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कविता

बेटी विदा होती है उसकी यादें नहीं

उगता भारत ब्यूरो

बेटियाँ लावा (चावल) उछाल बिना पलटे,
महावर लगे कदमों से विदा हो जाती है ।
छोड़ जाती है बुक शेल्फ में,
कव्हर पर अपना नाम लिखी किताबें ।
दिवार पर टंगी खूबसूरत आइल पेंटिंग
के एक कोने पर लिखा उनका नाम ।
खामोशी से नर्म एहसासों की निशानियां,
छोड़ जाती है ……
बेटियाँ विदा हो जाती है
 
 
रसोई में नए फैशन की क्राकरी खरीद,
अपने पसंद की सलीके से बैठक सजा,
अलमारियों में आउट डेटेड ड्रेस छोड़,
तमाम नयी खरीदादारी सूटकेस में ले,
“मन” आँगन की तुलसी में दबा जाती है….
बेटियाँ विदा हो जाती है
 
सूने सूने कमरों में उनका स्पर्श,
पूजा घर की रंगोली में उंगलियों की महक,
बिरहन दीवारों पर बचपन की निशानियाँ,
घर आँगन पनीली आँखों में भर,
महावर लगे पैरों से दहलीज़ लांघ जाती है…
बेटियाँ लावा उछाल विदा हो जाती है
एल्बम में अपनी मुस्कुराती तस्वीरें ,
कुछ धूल लगे मैडल और कप ,
आँगन में गेंदे की क्यारियाँ उसकी निशानी,
गुड़ियों को पहनाकर एक साड़ी पुरानी,
उदास खिलौने आले में औंधे मुँह लुढ़के,
घर भर में विरानी घोल जाती है…..
बेटियाँ लावा उछाल विदा हो जाती है
टी वी पर शादी की सी डी देखते देखते,
पापा हट जाते जब जब विदाई आती है।
सारा बचपन अपने तकिये क. दबा,
जिम्मेदारी की चुनर ओढ़ चली जाती है ।
बेटियाँ लावा उछाल बिना पलटे विदा हो जाती है ।
(तमाम बेटियों को समर्पित)
साभार

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