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बिखरे मोती

बिखरे मोती : स्थिप्रज्ञ के संदर्भ में –

क्रिया से भी श्रेष्ठ है, हृदय के सद्भाव । स्थितप्रज्ञ की ओर चाहिए, निरखै मन के भाव ॥2011॥ प्रेम के संदर्भ में प्रेम के धागे से बंधे , जितने जग के जीव । प्रेम से ही प्राप्त हो, मेरा प्रिय जीव॥2100 ॥ आत्मा और परमात्मा के संदर्भ में एक डाल पर दो खग बैठे, जोने […]

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बिखरे मोती : आत्मस्वरूप के संदर्भ में

प्रेरक तेरा ओ३म् है , रक्षक सर्वाधार । नित चरणौं में बैठके, निज प्रतिबिम्ब निहार॥2091॥ भाव की उत्कृष्टतम्ब निकृष्टतम्ब अव्यवस्था के संदर्भ में – भाव की ऊंची है गति, भक्ति में हो लीन । क्रोध और अहंकार में, उठते भाव मलीन॥2092॥ जीव ईश्वर का अंश है पुराण – पुरुष का अंशु तू , मत भूले […]

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बिखरे मोती वृत्ति का उपयोग बदलो तो वे शक्ति बन जाती हैं –

बुरी नहीं वृत्ति कोई, यदि बदलो उपयोग । जिसने जाना राज को, सफल हुए वे लोग॥2067॥ वृत्तियों का रूपान्तरण कैसे करें ? उदाहरण के लिए – 1- काम का उपयोग आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हो, सन्तानोत्पत्ति के लिए हो, विलास के लिए नहीं । 2- क्रोध की वृत्ति का उपयोग शत्रु को परास्त […]

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अवगुण मेरे विसार दे, कर दे भव से पार

बिखरे मोती अवगुण मेरे विसार दे, कर दे भव से पार अवगुण मेरे विसार दे, कर दे भव से पार । मन लगे भक्ति मे, करो अर्ज स्वीकार॥2056॥ चोला बदले आत्मा, नये दरे जा नाम । चौरासी में घूमता, भूला हरि का नाम॥2057 ॥ अन्तःकरण की शुद्धि के संदर्भ में – शुद्ध अन्तःकरण की, केवल […]

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भक्ति में मांगो नहीं,जो चाहो कल्याण

भक्ति में मांगो नहीं,जो चाहो कल्याण भक्ति में मांगो नहीं, जो चाहो कल्याण । बिन मागें ही देत ब है, दाता करुणा निधान॥2041॥ आयु की दौलत घटे, सांस – सांस हर रोज । उनसे प्रीति: जग की सेवा, करले मैं की खोज॥2042॥ पंचभूत से जग रचा, यत्र तत्र सर्वत्र । सबके लिए रच दिए, रविचंद्र […]

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बिखरे मोती – भक्ति में आलस नहीं, ले उत्साह से नाम।

भक्ति के संदर्भ में – भक्ति में आलस नहीं, ले उत्साह से नाम। जितने दुर्गुण दुरित हैं, उन पर लगा लगाम॥ 2018॥ देवी और आसुरी प्रकृति के संदर्भ में – आसुरी – दैवी सम्पदा, दोनों है विपरीत । लाख यत्न कर लीजिए, नहीं बनेगे मीत॥2019॥ आत्मा और सूक्ष्म शरीर के अन्यो न्याश्रित संबंध के संदर्भ […]

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द्वेष क्रोध का अचार है, पालै मत मन माहिं

  बिखरे मोती   द्वेष क्रोध का अचार है, पालै मत मन माहिं। जब तक घट में द्वेष है, भक्ति सफल हो नाहिं॥1916॥ वाणी से आदर करें, नयन बरसे नेंह । ऐसा हृदय होत है, पाक प्रेम का गेह॥1917॥ बैर गिरावै प्रेम बढ़ावै, खुलै हरि का द्वार I मत जीवै तू बैर में , बैर […]

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बिखरे मोती : मानव – जीवन का उद्देश्य:-

शोकों से तरणा तुझे, प्रभु -मिलन की चाह । माया के फंसा भवॅर में, भूला अपनी रहा॥1899॥ शेर ख़ुदा जब किसी को बढ़ाना चाहता है , तो उसकी शख्सियत में नायब हुनर देता है । अपने तो क्या गैर भी तारीफ करते है, ज़माना नाज़ करता है॥1900॥ पद की शोभा शख्सियत, हाथ की शोभा दान […]

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बिखरे मोती : पक्षी बैठे वृक्ष पर, एक देखे एक खाय

पक्षी बैठे वृक्ष पर, एक देखे एक खाय । जैसा जिसका कर्म है, वैसे ही फल पायं ॥1888 ॥ फूलों में है सुगन्ध तू , तारों में प्रकाश । हृदय में धड़कन तूही, प्रमाणित करता सांस॥1889॥ लालच जड़ है पाप की , क्रोध है वन की आग । काम खाय सौन्दर्य को , अहंकार है […]

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बिखरे मोती : मैं हँसु मैया हँसे, मैं रोऊँ माँ रोय

मैं हँसु मैया हँसे, मैं रोऊँ माँ रोय। ज़रा कराहुँ दर्द में, रात-रात ना सोय॥1837॥ मैया जीवित है यदि, बूढ़ा भी बच्चा होय। माँ की ताड़ना प्यार है, बेशक गुस्सा होय॥1838॥ माँ के आशीर्वाद से, पूरे हों सब काज। बाल शिवा से बन गए, छत्रपति महाराज॥1839॥ माँ के आंचल में छिपी, षट – सम्पत्ति की […]

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