इन्द्र विद्यावाचस्पति लिखते हैं :–” जब लम्बी दासता से बंजर हुई भारत की भूमि को सशस्त्र क्रान्ति के विशाल हल ने खोदकर तैयार कर दिया और जब सुधारकों के दल ने उसमें मानसिक स्वाधीनता के बीज बो दिए , तब यह सम्भव हो गया कि उसमें से राजनीतिक स्वाधीनता के बिना सामाजिक स्वाधीनता और सामाजिक […]
श्रेणी: भारतीय क्षत्रिय धर्म और अहिंसा
1857 में चला था पहला ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ 1857 की क्रांति के इस प्रकार के विस्तृत योजनाबद्ध विवरण से पता चलता है कि उस समय भारत में पहला ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ प्रारम्भ हुआ था ।यह तभी सम्भव हुआ था जब हमारे भीतर आजादी की ललक काम कर रही थी। कुछ लोगों ने 1857 की क्रान्ति […]
1857 का ‘अंग्रेजो ! भारत छोड़ो आन्दोलन’ सर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने सन 1853 की संसदीय समिति के सामने ‘भारत की अलग-अलग शिक्षा प्रणालियों के अलग-अलग राजनीतिक परिणाम’ – शीर्षक से एक लेख लिखकर प्रस्तुत किया था । इस लेख में उसने लिखा था कि :- “भारतीय राष्ट्र के विचारों को दूसरी ओर मोड़ने का केवल […]
महाराष्ट्र मण्डल की स्थापना 1757 में हुए पलासी के युद्ध के पश्चात किस प्रकार अंग्रेज भारत में जम गए और उन्होंने अपना साम्राज्य विस्तार करना आरम्भ किया ? – इतिहास का यह निराशाजनक तथ्य तो हमें बताया व पढ़ाया जाता है परंतु इसी समय सिंधिया , होलकर , गायकवाड और भौसले जैसे चार राजघरानों के […]
बिखरा रहा स्वराज्य का गुलाल मुगल काल में अनेकों हिन्दुओं ने अपनी आजादी की रक्षा के लिए अपने बलिदान दिए। ऐसे बलिदानों में धर्मवीर हकीकत राय का नाम भी सम्मिलित है। जिसने चोटी जनेऊ न देकर अपने प्राण दे दिए और धर्म की बलिवेदी पर सहर्ष अपना बलिदान दे दिया। संसार के अधिकतम क्रूर और […]
सजी रही बलिदानी परम्परा प्रभाकर माचवे अपनी पुस्तक ‘छत्रपति शिवाजी’ की भूमिका में लिखते हैं :- “शिवाजी के साथ समकालीन फारसी शाही इतिहासकारों ने और बाद में अंग्रेज इतिहासकारों ने भी बड़ा अन्याय किया है । कुछ लोगों ने उन्हें सिर्फ एक साहसी, लड़ाकू , लुटेरा तो औरों ने ‘पहाड़ी चूहा’ और दूसरे लोगों ने […]
अमरसिंह राठौर अप्रतिम बलिदान इसी प्रकार शाहजहाँ के दरबार में सलावत खां को दिनदहाड़े मारने वाले अमरसिंह राठौर की वीरता और बलिदानी भावना को भी कोई छद्मवेशी ही भूल सकता है। जिसने अपने सम्मान के लिए अपने प्राण गंवा दिये थे। इसके बाद सरदार बल्लू और उसके घोड़े चम्पावत के बलिदान को भी कोई देशभक्त […]
उदार शासक नहीं था शाहजहाँ मुगल बादशाह शाहजहाँ को मुगल काल का सबसे महान और उदार बादशाह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है । जिसके विषय में यह धारणा फैलाई गई है कि शाहजहां स्थापत्य कला का बहुत बड़ा प्रेमी था और उसने आगरा का ताजमहल व दिल्ली का लाल किला जैसी कई ऐतिहासिक […]
सर्वत्र क्रान्ति की ही गूँज थी 1605 ईस्वी में अकबर का देहान्त हुआ तो उसके पुत्र सलीम ने जहाँगीर के नाम से राजसत्ता प्राप्त की। जहाँगीर का शासनकाल 1627 ईस्वी तक रहा। लगभग 22 वर्ष शासन करने वाले इस मुगल बादशाह को भी हिन्दुओं ने चैन से शासन नहीं करने दिया । क्योंकि वह भी […]
हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य, महाराणा प्रताप और झालाराव मन्नासिंह की वीरता 21 जनवरी 1556 ई0 को बाबर के बेटे हुमायूँ का देहान्त हो गया तो उसके पश्चात 14 फरवरी 1556 को अकबर का राज्यारोहण हुआ । उस समय हमारे एक महान शासक हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने सत्ता पर अपना अधिकार कर लिया था। जिस समय हुमायूँ […]