्यूयार्क। विश्व को आर्थिक वृद्धि बढ़ाने के लिए चीन के अलावा कुछ अतिरिक्त कंधों की जरूरत है और यह भारत के लिए मौका है। यह बात वित्त मंत्री अरण जेटली ने कही। कोलंबिया विश्वविद्यालय में सोमवार को यहां छात्रों और अध्यापकों को संबोधित करते हुए जेटली ने कहा कि भारत में आकांक्षाएं बढ़ाने की क्रांति […]

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आस्था को तर्कों की कसौटी पर तौलने के मायने ?

निर्मल रानी हमारे देश और दुनिया में विभिन्न धर्मों व समुदायों के मध्य इस प्रकार की अनेकानेक ऐसी धार्मिक व सामाजिक मान्यताएं व रीति-रिवाज हैं जिनका सीधा संबंध लोगों की आस्था,उनके संस्कार तथा धार्मिक विश्वास से जुड़ चुका है। इनमें तमाम रीति-रिवाज व मान्यताएं ऐसी भी हैं जो भले ही इन्हें मानने वालों के लिए […]

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क्या आरक्षण अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है?

वीरेश्वर तोमर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की सामाजिक संरचना में विभिन्न कारकों का वर्चस्व रहा। समाज के कुछ विशेष वर्ग, वर्षों से शोषण परक सत्ता के कुकृत्यों से दबे हुए थे। संविधान निर्माताओं द्वारा एक समतामूलक समाज की प्राप्ति हेतु इस वर्ग के उत्थान हेतु दोहरे उपबंध करना आवश्यक प्रतीत हुआ- भेदभाव को समाप्त […]

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नरेन्द्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा

पीके खुराना मोदी सचमुच बहुत अच्छे इवेंट मैनेजर हैं और उन्होंने जनता से जुडऩे के हर माध्यम और हर मंच का बेहतरीन उपयोग किया है। तकनीक का प्रयोग भी उन्होंने बेहतरीन तरीके से किया है और प्रचार के किसी अवसर को वे हाथ से जाने नहीं देते। हाल के अमरीका दौरे में उन्होंने न केवल […]

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वामपंथ के लिए चिंतन का सही समय

मनमोहन सिंह अगर वोटों के हिसाब से देखें तो वामपंथी विचारधारा पिछड़ती नजर आ रही है। सोवियत संघ के टूटने के बाद पूर्वी यूरोप के देशों ने जिस तरह इस विचारधारा को दरकिनार किया, उसने पूरी दुनिया के साम्यवादी आंदोलन को कठघरे में ला खड़ा किया है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। चौंतीस साल […]

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आखिर क्यों धधक रहा ‘हिन्दू राष्ट्र’ नेपाल?

अवधेश कुमार नेपाल हिंसा में झुलस रहा है। भारत से लगे मधेस इलाकों में आंदोलन के हिंसक होने के बाद लागू कफ्र्यू तक से अंतर नहीं आया। लोगों की जानें जा रही हैं, लेकिन उनका सडक़ों पर आना रुका नहीं है। उनकी नाकेबंदी के चलते भारत से सामान की आपूर्ति बाधित हो रही है। विचित्र […]

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