साहित्यिक सचेतना मंच के अन्तर्गत पटल पर विषय:-संलग्न चित्र आधारित काव्य संरचना प्रस्तुत है :- (रचयिता:-आचार्य डा०श्वेत केतु शर्मा बरेली) यज्ञ ही जीवन हमारा,यज्ञ ही श्रेष्ठतम कर्म है, यज्ञ ही मानव कल्याण का,जीवन पाराहार है। यज्ञ से प्रशस्त होता,मोक्ष मार्ग का आनन्द है, जीवन को सुखद आनंदित कराता,यज्ञ-यज्ञ है। (२) शान्ति सुखद मंगलकारी सकारात्मक सोच […]
श्रेणी: कविता
🌻कुहरे में डूबी हैं सुबह , जी भर के जी लें, आओ मित्र एक कप चाय , साथ-साथ पी लें ! मिल-बैठ सुनें ज़रा आओ , मौसम की आहट, ठण्डे हैं पड़ गए रिश्ते , भर दें गरमाहट, मौका हैं चलो दें निकाल , कटुता की कीलें, आओ मित्र एक कप चाय , साथ-साथ पी […]
जब आयेगा वर्ष नया, तब करूंगा तेरा अभिनंदन। नई छटा तब बिखरेगी हर कण बोलेगा अभिनंदन ।। नहीं नयापन कहीं दीखता , सब ओर अंधेरा छाया है। ठिठुरन अभी रक्त में सबके , मन भी नही हरसाया है।। जब कली मुस्कान बखेरेगी, सूरज में होगी गरमाहट। उत्साह से मन प्रफुल्लित होगा , दूर भगेगी घबराहट […]
गिलगित बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओ। वरना जबरन ले लेंगे मत रोओ मत चिल्लाओ।। खून सने कातिल कुत्तों से जनता नहीं डरेगी। दे दो वरना तेरी छाती पर ये पाँव धरेगी।। तेरी मेरी जनता कहने की ना कर नादानी। याद करो आका जिन्ना की बातें पुन: पुरानी।। देश बाँटकर जाते जाते उसने यही कहा था- […]
रखो धैर्य विश्वास जानकी हर मुश्किल का हल होगा, सोने का मृग नहीं चुनो तुम; इसमें निश्चय छल होगा, सपनों में जो सोच रही हो उसके लिए प्रयास रखो, उम्मीदों को मत छोड़ो और पंखों पर विश्वास रखो, जिसकी चाहत है तुमको वो पास तेरे कुंदन आएगा, महकायेगा जो तन मन; निश्चय वो चंदन आएगा, […]
रचना : स्व0 श्री रामस्वरूप आजाद (शिष्य स्वामी भीष्म जी) भारतवर्ष बगीचे के अब ना रहे माली।। ज्योतिष और व्याकरण गणित की खो दई ताली।। ऋषि मुनि इस भूमण्डल को तक पर तोल गए। म्हारे पुरखा पृथ्वी और अम्बर में डोल गए।। हर वस्तु की शक्ति को वेदों में खोल गए। सारी दुनिया से मुंह […]
किसीने पूछा कि ख्वाब क्या है??… बस वही जो रातों को सोने ना दे…! किसी ने पूछा कि आराम क्या है??… बस वही जो माँ के आंचल में सोने से मिले…! किसी ने पूछा कि सुकून क्या है??… बस वही जो नन्हे से बच्चे की आँखों में दिखे…! किसी ने पूछा कि ख्वाइशें क्या है??… […]
!! ★★★★★★★★★★ जनाब एक ही तो जिंदगी है मेरी इसे भी दूसरो की शर्तो पर जी लूं क्या? दूसरो के पद चिन्हों पर चल लूं क्या ? दूसरो की बातों तक सिमट जाऊं क्या? खोल के पर अब आसमां में उड़ना है मुझे! अपने चांद से खुद बातें करना है मुझे! मेरे कदमों के निशां […]
गीत कौन है ऐसा जगत में, जो न करता काम अपने! सूर्य अपना अक्ष पकड़े, सर्वदा गतिमान रहता। और ऊर्जा की उदधि को, सर्व हित में दान करता। ग्रीन हाउस हम बनाकर, फिर लगे दिन-रात तपने। कौन है………………..।। चाँद, तारे, व्योम, धरती, सब जुटे निज काम में हैं। साधु, विज्ञानी, गृही जन, कर्मरत अठ याम […]
हे सत्ता के गलियारों में, दुम हिलाने वालों। हे दरबारी सुविधाओं की, जूठन खाने वालों।। तेरे ही पूर्वज दुश्मन को, कलम बेचकर खाए। तेरे ही पूर्वज सदियों से, वतन बेचते आए।। कलम बिकी तब गोरी के साथी, जयचंद कहाए। कलम बिकी तब राणा साँगा, बाबर को बुलवाए।। बिकती कलमों ने पद्मिनियों को, कामातुर देखा। बिकती […]