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कविता

कुंडलियां … 51 वही कफन ऊपर पड़ा……

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शब्द, रूप, स्पर्श हैं , रस, गंध भी साथ।
पांच विषय विष के घड़े ,कर देते हैं नाश।।
कर देते हैं नाश , जीव घड़ा लटकाए घूमे।
जब भी लगती प्यास, विष घड़े को चूमे।।
विष पी पीकर मरते जाते, रंक रहे या भूप।
समझदार समझ गए, क्या होते शब्द-रूप ?

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मैंने खोजा ईख में, भरी पड़ी मिठास।
जाके देखा फूल में, छाय रहा मधुमास।।
छाय रहा मधुमास , कोयल करती कू – कू।
चातक बोला मुझसे , सोम मेरे संग पी तू।।
गहरा राज छिपा था, इन सारों की सीख में।
समझे! मिठास को क्यों, मैंने खोजा ईख में ?

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वही मुसाफिर दीखता, वही सफर पड़े जान।
वही कफन ऊपर पड़ा, हैं रोवणियां अनजान।।
हैं रोवणियां अनजान , रिश्ते मिल गए धूल।
बड़ा मलाल दिखाते कहते, हो गई भारी भूल।।
कल तक कहते थे ‘मेरा’ , ना है कोई मुसाफिर।
अचंभित है सुन बात आज की, वही मुसाफिर।।

दिनांक :16 जुलाई 2023

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