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कविता

कुंडलियां … 48 ब्रह्मवर्त कहते किसे …….

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विजय मिले संग्राम में, शत्रु का हो अंत ।
ऋषियों का आशीष है, सहमत सारे संत।।
सहमत सारे संत , आशीष उसी को देते।
मानवता की रक्षा का , प्रण सदा जो लेते।।
संतों से ले आशीष, राम बढ़ चले थे निश्चय।
उनके ही हथियारों से,पाई लंका पे विजय।।

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ब्रह्मवर्त कहते किसे, कहां स्थित अजनाभ ?
आर्यावर्त इस देश का, किसने डाला नाम?
किसने डाला नाम ? कहां वे ऋषि छुपाए ?
कहां गए सम्राट हमारे, जो गौरव कहलाए ?
बोलत नाहिं प्रश्नों पर,जालिम मौन खड़े रहते।
हमें नहीं बताते जालिम, किसे ब्रह्मवर्त कहते ?

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मैं कुछ करता हूं नहीं ,करता है कोई और ।
मेरा मन मूरख हुआ, मचा रहा घुड़ दौड़।।
मचा रहा घुड़ दौड़ , व्यर्थ ही होता गर्वित।
जो नहीं अपने हाथ, करता उसको कल्पित।।
नर्क बना रहा है जीवन, बार-बार मैं कहता हूं।
मत बोल कभी ऐसा वचन- मैं कुछ करता हूं।।

दिनांक :15 जुलाई 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य

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