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भारतीय संस्कृति

सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 25 ( ख )

देश की वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था राजनीति को इतना शुद्ध और पवित्र होना चाहिए कि वह दंड के योग्य को दंड दे सके और प्रशंसा के योग्य की प्रशंसा कर सके। इसके लिए वर्तमान समय में देश में जिस प्रकार की लोकतांत्रिक व्यवस्था काम कर रही है वह भी विकारग्रस्त है। देश की बहुदलीय संसदीय व्यवस्था […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 25 क

धर्म और निष्पक्ष न्याय व्यवस्था प्राचीन काल में भारत में जिन सूत्रों या मानदंडों के आधार पर न्याय व्यवस्था संचालित होती थी उन्हें धर्मसूत्र कहा जाता था। प्रारंभ में धर्मसूत्र इंग्लैंड के संविधान की भांति अलिखित संविधान के रूप में काम करते थे। कालांतर में धर्मसूत्र लिखित रूप में आ गए और धर्मसूत्र तथा अर्थशास्त्र […]

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18 विवादास्पद मार्ग और राजा

सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय- 24 ख 18 विवादास्पद मार्ग और राजा संध्या आदि के पश्चात राजा के लिए अनिवार्य किया गया है कि :- “सभा राजा और राजपुरुष सब लोग सदाचार और शास्त्रव्यवहार हेतुओं से निम्नलिखित अठारह विवादास्पद मार्गों में विवादयुक्त कर्मों का निर्णय प्रतिदिन […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 24 क सभा और सभासद

सभा और सभासद स्वामी दयानंद जी महाराज जी द्वारा स्थापित आर्य समाज की राजनीति की विचारधारा पर विचार व्यक्त करते हुए क्षीतिश वेदालंकार जी अपनी पुस्तक “चयनिका” के पृष्ठ संख्या 65 पर लिखते हैं कि -“आर्य समाज स्पष्टत: न तो एकतंत्र का न बहुतंत्र का, न ही दल तंत्र का, प्रत्युत लोकतंत्र का पक्षपाती है। […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 23 ख

युद्ध में राजा का स्थान महर्षि यहां पर राजा को युद्ध नीति का पाठ पढ़ाते हुए कह रहे हैं कि वह अपने आप को सेनाओं के मध्य में रखे। युद्ध नीति और रणनीति के दृष्टिकोण से राजा के लिए यही आवश्यक है कि वह अग्रिम मोर्चे पर न होकर अपने आपको अपनी सेना के मध्य […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 23 ( क) युद्ध क्षेत्र में राजा की युद्ध नीति

युद्ध क्षेत्र में राजा की युद्ध नीति स्वामी दयानंद जी की देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम की भावना को देखकर भारतवर्ष के अनेक महान स्वतंत्रता सेनानियों ने उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। ऐसा कहने वाले वही लोग थे जिन्होंने स्वामी दयानंद जी के परिश्रम और पुरुषार्थ को पहचान लिया था और यह जान लिया था […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 22 ख लोकपाल और भारत की प्राचीन शासन व्यवस्था

लोकपाल और भारत की प्राचीन शासन व्यवस्था हमारे देश में दीर्घकाल से लोकपाल की नियुक्ति की मांग की जाती रही है। वास्तव में ऐसी मांग करना हमारी मृगतृष्णा का ही प्रतीक है। हमारे ऐसा कहने का कारण यह है कि जो लोग यह मानते हैं कि लोकपाल की नियुक्ति के पश्चात तुरंत सारे घपले घोटालों […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 22 ( क ) राजपुरुषों का आचरण

राजपुरुषों का आचरण स्वामी सत्यानंद जी महाराज ने “श्रीमद दयानंद प्रकाश” की भूमिका के अंत में लिखा है – “स्वामी जी महाराज पहले महापुरुष थे जो पश्चिमी देशों के मनुष्यों के गुरु कहलाए । … जिस युग में स्वामी जी हुए उससे कई वर्ष पहले से आज तक ऐसा एक ही पुरुष हुआ है जो […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 21 ख राजा की नीति ऐसी हो

राजा की नीति ऐसी हो महर्षि मनु प्रतिपादित संविधान अर्थात मनुस्मृति की यह व्यवस्था या इस जैसी अनेक व्यवस्थाऐं आज के संविधानों में कहीं दिखाई नहीं देती हैं। आगे भी लिखा है :- वकवच्चिन्तयेदर्थान् सिहवच्च पराक्रमेत्। वृकवच्चावलुम्पेत शशवच्च विनिष्पतेत्।। इसका अभिप्राय है कि जैसे बगुला ध्यानावस्थित होकर मछली पकड़ने को ताकता रहता है, वैसे राजा […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 21 क राजा प्रजा के लिए योगक्षेमकारी हो

राजा प्रजा के लिए योगक्षेमकारी हो जब मुसलमानों ने भारत पर आक्रमण करने आरंभ किए तो उस समय उनके पास कोई वैतनिक सेना नहीं होती थी। अधिकतर आक्रमणकारी अपने साथ ऐसे लुच्चे, लफंगे और बदमाश लोगों को अपनी सेना में भर्ती करके लाते थे जिन्हें लूट का आकर्षण दिया जाता था। उन तथाकथित सैनिकों को […]

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