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भारतीय संस्कृति

सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 29 ( ख ) इतिहास का भूत और संसार की दुर्दशा

इतिहास का भूत और संसार की दुर्दशा जिन लोगों ने अपने धर्म स्थल या मठ या मजार आदि स्थापित करके पापी, डाकू लोगों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों व अधिकारियों से उनके लिए धन लेकर उन्हें यह आश्वासन देने का पाप किया है कि इससे उनके पाप क्षमा हो गए हैं,वे सभी वर्तमान संसार की दुर्दशा के […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 29 क आत्मा – परमात्मा, जीव और भाषा

आत्मा – परमात्मा, जीव और भाषा संसार के सारे ऐश्वर्य बहुत ही फीके हैं ,अपेक्षाकृत परमपिता परमेश्वर के आनंद को पाने के। भारत के ऋषि पूर्वज आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति करते थे और परम पिता परमेश्वर के सानिध्य में रहकर जीवन को जीने की उत्कृष्ट कला में पारंगत थे। संसार की सभी इच्छाओं से मुक्त […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 28 ,( ख) संध्या से मिलती है असीम ऊर्जा

संध्या से मिलती है असीम ऊर्जा इस प्रकार के उदाहरणों से हमें पता चलता है कि संध्या या ईश्वर की स्तुति- प्रार्थना – उपासना न केवल आध्यात्मिक क्षेत्र में बल्कि सांसारिक क्षेत्र में भी हमारा उत्साहवर्धन करती है और हमें जीने की असीम शक्ति और ऊर्जा प्रदान करती है। आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति के साथ-साथ […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय — 28 (क) ईश्वर भक्ति, अवतारवाद और जीव

ईश्वर भक्ति, अवतारवाद और जीव आर्य समाज महर्षि दयानंद द्वारा रोपा गया एक क्रांतिकारी पौधा सिद्ध हुआ। इसके वीर योद्धाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कीर्तिमान स्थापित किए । धार्मिक क्षेत्र में सफाई अभियान के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में भी अनेक ऐसे आंदोलन आर्य समाज ने लड़े, जिन्होंने इतिहास की धारा बदल दी। यदि […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 27 ( ख ) तैंतीस कोटि देव

तैंतीस कोटि देव जो ‘त्रयसिंत्रशतिंत्रशता०’ इत्यादि वेदों में प्रमाण हैं इस की व्याख्या शतपथ में की है कि तेंतीस देव अर्थात् पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चन्द्रमा, सूर्य्य और नक्षत्र सब सृष्टि के निवास स्थान होने से आठ वसु। प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म्म, कृकल, देवदत्त, धनञ्जय और जीवात्मा ये ग्यारह रुद्र इसलिये कहाते हैं […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 27 ( क ) ईश्वर की प्रार्थना और हमारा जीवन

ईश्वर की प्रार्थना और हमारा जीवन स्वामी दयानंद जी महाराज ने ईश्वर जीव और प्रकृति के अस्तित्व को अजर और अमर स्वीकार किया। ऐसा करके उन्होंने वैदिक ऋषियों के साथ हमारा तारतम्य स्थापित किया। बीच में पौराणिक काल में आई विभिन्न मान्यताओं को स्वामी जी महाराज ने क्रांतिकारी ढंग से चुनौती देते हुए दूर करने […]

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कहनी है एक बात हमें!!!!

युगों युगों से आर्य समाज ने समस्त भूमंडल को एवं भारत राष्ट्र को वैदिक शिक्षा प्रदान करते हुए मार्गदर्शन किया है। आर्य समाज की महत्वपूर्ण और अग्रणी भूमिका इस राष्ट्र की स्वतंत्रता प्राप्ति में भी रही है। यदि वेद की विद्या आर्यावर्त में और भारत राष्ट्र में विद्यमान न होती तो भारत कभी विश्व गुरु […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 26 ( ख ) कानून की असभ्यता

कानून की असभ्यता यह कितना रोचक तथ्य है कि आज का कानून दंड देते समय सबको समान समझने की डींगें तो मारता है पर दंड देते समय ऊंची पहुंच वाले या शक्ति संपन्न व्यक्ति को कम दंड देता है और जिसके पास कानून को समझने की शक्ति नहीं, उसे दंड अधिक देता है। आज का […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 26 ( क ) कड़े दंड का प्रावधान

कड़े दंड का प्रावधान मुसलमानों की शरिया में कई प्रावधान ऐसे हैं जो अपराधी को दंड देने में भारत की न्यायिक प्रक्रिया की नकल करते देखे जाते हैं । यदि नाबालिग के साथ बलात्कार किया जाता है तो ऐसे अपराध को बहुत संगीन अपराध के रूप में शरीयत मान्यता देता है। शरीयत में प्रावधान है […]

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भारतीय शाक्त विचार और आधुनिक विज्ञान

आप जब इस लेख को पढ़ रहे होंगे, तब स्क्रीन को स्क्रॉल करने के लिए भी आपको शक्ति की आवश्यकता होगी। आश्चर्य नहीं कि हम भारतीय सदैव से ही शक्ति के प्रति आकर्षित होते रहे हैं। छान्दोग्य के ऋषि नारद को संकेत करते हुए अष्टम खंड में कहते हैं “बलं वाव विज्ञानाद्भूयोपि ह शतं..”। हे […]

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