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कविता

कुंडलियां … 44 बादल बूढ़े क्वार के…..

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बादल बूढ़े क्वार के, गरज रहे बेकार।
पास नहीं एक बूंद भी, दिखा रहे अहंकार।।
दिखा रहे अहंकार, ना कोई मोल लगावै।
खांसे और मठारे बूढ़ा ,सबको आंख दिखावे।।
ना आंख उठाके देखे कोई, सब करते घायल।
इसी हालत में रहें, बूढ़ा और क्वार का बादल।।

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भक्ति किये से होत हैं , सभी वासना शांत।
मनवा को समझा रह्यौ , यही वेद सिद्धांत।।
यही वेद सिद्धांत, समझ तू , शीघ्र बावरे।
समय निकले पे क्या समझेगा, बता बावरे?
प्राण ऊर्जा बन रही, जब तक तन में शक्ति।
तब तक ही कर पाएगा, मनवा तू भी भक्ति।।

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जग में मत कभी कीजिए, पर नारी अपमान।
रावण जैसों का ढला , समर बीच अभिमान।।
समर बीच अभिमान, मरा अपमानित होकर।
मरे मराए को मारे , जगत आज भी ठोकर।।
अपमानित होता जीवन और यह घृणा का मग।
दूर रहो ऐसे जीवन से अभिनंदन करता है जग।।

दिनांक : 15 जुलाई 2023

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