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भारतीय क्षत्रिय धर्म और अहिंसा स्वर्णिम इतिहास

भारतीय क्षत्रिय धर्म और अहिंसा ( है बलिदानी इतिहास हमारा ) अध्याय – 16 (क ) मथुरा के जाटों का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

बिखरा रहा स्वराज्य का गुलाल

मुगल काल में अनेकों हिन्दुओं ने अपनी आजादी की रक्षा के लिए अपने बलिदान दिए। ऐसे बलिदानों में धर्मवीर हकीकत राय का नाम भी सम्मिलित है। जिसने चोटी जनेऊ न देकर अपने प्राण दे दिए और धर्म की बलिवेदी पर सहर्ष अपना बलिदान दे दिया।

संसार के अधिकतम क्रूर और निर्दयी बादशाहों में गिना जाने वाला औरंगजेब भी अन्त में हिन्दू पराक्रम के सामने नतमस्तक हो गया था । वह समझ गया था कि उसने व्यर्थ ही जीवन गंवा दिया । उसने अपने पुत्र आजम को एक पत्र में लिखा :– “खुदा आपको सलामत रखे । मैं बहुत बूढ़ा व कमजोर हो चुका हूँ। मेरे आजा सुस्त हो गए हैं । जब मैं पैदा हुआ था तो मेरे चारों तरफ बहुत से आदमी थे । मगर अब मैं अकेला जा रहा हूँ । मैं नहीं जानता हूँ कि मैं क्यों पैदा हुआ और किसलिए इस दुनिया में आया ? मेरी तमाम उम्र जाया हो गई । खुदा मेरे दिल में था, मगर मेरी अंधी आंखों ने उसे देखा नहीं । उम्र थोड़ी है , गुजिश्ता वक्त वापस नहीं आता । मुझे जिंदगी का भरोसा नहीं हरकाल जाती रही । महज चमड़ा हड्डियां बाकी हैं। मैं खुदा से दूर उफ़्तादा (फेंका हुआ ) हूँ । मेरे दिल में बिल्कुल चैन नहीं । मैं इस दुनिया में कुछ भी नहीं लाया , मगर अपने सर पर गुनाहों की गठरी ले चला ।मैं नहीं जानता हूँ कि मुझे अपने गुनाहों की क्या सजा मिलेगी ? गोया मैं खुदा के रहम पर भरोसा रखता हूं। मगर मैं अपने गुनाहों पर नादिम हूँ ।”
औरंगजेब ने अपने एक दूसरे पुत्र शहजादे कामबख्श के लिए लिखा था :-” मेरी जान की जान मैं अकेला जा रहा हूँ,। तुम्हारी बेकसी का अफसोस है । मगर अफसोस करने से क्या हासिल ? मैंने लोगों ( हिन्दुओं )को सताया है । जितने गुनाह ( हिन्दुओं के विरूद्ध ) मैंने किए हैं और जितना जुल्म किया है मैं उसका नतीजा साथ ले चला हूँ । अफसोस मैं दुनिया में खाली आया , मगर चलते वक्त गुनाहों का बोझ सर पर ले चला । मैंने बहुत गुनाह किये हैं , मालूम नहीं मुझे क्या सजा मिलेगी ?”
हिन्दुओं पर आजीवन अत्याचार करने वाले इस निर्दयी बादशाह के इस प्रकार के पश्चात्ताप के आंसुओं में न केवल वह स्वयं बल्कि उसका अपना वंश भी डूब गया। इसके बाद मराठा शक्ति के नेतृत्व में फिर से देश में हिन्दू सूर्य उदित हो गया । 1738 ई0 में मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला ने हिन्दू मराठों का वर्चस्व स्वीकार कर लिया । देश के बहुत बड़े भाग पर मराठा शक्ति का आधिपत्य स्थापित हो गया। अगले 100 वर्ष से अधिक के काल में भारतवर्ष के अधिकांश भाग पर मराठा शक्ति का आधिपत्य स्थापित रहा , परन्तु दुर्भाग्य है कि मराठा शक्ति के इस देशभक्ति पूर्ण कार्य को वर्तमान इतिहास में स्थान नहीं दिया गया।

