✍🏻 लेखक – पदवाक्यप्रमाणज्ञ पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’ इसके दो ही प्रकार हो सकते हैं, कि या तो जगदीश्वर ने आदि मनुष्यों वा ऋषियों को आजकल की भाँति बैठकर पढ़ाया वा लिखकर दे दिया या लिखा दिया हो, यह सब एक ही प्रकार कहा जा सकता है और ईश्वर के शरीरधारी होने […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
✍🏻 लेखक – पदवाक्यप्रमाणज्ञ पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’ इसके दो ही प्रकार हो सकते हैं, कि या तो जगदीश्वर ने आदि मनुष्यों वा ऋषियों को आजकल की भाँति बैठकर पढ़ाया वा लिखकर दे दिया या लिखा दिया हो, यह सब एक ही प्रकार कहा जा सकता है और ईश्वर के शरीरधारी होने […]
पूजनीय प्रभो हमारे…… अध्याय 2 प्रार्थना की अगली पंक्ति-‘छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिए’ है। यह पंक्ति भी बड़ी सारगर्भित है। इसमें भी भक्त अपने शुद्घ, पवित्र अंतर्मन से पुकार रहा है कि मेरे हृदय में कोई कपट कालुष्य ना हो, कोई मलीनता न हो । यह पंक्ति पहली वाली पंक्ति अर्थात ‘पूजनीय प्रभो! […]
पूजनीय प्रभो हमारे… अध्याय 1, जब हम किसी भी शुभ अवसर पर या नित्य प्रति दैनिक यज्ञ करते हैं तो उस अवसर पर हम यह प्रार्थना अवश्य बोलते हैं :– पूजनीय प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिये । छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये ।। 1।। वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें […]
ओ३म् ============ वेदों का नाम प्रायः सभी लोगों ने सुना होता है परन्तु आर्य व हिन्दू भी वेदों के बारे में अनेक तथ्यों को नहीं जानते। हमारा सौभाग्य है कि हम ऋषि दयानन्द जी से परिचित हैं। उनके आर्यसमाज आन्दोलन के एक सदस्य भी हैं और हमने ऋषि दयानन्द के जीवन एवं कार्यों को जानने […]
ओ३म् ============= हम मनुष्य हैं और हमारे कुछ कर्तव्य हैं जिनमें हमारा एक प्रमुख कर्तव्य है कि हम अपने उत्पत्तिकर्ता, जन्मदाता, आत्मा व शरीर को संयुक्त करने वाले तथा हमारे लिए योगक्षेम वा कल्याण के लिए इस सृष्टि को बनाने सहित इसका पालन करने वाले परमेश्वर को जानें और उसके प्रति अपने सभी कर्तव्यों का […]
ओ३म् ============ मनुष्य किसे कहते हैं? इसका सबसे युक्तियुक्त एवं यथार्थ उत्तर ऋषि दयानन्द ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के स्वमन्वयामन्तव्य प्रकरण में दिया है। मनुष्य की परिभाषा एवं उसके मुख्य कर्तव्य का उद्घोष करते हुए वह लिखते हैं ’मनुष्य उसी को कहना (अर्थात् मनुष्य वही होता है जो) मननशील होकर स्वात्मवत् अन्यों के सुख-दुःख और […]
‘सत्यार्थ प्रकाश’ एक ऐसा पवित्र ग्रंथ है जिसने यह स्पष्ट किया कि श्राद्ध, तर्पण आदि कर्म जीवित श्रद्धापात्रों (माता पिता, पितर, गुरु आदि) के लिए होता है, मृतकों के लिए नहीं। तीर्थ दुख ताड़ने का नाम है – किसी सागर या नदी-सरोवर में नहाने का नहीं। इसी प्रकार आत्मा के (मोक्ष पश्चात) सुगम विचरण को […]
ओ३म् ================= हम अपनी आंखों से भौतिक जगत वा संसार का प्रत्यक्ष करते हैं। इस संसार में सूर्य, पृथिवी, चन्द्र व अनेक ग्रह-उपग्रह हैं। हमारे सौर मण्डल के अतिरिक्त भी सृष्टि में असंख्य व अनन्त लोक-लोकान्तर एवं सौर्य मण्डल हैं। यह सब आकाश में विद्यमान हैं और अपनी धुरी सहित अपने-अपने सूर्य-सम मुख्य ग्रह की […]
ओ३म् ========== हम इस संसार में उत्पन्न हुए हैं व वर्षों से रह रहे हैं। जन्म से पूर्व हम कहां थे, क्या करते थे, हम कुछ नहीं जानते हैं? इस जन्म से पूर्व की सभी बातों को हम भूल चुके हैं। ऐसा होना स्वाभाविक ही है। हम बहुत सी बातों को जो कुछ मिनट या […]