ओ३म् =========== ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनादि, अनन्त, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय एवं सृष्टिकर्ता है। वह जीवात्माओं के जन्म-जन्मान्तर के कर्मों के अनुसार न्याय करते हुए उन्हें भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म देकर उनको सुख व दुःख रूपी भोग व फल प्रदान करता है। संसार में असंख्य प्राणी […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
ओ३म् ========== मनुष्य को जीवन में अनेक कार्य करने होते हैं। उसे अपने निजी, पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों की पूर्ति के लिये समय देना पड़ता है। धनोपार्जन भी एक गृहस्थी मनुष्य का आवश्यक कर्तव्य है। इन सब कार्यों को करते हुए मनुष्य को अवकाश कम ही मिलता है। अतः सभी कामों को समय विभाग के […]
डॉ. आनन्द वर्धन (लेखक म्यूजियम एसोशिएशन ऑफ इंडिया के सचिव हैं।) दुनिया की सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों में धार्मिक प्रतीकों का व्यापक प्रयोग किया गया है। परंतु हमारे मंदिर केवल प्रतीक होने तक सीमित नहीं हैं। यदि हम वेदों की ऋषि-प्रज्ञा को मंदिर स्थापत्य की परंपरा से जोड़कर देखें तो उसमें उस समस्त वैज्ञानिकता का […]
ओ३म् =========== यज्ञ श्रेष्ठतम कर्म है। इस कारण वेदभक्त आर्यसमाज के अनुयायी वेदाज्ञा के अनुसार नियमित यज्ञ करते हैं व दूसरों को करने की प्रेरणा भी करते हैं। वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी की अग्निहोत्र यज्ञ में गहरी निष्ठा है। वह प्रत्येक वर्ष सितम्बर महीने में अपने निवास […]
ओ३म् =========== हम मनुष्य शरीरधारी होने के कारण मनुष्य कहलाते हैं। हमारे भीतर जो जीवात्मा है वह सब प्राणियों में एक समान है। प्राणियों में भेद जीवात्माओं के पूर्वजन्मों के कर्मों के भेद के कारण होता है। हमें जो जन्म मिलता है वह हमारे पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर परमात्मा से मिलता है। यदि […]
ओ३म् ========== संसार में जितनी भी ज्ञान की पुस्तकें हैं वह सब मनुष्यों ने ही लिखी व प्रकाशित की हैं। ज्ञान के आदि स्रोत पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि सृष्टि की उत्पत्ति व मानव उत्पत्ति के साथ आरम्भ में ही मनुष्यों को वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ था। जो लोग नास्तिक व […]
रवि शंकर मनुस्मृति में वर्ण की ही चर्चा है, जाति की नहीं। परंतु मनु में जन्मना जाति का निषेध अवश्य पाया जाता है। उदाहरण के लिए कहा गया है कि अपने गोत्र या कुल की दुहाई देकर भोजन करने वाले को स्वयं का उगलकर खाने वाला माना जाए (मनु 3/109)। इसका सीधा तात्पर्य है कि […]
ओ३म् ============== वैदिक धर्म एवं संस्कृति की विशेषता है कि इसके सब सिद्धान्त एवं मान्यतायें ज्ञानयुक्त है तथा तर्क एवं युक्ति की कसौटी पर खरे हैं। वैदिक धर्म का पालन करते हुए सभी गृहस्थियों के लिए प्रतिदिन प्रातः एवं सायं अग्निहोत्र यज्ञ का विधान किया गया है। अग्निहोत्र का विधान प्रत्येक गृहस्थी मनुष्य का प्रमुख […]
ओ३म् ========== परमात्मा और आत्मा का सम्बन्ध व्याप्य-व्यापक, उपास्य-उपासक, स्वामी-सेवक, मित्र बन्धु व सखा आदि का है। परमात्मा और आत्मा दोनों इस जगत की अनादि चेतन सत्तायें हैं। ईश्वर के अनेक कार्यों में जीवों के पाप-पुण्यों का साक्षी होना तथा उन्हें उनके कर्मानुसार सुख व दुःख रूपी भोग प्रदान करना है। हमारा जो जन्म व […]
ओ३म् ========== मनुष्य एक ज्ञानवान प्राणी होता है। मनुष्य के पास जो ज्ञान होता है वह सभी ज्ञान स्वाभाविक ज्ञान नहीं होता। उसका अधिकांश ज्ञान नैमित्तिक होता है जिसे वह अपने शैशव काल से माता, पिता व आचार्यों सहित पुस्तकों व अपने चिन्तन, मनन, ध्यान आदि सहित अभ्यास व अनुभव के आधार पर अर्जित करता […]