मथुरा के जाटों का स्वाधीनता संग्राम

तथाकथित मुस्लिम मुगल काल में ब्रजमण्डल पर जाट और उनके स्वतन्त्रता आन्दोलन को भी हमें याद करना चाहिए। हिंडोन परगने के जाट किसानों ने 1637 में मुगल सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया था। इसी प्रकार के आन्दोलन 1642 व 1649 -51ई0 में भी किए गए थे । जिनका नेतृत्व महिपाल जाट ने किया था ।औरंगजेब के शासनकाल में गोकुला जाट ने 1669 ई0 में अपना स्वतन्त्रता आन्दोलन कर जमींदारों को औरंगजेब के विरुद्ध खड़ा किया था। जिसमें गुर्जरों और अहीरों ने भी बढ़कर सहयोग किया था ।10 मई 1669 को एक छोटे से युद्ध में इन हिन्दू वीरों ने मुगलों की भारी सेना को परास्त कर भगा दिया था ।
राजाराम जाट ने भी मुगलों के शासन काल में इस प्रकार के आंदोलन को जारी रखने का सराहनीय कार्य किया था । 14 जुलाई 1688 को इस हिन्दू वीर ने वीरगति प्राप्त की थी । इस समय जाट बिरादरी के लोग छापामार युद्ध करते रहे थे । इसी परम्परा में जाट नेता ठाकुर बदनसिंह और महाराजा सूरजमल के कार्यों को भी गिना जा सकता है । जिन्होंने हिन्दू की आन , बान , शान के लिए जीवन भर कार्य किया। बल्लभगढ़ के तेवतिया जाट भी इसी श्रंखला में काम करते रहे थे। जिन्होंने बादशाह को राजस्व देने से इंकार कर दिया था ।
जब अहमद शाह दुर्रानी और नादिरशाह जैसे विदेशी आक्रमणकारी भारत की ओर बढ़े तो जहाँ से उन्होंने भारत की सीमा में प्रवेश किया था वहीं से लेकर दिल्ली तक उनकी सेना का प्रतिरोध करते – करते लाखों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया था । वह बलिदान भी भारत के स्वतन्त्रता के लिए दिए गए बलिदान ही थे ।जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता।
जब मुगलों की शक्ति और सत्ता का पतन हुआ और मराठा इस देश पर छा गये थे तभी देश में अंग्रेजों की विदेशी सत्ता ने धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनाने के लिए नई-नई चालें चलने का उपक्रम करना आरम्भ किया। इतिहास का एक सुखद तथ्य यह भी है कि जिस प्रकार हिन्दू पराक्रम अभी तक अपना तेज बिखेरता हुआ अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए संघर्ष करता आ रहा था , उसने अपने इस संघर्ष को अंग्रेजों के शासन काल में भी यथावत जारी रखा। इस काल में चाहे मीर जाफर जैसे देश के गद्दार पैदा हुए हों , परन्तु ऐसे भी अनेकों क्रान्तिकारी योद्धा थे , जिन्होंने भारत की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए प्राणपण से कार्य किया। हमें इतिहास में गद्दार मीरजाफर तो पढ़ाया जाता है , लेकिन उन वीर योद्धाओं के बारे में कुछ नहीं पढ़ाया जाता। जिन्होंने देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति प्रदान करने में अपना सर्वस्व बलिदान किया था।
वारेन हेस्टिंग्स नेम राजा नन्दकुमार को 5 अगस्त 1776 ईस्वी को फांसी पर चढ़वाया था । 1776 में ही वारेन हेस्टिंग्स ने बनारस के हिन्दू राजा बलवन्तसिंह पर भी आक्रमण किया था । तब उस देशभक्त राजा की कुल पांच लाख की जनसंख्या में से 3 लाख लोगों ने अपना बलिदान अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए दे दिया था । निश्चय ही इन बलिदानियों का बलिदान भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड में मारे गए हमारे देशभक्त लोगों का बलिदान महत्वपूर्ण था।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति

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