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आज का चिंतन

ऋषि दयानंद ने ऋषि परंपरा का निर्वहन करते हुए वेद परंपरा को पुनर्जीवित किया

ओ३म =========== आदि काल से महाभारत काल तक देश देशान्तर में ईश्वरीय ज्ञान वेदों का प्रचार था। वेद सृष्टि की आदि में ईश्वर द्वारा मनुष्यों को प्रेरित व प्राप्त ज्ञान है। वेद सब सत्य विद्याओं से युक्त हैं जिससे मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति होती है। ईश्वर, जीवात्मा तथा सृष्टि की उत्पत्ति, सृष्टि उत्पत्ति के प्रयोजन, […]

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सत्यार्थ प्रकाश से वेदों के महत्व तथा मत मतान्तरों की अविद्या का ज्ञान होता है

ओ३म् =========== मनुष्य को यह ज्ञान नहीं होता है कि उसके लिये क्या आवश्यक एवं उचित है जिसे करके वह अपने जीवन को सुखी व दुःखों से रहित बना सके। मनुष्य जीवन के सभी पक्षों का ज्ञान हमें केवल वैदिक साहित्य का अध्ययन करने से ही होता है। वेद विद्या से युक्त तथा अविद्या से […]

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ऋषि दयानंद ने ईश्वर के सत्यस्वरूप को जानना सरल बना दिया

ओ३म् ========= संसार में जानने योग्य यदि सबसे अधिक मूल्यवान कोई सत्ता व पदार्थ हैं तो वह ईश्वर व जीवात्मा हैं। ईश्वर के विषय में आज भी प्रायः समस्त धार्मिक जगत पूर्ण ज्ञान की स्थिति में नहीं है। सभी मतों में ईश्वर व जीवात्मा के सत्यस्वरूप को लेकर भ्रान्तियां हैं। कुछ मत ईश्वर को मनुष्यों […]

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वैदिक धर्म दुखों से रक्षार्थ सत्य को धारण करने की शिक्षा देता है

ओ३म् ========= मनुष्य का जो ज्ञान होता है वह सत्य व असत्य दो कोटि का होता है। मनुष्य के कर्म भी दो कोटि यथा सत्य व असत्य स्वरूप वाले हाते हैं। अनेक स्थितियों में मनुष्य को सत्य को अपनाने से क्षणिक व सामयिक हानि होती दीखती है और असत्य का आचरण करने से लाभ होता […]

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स्वाध्याय से ईश्वर तथा जीवात्मा सहित अनेक विषयों का ज्ञान होता है

ओ३म् =========== मनुष्य जीवन को उत्तम व श्रेष्ठ बनाने के लिये आत्मा को ज्ञान से युक्त करने सहित श्रेष्ठ कर्मों व आचरणों का धारण व पालन करना होता है। मनुष्य जब संसार में आता है तो वह एक अबोध शिशु होता है। माता, पिता तथा परिवार के लोगों की बातें सुनकर वह बोलना सीखता है। […]

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ईश्वर सृष्टि की उत्पत्ति सहित सभी अपौरुषेय कार्य जीव के कल्याण हेतु करता है

ओ३म् =========== संसार में तीन मूल सत्तायें हैं जिन्हें हम ईश्वर, जीव तथा प्रकृति के नाम से जानते हैं। आकाश का भी अस्तित्व है परन्तु यह एक चेतन व जड़ सत्ता नहीं है। आकाश खाली स्थान को कहते हैं जिसमें अन्य सभी सत्तायें आश्रय पाये हुए हैं। इसी प्रकार से संसार में दस दिशायें भी […]

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मनुष्य को अपने प्रमुख कर्तव्यों का पालन कर उनका पालन करना चाहिए

ओ३म् ========== मनुष्य एक मननशील प्राणी है। सभी मनुष्यों को परमात्मा ने मानव शरीर बनाकर उसमें पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्म इन्द्रियां तथा मन, बुद्धि, चित्त आदि अवयव दिये हैं। बुद्धि मनुष्य को ज्ञान प्राप्ति में सहायक होती है। बुद्धि से ही सत्य व असत्य का निर्णय किया जाता व अपने कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त […]

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जीवात्मा एक स्वतंत्र एवं अन्य अनादि तत्वों से पृथक सत्ता व पदार्थ है

ओ३म् ========= हमारा यह संसार ईश्वर, जीव तथा प्रकृति, इन तीन सत्ताओं व पदार्थों से युक्त है। अनन्त आकाश का भी अस्तित्व है परन्तु यह कभी किसी विकार को प्राप्त न होने वाला तथा किसी प्रकार की क्रिया न करने वाला व इसमें क्रिया होकर कोई नया पदार्थ बनने वाला पदार्थ है। ईश्वर, जीव तथा […]

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सृष्टि में नियम और व्यवस्था ईश्वर के होने का संकेत करते हैं

ओ३म् ============ संसार में स्थूल व सूक्ष्म दो प्रकार के पदार्थ होते हैं। स्थूल पदार्थों को सरलता से देखा जा सकता है। इसी से उनका प्रत्यक्ष भी हो जाता है। किसी पदार्थ का ज्ञान उसके गुणों को समग्रता से जानने पर होता है। सूक्ष्म पदार्थों नेत्रों से तो दिखाई नहीं देते परन्तु वह अपने लक्षणों […]

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अविद्या से सर्वथा रहित और सद्ज्ञान से युक्त ग्रंथ है सत्यार्थ प्रकाश

ओ३म् ============== मनुष्य चेतन एवं अल्पज्ञ सत्ता है। इसका शरीर जड़ पंच-भौतिक पदार्थों से परमात्मा द्वारा बनाया व प्रदान किया हुआ है। परमात्मा को ही मनुष्य शरीर व उसके सभी अवयव बनाने का ज्ञान है। उसी के विधान व नियमों के अन्तर्गत मनुष्य का जन्म होता तथा मनुष्य के शरीर में वृद्धि व ह्रास का […]

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