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कविता

नहीं नववर्ष ये अपना

नहीं नववर्ष ये अपना, हमारा चैत्र होता है।
खिलेंगे पुष्प उपवन में वही नव वर्ष होता है।।

प्रभु की सृष्टि को समझो बड़ा विज्ञान इसमें है।
पढ़ा कर वेद को बंदे, छुपा यह ज्ञान जिसमें है।।
कभी ऋत सत्य को समझो सनातन हर्ष होता है…
खिलेंगे पुष्प उपवन में वही नव वर्ष होता है।। 1।।

हमारा देश साधक है , सनातन धर्म का प्यारे।
ऋषियों का यहां चिंतन खोलता भेद है सारे।।
निधि अनमोल भारत की, सदा उत्कर्ष होता है….
खिलेंगे पुष्प उपवन में वही नव वर्ष होता है।।2।।

जिन्होंने सत्य को माना वही तो देव होते हैं।
वसुधा पर करें आलोक वही वसुदेव होते हैं।।
जो करते खून की खेती , सदा अपकर्ष होता है ….
खिलेंगे पुष्प उपवन में वही नव वर्ष होता है।।3।।

भारत ज्ञान की भूमि – हमारी है यही थाती।
वैदिक ज्ञान है निर्मल, वसुधा गीत है गाती।।
‘ न्यू ईयर ‘ मत कहो बंधु हमें अफसोस होता है …
खिलेंगे पुष्प उपवन में वही नव वर्ष होता है।।4।।

अनुयायी हमारा ही , कभी भूलोक सारा था।
यूरो पानी भरता था, अरब भी शिष्य सारा था।।
गुरु चेला का चेला हो, दु:खद यह दृश्य होता है…
खिलेंगे पुष्प उपवन में वही नव वर्ष होता है।। 5।।

मिला वरदान ईश्वर का तनिक निज रूप को समझो।
देश अपने को भी समझो इसी के ज्ञान को समझो।।
जो करता ज्ञान का चिंतन, चिरंतन देश होता है ….
खिलेंगे पुष्प उपवन में वही नव वर्ष होता है।।6।।

– डॉ राकेश कुमार आर्य

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